“ककड़ी की खेती वैज्ञानिक दृष्टिकोण से – बढ़ाए उत्पादन, बचाए संसाधन”
लेखक: अक्षय तिवारी, दीपिका यादव, दिव्या राठोड, योगेश राजवाड़े, के वि रमना राव, सुनियोजित कृषि विकास केंद्र, केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल
07 अप्रैल 2025, भोपाल:“ककड़ी की खेती वैज्ञानिक दृष्टिकोण से – बढ़ाए उत्पादन, बचाए संसाधन” – ककड़ी (कुकुमिस सैटिवस) भारत की प्रमुख सब्जियों में से एक है और एक प्रमुख नगदी फसल है, जिसकी मांग साल भर बनी रहती है। ककड़ी में भरपूर मात्रा में फाइबर और पानी पाया जाता है एवं ककड़ी विटामिन ए, सी, के, पोटेशियम, मैग्नीशियम और ल्यूटीन का अच्छा स्रोत है| ककड़ी का प्रयोग सलाद, आचार और अन्य व्यंजनों में किया जाता है और वर्त्तमान समय में इसका प्रयोग सौंदर्य प्रसाधनों में भी बढ़ रहा है।
ककड़ी की परंपरागत खेती में मौसम, जलवायु परिवर्तन, जल की कमी, फसल अवधि, खरपतवार नियंत्रण, रोग और कीट-पतंगों जैसी समस्याएं आमतौर पर उत्पादन को प्रभावित करती हैं। संरक्षित कृषि के विभिन्न आयामों को अपनाकर हम इन चुनौतियों से बचकर अधिक पैदावार और संसाधनों की बचत कर सकते है|
संरक्षित कृषि एक वैज्ञानिक और आधुनिक कृषि तकनीक है, जिसमें फसलों को प्राकृतिक दुष्प्रभावो से बचाने के लिए ग्रीनहाउस, पॉलीहाउस, शेड नेट जैसी संरचनाओं के तहत कृत्रिम आवरण मे उगाया जाता है, जिससे फसलो को एक नियंत्रित और अनुकूल वातावरण मिलता है। यह तकनीक किसानों को मौसम की अनिश्चितताओं, कीटों और रोगों के प्रकोप से बचाते हुए फसल की अधिक पैदावार और बेहतर गुणवत्ता प्राप्त करने में मदद करती है।
ककड़ी उत्पादन संरक्षित खेती की प्रमुख विशेषताएँ :
- नियंत्रित वातावरण – तापमान, नमी और वायु संचार को नियंत्रित कर फसल को अनुकूल वातावरण प्रदान किया जाता है।
- सिंचाई जल और पोषक तत्वों की बचत – ड्रिप सिंचाई और फर्टिगेशन जैसी तकनीकों से जल और उर्वरकों का कुशल उपयोग होता है।
- रोग और कीट नियंत्रण – सीमित बाहरी संपर्क के कारण फसल में रोग एवं कीट के प्रकोप की संभावना कम होती है।
- अधिक उत्पादन और गुणवत्तायुक्त फसल – संरक्षित खेती में सामान्य खेती की तुलना में 30-50% अधिक पैदावार होती है।
- सालभर खेती संभव – किसी भी मौसम में उत्पादन किया जा सकता है, जिससे बाजार में निरंतर आपूर्ति बनी रहती है।
भूमि की तैयारी के चरण:
- भूमि का प्रकार– ककड़ी के लिए अच्छी जल निकासी वाली हल्की दोमट या बलुई मृदा सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इस प्रकार की मृदा से ककड़ी के पौधों की जड़ो में वायु संचार सुगमता से करती है।
- pH स्तर: ककड़ी के लिए मृदा हल्की अम्लीय या उदासीन (pH 6.0 से 7.0) प्रकृति की होना चाहिए|
- जुताई: पहले प्राथमिक भू-परिष्करण (हल्की जुताई करें, फिर गहरी जुताई करें) करे,जिससे मिट्टी ढीली हो जाए और उसमें वायु का संचार हो सके। यह ककड़ी के पौधों की जड़ों को स्वस्थ विकास के लिए उत्तम वातावरण प्रदान करता है।
- गोबर की खाद या केचुआ खाद: मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ और मृदा की जलधारण क्षमता को बढ़ने के लिए और पौधों को आवश्यक पोषक प्रदान करने के लिए गोबर की खाद या केचुआ खाद का प्रयोग करे।
- बेड सिस्टम: ककड़ी के पौधों के लिए 10-15 सेमी ऊँचाई वाले बेड का उपयोग करें। बेड बनाने से पौधों के लिए बेहतर जल निकासी होती है और उनकी जड़ों को विकास के लिए अधिक जगह मिलती है।
- पंक्तियों की दूरी: 1.0 – 1.5 मीटर (संकर किस्मों के लिए),पौधों की दूरी: 30 – 45 सेंटीमीटर
मल्चिंग: ककड़ी की खेती में मल्चिंग का प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता है। मल्चिंग से मिट्टी में नमी बनी रहती है जिससे मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है और खरपतवार पर नियंत्रण होता है। पॉलीथिन मल्च, स्ट्रॉ मल्च या घास का मल्च उपयोग कर सकते हैं।मलच करते समय,स्ट्रॉ या घास को खेत में अच्छे से फैला लें ताकि ककड़ी के पौधों की जड़ें ठंडी और नम बनी रहें।
बीज चयन और प्रबंधन:
अच्छे उत्पादन के लिए उन्नत संकर और उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन आवश्यक है। विश्वसनीय कंपनियों या सरकारी कृषि केंद्रों से प्राप्त बीज ही उपयोग करें, बीज का अंकुरण प्रतिशत 80-90% या उससे अधिक होना चाहिए,बीजों को हाथ में लेकर देखें, वे स्वस्थ और कठोर होने चाहिए,बीजों में नमी की मात्रा 8-10% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- किस्मे: हाइब्रिड(सीडलेस)- इन किस्मो में परागण की आवश्यकता नही होती है। यह किस्मे मुख्य रूप से मध्यप्रदेश के लिए है। केसर, शिमला, अर्का राजहंस, पूसा दया, नाजिया, चित्रा, प्रभु, मालनी, सुमित्रा, जीजेएफ 1 हाइब्रिड, पंत शुभर्णा, फदिया ऍफ़-1
- बीज उपचार – रासायनिक उपचार के लिए बीज को थायरम या बाविस्टिन से उपचारित करें और जैविक उपचार के लिए ट्राइकोडर्मा या पीएसबी बैक्टीरिया का उपयोग करे|
- नर्सरी की तैयारी:प्लास्टिक की ट्रे का उपयोग करें,प्रत्येक सेल के नीचे ड्रेनेज होल होना जरूरी है’ जिससे पानी जमा न हो।नर्सरी का माध्यम कोकोपीट 50%,वर्मी कम्पोस्ट 25%, परलाइट या रेत 15% और गोबर की खाद या पत्तों की खाद 10% के मिश्रण का उपयोग करे| ट्रे को 80% तक तैयार मिट्टी मिश्रण से भरें,प्रत्येक सेल में 1 बीज 1-1.5 सेमी गहराई पर डालें, हल्की सिंचाई करें (स्प्रे से पानी दें)। 25-30°C पर 3-5 दिनों में अंकुरण शुरू हो जाता है।
- नर्सरी पौध की रोपाई:पौध की आयु: 20-25 दिन,पौध की ऊँचाई: 10-15 सेमी, 2-3 सच्चे पत्तों के साथ,खेत में रोपाई का समय:सुबह या शाम को करें, दोपहर में रोपाई न करें,पहले 2-3 दिन हल्की सिंचाई करें।
ककड़ी की संरक्षित खेती में स्टाकिंग और ट्रेलिसिंग का महत्व:
संरक्षित खेती में स्टाकिंग और ट्रेलिसिंग का विशेष महत्व है क्योंकि ककड़ी एक बेल वाली फसल है, जिसे सहारे की आवश्यकता होती है। ट्रेलिसिंग प्रणाली अपनाने से पौधे स्वस्थ रहते हैं, रोग और कीट प्रकोप कम होता है।स्टाकिंग का अर्थ पौधे को सहारा देना होता है। इसमें लकड़ी, बांस, तार या प्लास्टिक की जाली (नेट) का उपयोग करके ककड़ी की बेलों को ऊंचाई पर चढ़ाया जाता है।
ट्रेलिसिंग करने की विधि: खेत में 1.5 से 2 मीटर ऊँचे खंभे (बांस/लोहे) 3-4 मीटर की दूरी पर लगाएं इनके बीच मजबूत तार या नेट लगाएं।जब पौधे 30-40 सेमी ऊँचे हो जाएं, तो उन्हें धीरे-धीरे तार/नेट की ओर बढ़ाएं नरम धागों या प्लास्टिक क्लिप से बेलों को हल्के से बांधें।
सिंचाई प्रबंधन:
ककड़ी एक अधिक पानी मांगने वाली फसल है, लेकिन अनियंत्रित सिंचाई से रोग, जलभराव और पोषक तत्वों की कमी हो सकती है।फूल और फल बनने की अवस्था में पानी की मात्रा बढ़ाएं।फल बनते समय पानी की कमी के कारण ककड़ी कडवी हो जाती है|
ड्रिप लाइन की व्यवस्था: संरक्षित खेती में ड्रिप सिंचाई सबसे प्रभावी और जल-संरक्षण तकनीक है। इससे पौधों को आवश्यकतानुसार पानी और पोषक तत्व मिलते है।.ड्रिप सिंचाई का समय और मात्रा:गर्मियों में प्रतिदिन 4-5 लीटर प्रति पौधा,ठंडे मौसम में प्रतिदिन 2-3 लीटर प्रति पौधा देना चाहिए|ड्रिपर का प्रवाह दर 2 – 4 लीटर प्रति घंटा रहनी चाहिए|
फर्टिगेशन: उर्वरक + सिंचाई का सही तालमेल है,ड्रिप सिंचाई के माध्यम से तरल उर्वरकों को सीधे जड़ों तक पहुँचाना सबसे प्रभावी पोषण तकनीक है।
फसल अवस्था | नाइट्रोजन (N) किग्रा/हे | फास्फोरस (P) किग्रा/हे | पोटाश (K) किग्रा/हे | अतिरिक्त पोषक तत्व |
अंकुरण एवं प्रारंभिक वृद्धि | 5-10 | 10-15 | 5 | ज़िंक, बोरॉन (स्प्रे) |
शाकीय वृद्धि (पत्तों और टहनियों का विकास) | 15-20 | 10 | 10-15 | कैल्शियम नाइट्रेट, मैग्नीशियम सल्फेट |
फूल और फल सेट अवस्था | 20-25 | 10-15 | 15-20 | बोरॉन, ज़िंक (स्प्रे) |
फल वृद्धि और परिपक्वता | 10-15 | 5-10 | 10-15 | सूक्ष्म पोषक तत्व (फोलियर स्प्रे) |
तोड़ाई और निरंतर उपज | 10-12 | 5-7 | 8-10 | ह्यूमिक एसिड |
पाली हाउस में संरक्षित ककड़ी की खेती के दौरान नियंत्रित किए जाने वाले प्रमुख कारक तापमान नियंत्रण दिन का आदर्श तापमान 25-30°C और रात का 18-22°C रखा जाता है।अधिक तापमान होने पर शेड नेट,निष्कासन पंखा,कूलिंग पैड और फॉगिंग सिस्टम का उपयोग किया जाता है,कम तापमान में हीटर या पॉलीथीन मल्च का उपयोग किया जाता है। आर्द्रता नियंत्रण आर्द्रता का स्तर 60-80% तक बनाए रखना आवश्यक होता है,अधिक नमी होने पर वेंटिलेशन (छत या साइड वेंट) और डिह्यूमिडिफायर का उपयोग किया जाता है।कम नमी होने पर फॉगर्स का प्रयोग किया जाता है। प्रकाश नियंत्रण 10-12 घंटे की प्राकृतिक रोशनी जरूरी होती है, पॉलीहाउस में ककड़ी के इष्टतम विकास के लिए, दैनिक प्रकाश समाकलन (डीएलआई) 20 से 30 मोल/मी²/दिन का लक्ष्य रखें, जिसमें इष्टतम 30 मोल/मी²/दिन और न्यूनतम 15 मोल/मी²/दिन हो सर्दियों में अतिरिक्त LED ग्रो लाइट्स का प्रयोग किया जाता है,गर्मी में शेड नेट (50-75%) का उपयोग किया जाता है ताकि अत्यधिक धूप न लगे। फर्टिगेशन ड्रिप सिस्टम के माध्यम से पानी और पोषक तत्व की सही मात्रा दी जाती है।
रोग एवं कीट प्रबंधन: संरक्षित खेती में कीटों और रोगों का प्रकोप कम होता है, फिर भी सतर्कता आवश्यक है।
प्रमुख रोग और उनके समाधान | |||
रोग | लक्षण | समाधान | चित्र |
पाउडरी मिल्ड्यू | सफेद फफूंद जैसी परत पत्तों पर दिखती है। | सल्फर स्प्रे (0.2%) या ट्राइकोडर्मा का छिड़काव। | |
डाउनी मिल्ड्यू | पीले धब्बे और पत्तों का मुरझाना। | मैन्कोजेब + मेटालेक्सिल का छिड़काव। | |
वायरस रोग (CMV – ककड़ी मोज़ेक वायरस) | पत्तों पर सफेद धारियाँ और पौधों की धीमी वृद्धि। | बीज उपचार + रोगग्रस्त पौधों को हटाएं। | |
जड़ सड़न | जड़ों का गलना और पौधों का झुकना। | ट्राइकोडर्मा विरिडे से उपचार करें। | |
प्रमुख कीट और नियंत्रण | |||
कीट | लक्षण | समाधान | |
सफेद मक्खी | पत्तों पर चिपचिपा पदार्थ, वायरस फैलाने वाला कीट। | नीम तेल 5ml/L पानी में मिलाकर स्प्रे करें। | |
थ्रिप्स | पत्तों का मुड़ना और विकृति आना। | फिप्रोनील 1ml/L पानी में छिड़काव करें। | |
फल मक्खी | फल में छोटे छेद और अंदर खराब होना। | फेरोमोन ट्रैप और जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें। |
ककड़ी की प्रति एकड़ उपज – वैज्ञानिक विश्लेषण
खुले खेत में उपज पोली हाउस की तुलना में लगभग 30-50% ही होती है और शेड नेट हाउस में उपज पोली हाउस की तुलना में लगभग 70-80% होती है जबकि उचित फर्टिगेशन, सिंचाई, ट्रेलिसिंग और रोग प्रबंधन से पॉलीहाउस में प्रति एकड़ 400-450 क्विंटल तक उत्पादन संभव है I
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