जनवरी माह के लिये कुछ महत्वपूर्ण सुझाव
एक अनुमान के अनुसार गेहूं की फसल में खरपतवारों से पैदावार में 25-30 प्रतिशत की कमी सामान्य अवस्था में जाती है। विशेष परिस्थितियों में, अत्यधिक प्रकोप होने पर, कभी – कभी तो पूरी की पूरी फसल नष्ट हो जाती है। गेहूं की फसल में, ज्यादातर चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार उगते हैं, जैसे- बथुआ, अकड़ी, जंगली पालक, हिरनखुरा, पत्थर चट्टा इत्यादि। कहीं – कहीं संकरी पत्ती वाले खरपतवार भी जैसे- जंगली जई, गुल्ली डंडा इत्यादि भी गेहूं की फसल में उग आते है। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिये मेटसल्फ्यूरान 8 ग्राम प्रति एकड़ सरफेस्टेन्ट के साथ घोल बनाकर, पहली सिंचाई के बाद, जब खेत में चलते बनने लगे, छिड़काव करें। ध्यान रखें 25 से 35 दिनों के बीच, नींदनाशक का छिड़काव हो जाना चाहिये। 40-45 दिनों के बाद की अवस्था में नींदानाशक का छिड़काव करने पर बालियों में विकृति आने की संभावना रहती है । 8 ग्राम मेटसल्फ्यूरान एवं 200 मि.ली. सरफेस्टेन्ट, 8 (आठ) नाप पानी में किसी बाल्टी में घोल लें, फिर एक नाप घोल स्प्रेयर में डालकर, स्प्रेयर को पूरा भरें एवं खेत में समान रूप से छिड़काव करें। नींदानाशक का छिड़काव फ्लेट फेन या फ्लैट जेट नॉजल से करें। सामान्य नॉजल से एक समान छिड़काव नहीं हो पाता। संकरी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिये आइसोप्रोट्यूरॉन 400 मि.ली. या सलफो – सल्फूरॉन 75 प्रतिशत डब्ल्यू. जी. 13.5 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें। बीजोत्पादक किसान नींदानाशक का प्रयोग अनिवार्य रूप से करें, वरना बीज के साथ अकड़ी एवं अन्य नींदा के दानें मिल जाने पर प्रयोगशाला परीक्षण में आपका बीज फेल हो सकता है। जिससे आपको आर्थिक नुकसान होगा। खरपतवारों के कारण पैदावार तो कम होती ही है। इसके अलावा उपज की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। नींदानाशक का घोल हमेशा साफ पानी में बनायें, गंदे-मटमैले पानी में घोल बनाने पर इसका प्रभाव कम हो जाता है। छिड़काव करते समय हवा के रुख का भी ध्यान रखें।
रबी फसलों में जल प्रबंधन
रबी मौसम की प्रमुख फसलों में गेहूं, चना, सरसों, मसूर इत्यादि में क्रांंतिक अवस्थाओं में सिंचाईयां करें। गेहूं की फसल में पहली सिंचाई बोनी के 20-22 दिनों बाद, शीर्ष जड़े निकलने की अवस्था में, दूसरी सिंचाई बोनी के 40-45 दिनों बाद, कल्ले निकलने की अवस्था में, तीसरी सिंचाई गर्भावस्था के समय, बोनी के 60-65 दिनों बाद, चौथी सिंचाई बालियां निकलते समय, बोनी के 80-85 दिनों बाद, पांचवी सिंचाई फूल आने की अवस्था में, और छठवीं सिंचाई दानों में दूध भरने की अवस्था में करें। कम सिचाइयां उपलब्ध होने पर, पहली सिंचाई शीर्ष जड़ें निकलने की अवस्था में, दूसरी गर्भावस्था में एवं तीसरी दानों में दूध भरने की अवस्था में करें। शीर्ष जडं़े निकलने एवं दानों में दूध भरने की अवस्था में अनिवार्य रूप से सिंचाई करना चाहिये।
चने एवं मसूर की फसल में पहली सिंचाई फूल आनें के समय एवं दूसरी सिंचाई फलियों में दानें भरते समय करें, सरसों की फसल में पहली सिंचाई बढ़वार के समय बोनी के 30 दिनों बाद एवं दूसरी सिंचाई फलियों में दाने भरने की अवस्था में करें ।
गेहॅू में यूरिया की टॉप ड्रेसिंग करें
पहली एवं दूसरी सिंचाई के समय गेहॅू की खड़ी फसल में यूरिया की टॉप ड्रेसिंग करें । खेत की मिट्टी यदि भारी है तो सिंचाई के पूर्व एवं मिट्टी यदि हल्की है तो सिंचाई के बाद, खेत में जब चलते बनने लगे, तब खड़ी फसल में यूरिया का प्रयोग करें। सिंचित गेहूं की किस्मों जैसे डब्ल्यू. एच.147 जी. डब्ल्यू 273 इत्यादि में डेढ़ बोरी (70-75 कि.) एवं अर्धसिंचित गेहॅू की किस्में जैसे-एच.डब्ल्यू.2004, सुजाता, एच.आई. 1500 इत्यादि में 35-40 किलो यूरिया का प्रयोग करें, उपरोक्त मात्रायें प्रति एकड़ है।
चने में इल्लियों का नियंत्रण करें
चने की फसल में इल्लियों का प्रकोप बहुतायत से पाया जाता है। नियंत्रण के लिये समन्वित मिले – जुले उपाय अपनायें, फसल के बीच टी (ञ्ज) आकार की खूंटियां गाड़ें । इन खूंटियों पर कोलवार नाम का पक्षी आकर बैठते है । जो कीट भक्षी है और इल्लियां इनका प्रिय भोजन होती है। इल्लियों के नियंत्रण का यह देशी और प्राकृतिक इलाज हैे। इसे शुरू से ही अपनायें। चने के खेत के पास अफ्रीकी गेंदा व धनिया लगाकर रखें इससे चने की इल्ली के अंडों व इल्ली के परजीवियों की संख्या बढ़ाने में सहायता मिलेगी जो प्राकृतिक रूप में इनको नियंत्रित करने में सहायक होती है। रसायनिक नियंत्रण में लेम्डा- साइहेलोथ्रिन 5 प्रतिशत ई.सी.या ट्राईजोफॉस 40 प्रतिशत ई.सी. 30 मि.ली. प्रति स्प्रेयर (15 लीटर पानी) में घोल बनाकर छिड़काव करें। मिथाइल पैराथियान या क्विनालफॉस डस्ट भी चने की इल्लियों के नियंत्रण में कारगर है। 10 किलो डस्ट प्रति एकड़, डस्टर मशीन से प्रात: या शाम के समय भुरकाव करें। इल्लियों के लिये घोल की बजाय डस्ट ज्यादा करगर है।
सरसों में माहो कीट का नियंत्रण
विशेषकर देर से बोई गई फसल में माहो कीट का प्रकोप विशेष रूप से पाया जाता है। नियंत्रण के लिये इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. कीटनाशक 5 मि.ली. प्रति स्प्रेयर (15 लीटर) में घोल बनाकर एक सार छिड़काव करें। फलियों में दाना भरने के समय सिंचाई करें।
उद्यानिकी फसलें
शीतकालीन सब्जियों – फूलगोभी, पत्तागोभी, टमाटर, बैगन, मिर्च इत्यादि में आवश्यकता अनुसार पौध संरक्षण उपाय अपनायें। अपनी बगिया खरपतवारों से मुक्त रखें। बगिया साफ-सुथरी रहने से कीट -व्याधियों का प्रकोप कम होता है । सप्ताह में एक दिन, अनिवार्य रूप से कीटनाशक/ फफूंद -नाशक का छिड़काव करें। रस चूसने वालें कीटों के नियंत्रण के लिये इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. 5 मि.ली. प्रति स्प्रेयर (15 लीटर पानी) का छिड़काव करें। काटने -कुतरने एवं फल छेदक कीटों के नियंत्रण के लिये ट्रायजोफॉस 40 प्रतिशत ई.सी. दवा 25 मि.ली. प्रति स्प्रेयर घोल बनाकर छिड़काव करें। फलों एवं पौधों में सडऩ-गलन के लिये फफूंदनाशक रिडोमिल या बाविस्टीन 30 ग्राम प्रति स्प्रेयर का छिड़काव करें। पत्तों एवं फलों में दाग-धब्बे या बीमारियों के लक्षण दिखें तो स्ट्रेप्टोसायक्लिन दवा 2 ग्राम प्रति स्प्रेयर मिलाया जा सकता है।