मसूर की उन्नतशील खेती
भारत में रबी दलहन परिदृश्य
- डॉ. ए. के. शिवहरे, संयुक्त निदेशक
दलहन निदेशालय, केन्द्रीय कृषि मंत्रालय, भोपाल
3 नवंबर 2021, भोपाल । मसूर की उन्नतशील खेती – उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश व बिहार में मुख्य रूप से मसूर की खेती की जाती है। बिहार के ताल क्षेत्रों में मसूर की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। चना तथा मटर की अपेक्षा मसूर कम तापक्रम, सूखा एवं नमी के प्रति अधिक सहनशील है। भारत में मसूर का प्रयोग दाल एवं दूसरे व्यंजन बनाने में किया जाता है। मसूर मे लगभग 28 प्रतिशत प्रोटीन होता है।
उन्नतशील प्रजातियां
उकटा प्रतिरोधी किस्में – पीएल-02, वीएल मसूर-129, वीएल -133,154, 125, पंत मसूर (पीएल-063), केएलबी-303, पूसा वैभव (एल-4147), आवी. एल-31, 316
छोटे दाने वाली प्रजातियां- पंत मसूर-4, पूसा वैभव, पंत मसूर-406, आपीएल-406, पंत मसूर-639, डीपीएल-32, पीएल0-5, पीए-6, डब्लूबीएल-77
बड़े दाने वाली प्रजातियां- डीपीएल-62, सुभ्रता, जेएल-3, नूरी (आईपीएल-81), पीएल-5, एलएच 84-6, डीपीएल-15, (प्रिया), लेन्स-4076, जेएल-1, आईपीएल-316, आईपीएल-406, पीएल-7
उपज अन्तर
सामान्यत: यह देखा गया है कि अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन की पैदावार व स्थानीय किस्मों की उपज में लगभग 31 प्रतिशत का अन्तर है। यह अन्तर कम करने के लिये अनुसंधान संस्थानों व कृषि विज्ञान केन्द्र की अनुशंसा के अनुसार उन्नत कृषि तकनीक को अपनाना चाहिए।
बुआई समय
सामान्यत: मसूर 1 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक बोई जाती है। इसका बोने का समय क्षेत्र विशेष जलवायु अनुसार भिन्न हो सकता है। जैसे उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में बुवाई का सर्वोत्तम समय अक्टूबर के अंत में, जबकि उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र में नवम्बर का द्वितीय पखवाड़ा उपयुक्त होता है। क्योंकि इस समय यहाँ पर्याप्त नमी बुवाई के समय होती है।
बीजदर
छोटे दाने 40-45 कि.ग्रा. प्रति हे.
बड़े दाने 55-60 कि.ग्रा. प्रति हे.
ताल क्षेत्र 60-80 कि.ग्रा. प्रति हे.
बीजशोधन
बीज जनित फफूंदी रोगों से बचाव के लिए थीरम़ एवं कार्बेन्डाजिम (2:1) से 3 ग्राम अथवा थीरम 3.0 ग्राम अथवा कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर लें। तत्पश्चात कीटों से बचाव के लिए बीजों को क्लोरोपाइरीफास 20 ई.सी., 8 मि.ली. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर लें।
बीजोपचार
नये क्षेत्रों में बुआई करने पर बीज को राइजोबियम के प्रभावशाली स्ट्रेन से उपचारित करने पर 10 से 15 प्रतिशत की उपज वृद्धि होती है। 10 कि.ग्रा. मसूर के बीज के लिए राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट पर्याप्त होता है। 100 ग्रा. गुड़ को 1 ली. पानी में घोलकर उबाल लें। घोल के ठंडा होने पर उसमें राइजोबियम कल्चर मिला दें। इस कल्चर में 10 कि.ग्रा. बीज डाल कर अच्छी प्रकार मिला लें ताकि प्रत्येक बीज पर कल्चर का लेप चिपक जायें। उपचारित बीज को कभी भी धूप में न सुखायें व बीज उपचार दोपहर के बाद करें। राइजोबियम कल्चर न मिलने की स्थिति में उस खेत से जहां पिछले वर्ष मसूर की खेती की गयी हो 100 से 200 कि.ग्रा. मिट्टी खुरचकर बुआई के पूर्व खेत में मिला देने से राइजोबियम बैक्टेरिया खेत में प्रवेश कर जाता है और अधिक वातावरणीय नत्रजन का स्थिरीकरण होने से उपज में वृद्धि होती है। ताल क्षेत्र में राइजोबियम उपचार की आवश्यकता कम रहती है।
बुआई विधि
बुआई देशी हल/सीड ड्रिल से पंक्तियों में करें। सामान्य दशा में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी व देर से बुआई की स्थिति में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेमी ही रखें पौधे से पौधे की बीच की दूरी 5 सेमी रखे। बीज उथला (3-4 सेमी) बनाना चाहिए। उतेरा विधि से बोआई करने हेतु कटाई से पूर्व ही धान की खड़ी फसल में अंतिम सिंचाई के बाद बीज छिटक कर बुआई कर देते है। इस विधि में खेत तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती, किन्तु अच्छी उपज लेने के लिए सामान्य बुआई की अपेक्षा 1.5 गुना अधिक बीज दर का प्रयोग करें। ताल क्षेत्र में वर्षा का पानी हटने के बाद, सीधे हल से बीज नाली बना कर बुआई की जा सकती है। गीली मिट्टी वाले क्षेत्रों में जहां हल चलाना संभव न हो बीज छींट कर बुआई कर सकते हैं।
उर्वरक
मृदा परीक्षण के आधार पर समस्त उर्वरक अंतिम जुताई के समय हल के पीछे कूड़ में बीज की सतह से 2 से.मी. गहराई व 5 से.मी. साइड में देना सर्वोत्तम रहता है। सामान्यत: मसूर की फसल को प्रति हेक्टेयर 20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 20 कि.ग्रा. गंधक की आवश्यकता होती है। नत्रजन एवं फॉस्फोरस की संयुक्त रूप से पूर्ति हेतु 100 कि.ग्रा. डाइ अमोनियम फॉस्फेट प्रति हे. की दर से प्रयोग करने पर उत्तम परिणाम प्राप्त होते हैं।
गौण एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों
गंधक (सल्फर) – 20 कि.ग्रा. गंधक (154 कि.ग्रा. जिप्सम/फॉस्फो-जिप्सम या 22 कि.ग्रा. बेन्टोनाइट सल्फर) प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के समय प्रत्येक फसल के लिये देना पर्याप्त होगा। कमी ज्ञात होने पर लाल बलुई मृदाओं हेतु 40 कि.ग्रा. गंधक (300 कि.ग्रा. जिप्सम/फॉस्फो-जिप्सम या 44 कि.ग्रा. बेन्टोनाइट सल्फर) प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करें।
बोरॉन-1.6 कि.ग्रा. बोरॉन (16.0 कि.ग्रा. बोरेक्स या 11 कि.ग्रा. डाइसोडियम टेट्राबोरेट पेन्टाहाइडे्रट) प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के समय मेंं प्रत्येक फसल में दें।
अन्तरवर्तीय खेती
सरसों की 6 पंक्तियों के साथ मसूर की दो पंक्तियां व अलसी की 2 पंक्तियों के साथ मसूर की एक पंक्ति बोने पर विशेष लाभ कमाया जा सकता है।
सिंचाई
ताल क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में वर्षा न होने पर अधिक उपज लेने के लिए बुआई के 40-45 दिन बाद व फली में दाना भरते समय सिंचाई करना लाभप्रद रहता है।
खरपतवार नियंत्रण
बुआई के तुरन्त बाद (48 घंटे के अंदर) खरपतवारनाशी रसायन पेन्डीमिथालीन 30 ई.सी. का 0.75-1 किग्रा सक्रिय तत्व (2.5-3 ली. व्यापारिक मात्रा) प्रति हे. की दर से छिडक़ाव करें। बुआई से 25-30 दिन बाद एक निंराई करना पर्याप्त रहता है यदि दूसरी निंराई की आवश्यकता है तब बुवाई के 40-45 की फसल अवस्था पर करें।
कटाई एवं मड़ाई
जब 70-80 प्रतिशत फलियां पक जाएं, हंसिया से कटाई आरम्भ कर दें।
उपज
15-20 क्विन्टल उपज प्राप्त होती है।
भण्डारण
भण्डारण के समय दानों में नमी 10 प्रतिशत से अधिक नहीं हो। भण्डार गृह में 2 गोली एल्युमिनियम फास्फाइड/टन रखने से भण्डार कीटों से सुरक्षा मिलती है।