फसल की खेती (Crop Cultivation)

बेमौसमी मटर उगायें, आय बढ़ायें

खेत की तैयारी
मटर की अच्छी उपज के लिये बलुई दोमट व दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है तथा खेत में जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिये। मिट्टी का पी.एच.मान 6-7 के बीच होना चाहिये। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटडने वाले हल से करने के उपरांत आवश्यकतानुसार एक या दो जुताईयां देशी हल से करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें और पाटा लगा दें ताकि बुवाई के समय खेत में नमी बनी रहे।
उन्नतशील प्रजातियां
अर्किल, वी.एल. अगेती मटर 7, विवेक मटर 10 और पन्त सब्जी मटर है। ये प्रजातियां 120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है। बेमौसमी फसल के लिए अगस्त में बुवाई करने के लिये अगेती प्रजातियों का चुनाव करना चाहिए।
मध्यम प्रजातियां:
विवेक मटर 6, विवेक मटर 8, विवेक मटर 9, विवेक मटर 1 में प्रजातियां 140 दिनों में तैयार हो जाती है।
बुवाई समय
सब्जी मटर की बुवाई का समय निचले पर्वतीय क्षेत्रों में सितम्बर से अक्टूबर के मध्य तक, मध्यम ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा तथा अधिक ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में अगस्त का द्वितीय पखवाड़ा तथा फरवरी अंत से मार्च/अप्रैल तक बुवाई की जाती है।
बीज दर एवं बुवाई विधि
मटर की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये 80-90 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर (लगभग 1.6-1.8 कि.ग्रा. प्रति नाली) बीज की मात्रा पर्याप्त होती है, जबकि अगस्त में बुवाई के लिए 100-120 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर (लगभग 2.0-2.4 कि.ग्रा. प्रति नाली) बीज की मात्रा का उपयोग करना चाहिये। बीज बोने से पहले कवकनाशी रसायन कार्बेन्डाजिम या थायरम की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए, जिससे फसल को बीज जनित रोगों से बचाया जा सके। बीज की बुवाई करते समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। बीज की बुवाई हल के कूड़ों में करना चाहिए अथवा कुटले आदि की मदद से कूड़ निकाल बुवाई कतारों में करनी चाहिए। बीज की बुवाई 3-4 से.मी. से अधिक गहराई पर नहीं करनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना उपयुक्त रहता है। सब्जी मटर की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये 10-15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर (2-3 क्विंटल प्रति नाली) डालना चाहिए तथा रसायनिक खादों में 20 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 40 कि.ग्रा. पोटाश (0.4 कि.ग्रा. नत्रजन, 1.2 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 0.8 कि.ग्रा. पोटाश प्रति नाली) प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। बुवाई से पूर्व नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा देना चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा निराई-गुड़ाई के बाद देना चाहिए।
सिंचाई
वर्षा न होने पर भूमि में नमी के अभाव में आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहिए। फूल आने से पूर्व आवश्यकतानुसार 1-2 सिंचाई करना चाहिए। पाला पडऩे की संभावना होने पर सिंचाई करना लाभदायक रहता है। फलियों में दाने बनते समय सिंचाई बहुत आवश्यक होती है।
तुड़ाई और उपज
मटर की तैयार फलियों की तुड़ाई के समय पौधों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें तथा 8-10 दिन के अंतराल पर 3-4 तुड़ाई करनी चाहिए। अगस्त में बोई गयी बेमौसमी सब्जी मटर से 50-60 क्विंटल तथा मुख्य फसल से 90-100 प्रति क्विंटल हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है।

खरपतवार नियंत्रण
सब्जी मटर की बुवाई के 26-30 दिन बाद प्रथम निराई-गुड़ाई तथा दूसरी 45 दिन बाद करने चाहिए। रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिये पेन्डीमिथालीन 0.5 कि.ग्रा. अथवा एलाक्लोर 1.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से बीज बुवाई के पश्चात 600-800 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
रोग एवं कीट प्रबंध
इस फसल में लगने वाले मुख्य रोग बीज एवं मूल विगलन, उकठा, सफेद विगलन, चूर्णिल आसिता तथा मुख्य कीट फली बेधक एवं पत्ता सुरंगक है।
बीज एवं मूल विगलन
अंकुरण से पूर्व एवं पौध उगने के बाद बीज गल जाते हैं। चिकनी मिट्टी में अधिक नमी होने पर रोग का प्रकोप बढ़ जाती है। इसकी रोकथाम के लिये बुवाई से पूर्व थायरम या कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
ग्लानि या उकठा
प्रभावित पौधों का ऊपरी भाग पीला पडऩा, पत्तियों का पीला होकर झडऩा, जड़ों का कमजोर होना इस रोग के प्रमुख लक्षण है। निचली पत्तियों के गिरने के बाद पौधों का ऊपरी भाग मुरझाकर सूखकर गिर जाता है। रोगी पौधों की जड़ों को चीरकर देखने पर पूरा भाग भूरा दिखाई देता है। बीजों की बुवाई से पूर्व थायरम या कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिये।
सफेद विगलन
इस रोग में भूमि में स्पर्श करने वाले पौधों के हिस्से पर धब्बे बन जाते हैं, रोगी हिस्सों पर सफेद रूई सी दिखाई देती है। रोगग्रस्त भाग गल जाता है एवं रोगी भागों में फफूंद के काले-काले ढांचे बनते हैं, जो अगले वर्ष रोग को फैलाने में सहायक होते हैं। पौधों के निचले हिस्सों पर सफेद विगलन रोग के लक्षण दिखाई देते ही एक ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए।
चूर्णिल आसिता
इस रोग में पत्तियां, तने तथा फलियों में सफेद चूर्ण दिखाई देता है। अधिक प्रकोप होने पर पौधे धूल भरे हो जाते हैं जिससे फलियों की चमक कम हो जाती है, रोग का प्रकोप शुष्क एवं गर्म मौसम में अधिक होता है। चूर्णिल आसिता के सफेद धब्बे दिखाई देने पर बारीक गंधक का भुरकाव (25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर) करना चाहिए अथवा घुलनशील गंधक दो ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए।
फली छेदक कीट
फलियों में दानों को हरे रंग की सूडिय़ां खाती है। फलियों में दाने कम एवं छोटे निकलते हैं।
पत्ता सुरंगक कीट
पत्तों पर सांप की तरह सफेद लाइनें दिखाई देती है। ये कीट पत्तों के ऊपरी सतह के नीचे हरे पदार्थ को खाकर सुरंग बनाते हैं।
प्रबंधन – फली छेदक तथा पत्ता सुरंगक कीटों के नियंत्रण हेतु प्रोफेनोफॉस दवा की दो मि.ली. मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिय।

  • विवेक कुमार कुर्रे
  • प्रीति अनंत
    email : vivekkumar.kurrey@gmail.com

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