जानिये, टमाटर की खेती में स्टैकिंग विधि जिससे दुगुना उत्पादन होगा
14 जुलाई 2022, टीकमगढ़: जानिये, टमाटर की खेती में स्टैकिंग विधि जिससे दुगुना उत्पादन होगा – टमाटर की बहुत सी किस्में अलग-अलग कम्पनियों एवं आई.सी.ए.आर., आई.आई.एच.आर., बैंगलोर द्वारा अधिक उत्पादन देने वाली एवं त्रिगुणित रोगरोधी किस्म अर्कारक्षक एवं अर्कासम्राट विकसित की है लेकिन किसान को उत्पादन तकनीक की सही जानकारी का आभाव होने के कारण या समय पर कीट-व्याधियों का उचित प्रबंधन न करने के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ता है।
टमाटर की रोपणी तैयार कर रोपाई से पहले फफूंदनाशक दवा कार्बेण्डाजिम 12% + मेकोजेब 63%, डब्ल्यू.जी. 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर जड़ो को उपचरित करने के साथ ही खरीफ मौसम में टमाटर के फलों के उत्तम व आकर्षक रंग, सड़ने से बचाने, फलों को उचित आकार के लिए सहारा देना आवश्यक होता है। चूंकि टमाटर का पौधा शाकीय होता है इसलिए लदे हुए फलों का भार सहन नहीं कर पाता है।
जब हम सिंचाई करते हैं तो नमी के कारण फल सहित इसकी शाखायें जमीन पर गिर जाती है यदि पौधों को सहारा न दिया जाय तो फल मिट्टी के सम्पर्क में आने पर सड़ जाता है, फल गुणवत्ताहीन हो जाता है, जिससे बाजार मूल्य में गिरावट हो जाती है ।
स्टेकिंग पद्धति
यदि किसान टमाटर की खेती सहारा देकर (स्टेकिंग पद्धति ) से नही करते हैं तो पैदावार में लगभग 30-35% प्रति हेक्टेयर कमी आ जाती है। कतार में 5 मीटर के अन्तराल पर 2 मी. ऊंचे बाँस लगा देते हैं फिर इन बाँसों में 3-4 पतले तार इस प्रकार से बांधते हैं कि पहला तार जमीन से लगभग 45 सेमी ऊँचाई पर रहें एवं शेष तार 30-30 सेमी. की ऊंचाई पर इस तरह बांधते हैं कि एक मण्डप जैसी आकृति बन जाये। इन तारों में सुतली बांधकर सुतली के नीचे जाने वाले छोर पर छोटी-छोटी खुटियाँ बाँधकर उस खुटी के पौधे के बगल में लगा देते हैं जिससे पौधे सुतली के सहारे ऊपर चढ़ सके।
रोग नियंत्रण
वैज्ञानिकों ने बताया कि टमाटर में पत्ताधब्बा व फलसड़न, लघुपत्र रोग उकठा या म्लानि जीवाणु रोग ज्यादा फसल को हानि पहुँचाते हैं। पत्तीधब्बा व फलसड़न से पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के गोल एवं अनियमित आकार के धब्बे एवं इन पर काले रंग की बिन्दू के समान फफूंदी संरचनायें दिखाई देती हैं। फलों में गड्ढेदार धब्बे व फल सड़ने लगते है। लघुपत्र रोग से ग्रसित पत्तियाँ अत्याधिक छोटी एवं समूह में दिखाई देती है तथा पौधों में फूल नहीं लगते हैं। म्लानि जीवाणु रोग से अचानक पौधे मुरझा कर सूख कर मर जाते हैं। इन बीमारियों से बचाव के लिये रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन एवं बीज और रोपणी का फफूंदनाशक दवा मेंकोजेब 3 ग्रा./ली. पानी के घोल से उपचार कर रोपाई करें और चूषक कीटों से बचाव के लिये मेटासिस्टॉक्स या डाइमेथोएट या इमिडाक्लोप्रिड दवाओं का छिड़काव करें। फल मक्खी कीट के नियंत्रण हेतु फ्लूबेन्डामाइड 20% डब्ल्यू.जी. दवा का छिड़काव करें।
कृषि विज्ञान केन्द्र, टीकमगढ़ के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी.एस. किरार, वैज्ञानिक डॅा. एस.के. सिंह, डॉ. यू.एस. धाकड, डॉ. आई.डी. सिंह एवं जयपाल छिगारहा द्वारा स्टैकिंग विधि से टमाटर के विपुल उत्पादन पर कृषको को तकनीकी सलाह दी गयी |
महत्वपूर्ण खबर: सोयाबीन कृषकों को कृषि विभाग की उपयोगी सलाह