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पॉली सल्फेट उर्वरक : फसलों में सल्फर क्रांति

पॉली सल्फेट उर्वरक : फसलों में सल्फर क्रांति – सल्फर पौधे की वृद्धि और विकास के लिए एक महत्वपूर्ण और आवश्यक पोषक तत्व है। सल्फर की कमी होने पर फसल में क्लोरोफिल और प्रोटीन निर्माण प्रभावित होता है और नाइट्रोजन उपयोग की दक्षता (NUE) में भी कमी आती है। सल्फर की कमी होने पर फसल की पैदावार और गुणवत्ता दोनों में कमी आ सकती है। पौधों में सल्फर की कमी नयी पत्तियों पर क्लोरोसिस के रूप में दिखाई देती है।

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भारतीय मिट्टी में सल्फर की स्थिति

1990 के दशक की शुरुआत में, लगभग 130 जिलों में सल्फर की कमी होने का अनुमान लगाया गया था। प्रत्येक गुजरते साल के साथ मृदा में सल्फर की स्थिति कम होती गयी। ICAR ने TSI-FAI-IFA परियोजना के अंतर्गत किये गए मिट्टी की उर्वरता सर्वेक्षण में सल्फर की कमी को व्यापक समस्या के रूप में दिखाया है जिसमे लगभग 70त्न के करीब मिट्टी के नमूनों में सल्फर का स्तर कम या सीमांत पाया गया है।

भारत में सल्फर की कमी के प्रमुख कारण

  • कृषि उत्पादन बढऩे से सल्फर की खपत में वृद्धि।
  • खेती की पद्धति में बदलाओं ने भी मिट्टी में सल्फर की कमी को बढ़ाया।
  • भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में अत्यधिक पानी अपवाह और लीचिंग से सल्फर का नुकसान होना।
  • सल्फर युक्त उर्वरक का फसल की जरुरत से कम उपयोग।

सल्फर का औसतन अपटेक तिलहन में 9.9, दलहन में 7.6 और गेहूं में 4.1 किलो प्रति टन उत्पादन होता है।

रबी फसलों में सल्फर की उपयोगिता

तिलहन : सल्फर तिलहनी फसलों में प्रोटीन निर्माण, आवश्यक एमिनो एसिड और एंजाइम, ग्लूको साइनोलेट और क्लोरोफिल गठन के लिए एक आवश्यक घटक है। लाही और सरसों में तेल संश्लेषण और उपज को बढ़ाने के लिए सल्फर की नियमित आपूर्ति बहुत महत्वपूर्ण है।

दलहन : दलहनी फसलें विशेष रूप से सल्फर की कमी के प्रतिसंवेदनशील होती हैं, जिसका सीधा असर फसल की गुणवत्ता और उपज पर पड़ता है।

गेहूँ : गेहूं की उपज और गुणवत्ता मुख्यत:, अनुकूल वातावरण, किस्म, बीज की गुणवत्ता, उचित सिंचाई और फसल पोषण प्रबंधन पर निर्भर करती है। मृदा में सल्फर की कमी होने पर नाइट्रेट की हानि बढ़ जाती है और प्रति बाली गेहूं के दानों की संख्या कम हो जाती है। पॉली सल्फेट फसलों में सल्फर का उत्तम उर्वरक है। यह सल्फर आधारित एक प्राकृतिक उर्वरक है जिसमें सल्फर (18.5%) के साथ, पोटेशियम (13.5%), मैग्नीशियम (5.5%) और कैल्शियम (16.5%) भी उपलब्ध है। यह धीमे घुलने वाला, आसानी से अवशोषित, कम लवणता सूचकांक का एक उत्कृष्ट उर्वरक है। पॉली सल्फेट 50 किग्रा/एकड़ सरसों, चना और गेहूँ में बुवाई के समय प्रयोग कर फसल की सल्फर की जरूरत के साथ मैग्नीशियम, कैल्शियम और पोटेशियम की आपूर्ति भी की जा सकती है जो बेहतर फसल और अच्छी उपज के लिए बेहद जरुरी है। पॉली सल्फेट उपज में वृद्धि, बेहतर गुणवत्ता और अधिक लाभ के लिए एक उचित उर्वरक है इसकी विशेषता इसके तत्वों का विशेष रिलीज पैटर्न है जो तत्वों की उपलब्धता को फसल की जरुरत के अनुसार बनाये रखने में अति मह्त्वपूर्ण है। पॉली सल्फेट में उपस्थित चारों तत्व एक विशेष पैटर्न में निरंतर रिलीज होते रहते हैं जो उपज में वृद्धि और बेहतर गुणवत्ता के लिए बेहद फायदेमंद है।

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