आम के प्रमुख कीटों का समुचित प्रबंधन
- सौरभ , पूजा साहू, खिलेंद्र कुमार सोनबोईर
राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय,
ग्वालियर (म.प्र.)
31 दिसंबर 2021, आम के प्रमुख कीटों का समुचित प्रबंधन – आम पूरे विश्व में अधिक पसंद किये जाने वाला रसीला फल है जो भारत में फलों के राजा के नाम से विख्यात है। आम का वैज्ञानिक नाम मेंगीफेरा इंडिका है। आम भारत, पाकिस्तान और फिलीपींस का राष्ट्रीय फल है और बांग्लादेश में आम को राष्ट्रीय वृक्ष का दर्जा दिया गया है। भारत पूरे विश्व में आम के क्षेत्र एवं उत्पादन में प्रथम स्थान में है जो कि विश्व में आम के कुल उत्पादन का अकेला भारत लगभग 41 प्रतिशत योगदान करता है। आम के उत्पादन में उत्तरप्रदेश प्रथम व क्षेत्र में आंध्रप्रदेश प्रथम स्थान में हैै। छत्तीसगढ़ में लगाई जाने वाली कुछ उन्नत किस्में: दशहरी, लंगड़ा, आम्रपाली, बाम्बे ग्रीन, मल्लिका, सुन्दरजा, तोतापरी, नीलम, महमूद बहार एवं छत्तीसगढ़ नन्दीराज।
प्रमुख कीट और उनका प्रबंधन: आम का फुदका या भुनगा – यह कीट आम में सर्वाधिक नुकसान पहुंचाता है। निम्फ (शिशु) एवं व्यस्क कीट के रस चूसने के परिणामस्वरूप कोमल प्ररोहों, पत्तियों, पुष्पक्रमों तथा छोटे फल गिरने लगते हैं।
नियंत्रण:
- आम की तोतापरी किस्म फुदका से लगभग मुक्त होते हैं। अत: इस किस्म की बुवाई करें।
- जैसे ही फुदके का प्रकोप शुरू हो एवं इनकी संख्या 5-10 प्रति बौर हो, तब इमिडाक्लोप्रिड का पहला छिडक़ाव 1 मिली. प्रति ली. पानी की दर से करें (जब पुष्प गुच्छा 1-10 से.मी. का हो)।
- दूसरा छिडक़ाव पुष्प गुच्छ खिलने से पूर्व या फल लगने के बाद (आवश्यकतानुसार) प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. (1-5 मि.ली. प्रति ली. पानी में) या थायोमेथोक्साम 25 डब्लू जी. (0-5 ग्रा. प्रति ली. पानी में) का करें।
गुजिया (मिली बग)
गुजिया के अननिगत निम्फ और व्यस्क कीट कोमल भागों व पुष्प से रस चूसते हैं जिसके फलस्वरूप पत्तियाँ एवं फूल गिर जाते हैं और फल स्थापना नहीं हो पाता है।
नियंत्रण:
- वृक्ष के चारों ओर निम्फ के निकलने के पूर्व एल्कथीन शीट (प्लास्टिक बैंड के साथ चिपचिपा पदार्थ) 1 मीटर ऊपर से बैंड को नवम्बर के अंतिम सप्ताह के दौरान लगाना चाहिए जिससे निम्फ के निकलने पर एल्कथीन शीट में चिपक जायें।
- क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई. सी. का 20 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से धोवन सोडा के मिश्रण बनाकर छिडक़ाव करें।
आम शाखा बेधक
केवल व्यस्क कीट मुख्य तने या शाखा में टेढ़े-मेढ़े सुरंग का निर्माण होता है जिसके परिणामस्वरूप तना एवं शाखायें सूख जाती हंै।
नियंत्रण:
- मुख्य तने में छेद के अंदर कीटों के विष्ठा को निकालें और मिट्टी तेल/पेट्रोल/ क्लोरोफॉर्म का 5 मि.ली. की दर से छेद के अंदर सुई लगायें तथा छेद को कपास या कीचड़ सें बंद कर दें जिससे लार्वा की अंदर ही मृत्यु हो जाती है।
गुठली का घुन
इस कीट के इल्ली (लार्वा) एवं व्यस्क कीट फल के अंदर अपना भोजन निर्माण करता है। कुछ दिन बाद गूदे में घुस जाते हैं और नुकसान पहुँचाते हैं जिससे फल का विकास रूक जाता है।
नियंत्रण:
- वाष्प गर्म उपचार: फलों को 46 °C तापमान पर 160 मिनट के लिये तथा 50°C तापमान पर 120 मिनट के लिए गर्म करने पर फल के अंदर आंतरिक कार्बनडाइ – ऑक्साइड (CO2) बढ़ जाता है और आंतरिक ऑक्सीजन (O2) की दर कम हो जाती है जिसके फलस्वरूप कीट की मृत्यु हो जाती है।
- जब फल नींबू के आकार के हों (2-5-5 सेमी व्यास), तब ऐसीफेट 75 एस.पी. 15 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिडक़ाव करें।
आम के पुराने बगीचे में पानी कब-कब लगायें
आम फल भेदक
फल भेदक फल के मध्य भाग एवं बीज दोनों को प्रभावित करता है किन्तु यह फल को मुख्य रूप से प्रभावित करता है जिससे फल खाने लायक नहीं रह जाता है। जिस स्थान पर फल आपस में एक-दूसरे को जुड़ रहे होते हैं वहां इस कीट की सुंडी जाला बना कर फलों को खाती है। प्रभावित फलों से उत्पन्न कत्थई या काले चिपचिपे धब्बों के रूप में फलों पर देखा जा सकता है। कीट द्वारा उत्पन्न क्षति के स्थानों पर संक्रमण के पश्चात फल सडऩे लगते हैं।
नियंत्रण:
- फल विकास की प्रारंभिक अवस्था में लेम्डासाइलोथ्रिन 5 ई.सी. (1 मिली. प्रति ली. पानी में) या क्विनालफॉस 25 ई.सी. (1.5 मिली. प्रति ली. पानी की दर से) छिडक़ाव करें। प्रथम छिडक़ाव के 15 दिन बाद एक और छिडक़ाव करें। हर छिडक़ाव में कीटनाशी रसायन बदलते रहें जिससे कीटों में रसायन के प्रति प्रतिरोधी क्षमता का विकास न हो सकें।
- बागों से सूखी टहनियों को एवं कीट ग्रसित फलों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए।
पुष्प गुच्छ मिज
- इस कीट के वयस्क हानिकारक नहीं होते हैं। आम के पौधों पर मिज के प्रकोप से तीन चरणों में हानि होती है –
- इसका पहला आक्रमण कली के खिलने की अवस्था में होता है, नये विकसित बौर में अंडे दिए जाने तथा लार्वों द्वारा बौर के मुलायम डंठल में प्रवेश करने से वे आगे से मुड़ जाते हैं। तत्पश्चात प्रकोप की अधिकता में बौर पूर्ण रूप से नष्ट हो जाते हैं। पूर्ण विकसित लार्वा, बौर के डंठल से निकलने के लिए छिद्र बनाते हैं।
- इसका दूसरा आक्रमण फलों के बनने की अवस्था में होता है, इन फलों में अंडे देने तथा लार्वा के प्रवेश करने के फलस्वरूप फल पीले पड़ कर गिर जाते हैं।
- तीसरा प्रकोप बौर को घेरती हुई पत्तियों पर होता है, इसके प्रकोप के फलस्वरूप बौर का विकास रुक जाता है तथा लार्वा के डंठल में प्रवेश करने से बौर टेढ़ा हो जाता है। फूलों के विकसित होने तथा फलों के बनने से पहले ही बौर सूख जाता है।
नियंत्रण:
- गर्मियों में बागों की गहरी जुताई करने से मिट्टी में उपस्थित लार्वा तथा प्यूपा तेज सूर्य के कारण नष्ट हो जाते हैं।
- अप्रैल-मई में कलोरोपाइरीफॉस चूर्ण 1.5 प्रतिशत (250 ग्रा. प्रति वृक्ष) का मिट्टी में प्रयोग करने से भी भूमिगत लार्वा तथा प्यूपा नष्ट करने में सफलता मिलती है।
- डायमिथिएट 30 ई.सी. (2 मि.ली. प्रति ली. पानी में) का कली निकलने की अवस्था में (फरवरी) 15 दिनों के अंतराल पर दो छिडक़ाव करने से इस कीट पर नियंत्रण रखा जा सकता है।
आम के प्रमुख रोग – नियंत्रण