आम के प्रमुख रोग – नियंत्रण
आम का कोयली रोग
आम का कोयली रोग बुहत ही महत्वपूर्ण है तथा इस रोग की समस्या आम के बगीचे में होती है। और यह रोग ज्यादातर उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाना एवं दिल्ली में होता है। अत: इस रोग के लगने से लगभग 25 प्रतिशत तक उत्पादन कम होता है। यह आम के फलों की बीमारी है जो कि यह रोग विकार के कारण होता है इस बीमारी का मुख लक्षण फलों का निचला सिरा मुलायम पड़कर काला हो जाता है तथा बाद में सख्त हो जाता है। यह रोग बोरान की कमी के कारण होता है और यह ईंट के भट्टे के धुयें से निकली सल्फर डाइ आक्साइड गैस द्वारा पैदा होता है।
रोकथाम :
- बागवानी ईंट के भट्टे से लगभग 2 किलो मीटर की अधिक दूरी लगाना चाहिए।
- आम के पौधों पर फूलों के आने से पहले बोरेक्स ञ्च 0.6 प्रतिशत के हिसाब से 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
आम का खर्रा रोग या चूर्णी फफूंद
- यह आम का चूर्णी फफूंद रोग पाउडर के रुप में दिखाई देता है। और इस रोग के लगने से आम का उत्पादन 22-90 प्रतिशत तक कम हो जाता है तथा यह रोग उत्तर प्रदेश में दिसम्बर और मार्च के महीनों में दिखाई देता है। और इस रोग का प्रकोप नयी पत्तियों पर दोनों तरफ अनियमित भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। फूलों, फलों और पत्तियों पर सफेद चूर्ण जैसी फफूंदी उत्पन्न हो जाती है बाद में फूल सूखकर गिर जाते हैं।
रोकथाम:
- रोग ग्रसित पत्तियों को तोड़कर अलग कर दें।
- रोग रहित प्रजातियों की बुवाई करना चाहिए जैसे कि नीलम, जरदालू, जाहाँगीर तथा बंगलोरा आदि।
- कैराथेन 0.1 प्रतिशत या वेटेबल सल्फर 0.25 प्रतिशत फूल आने के पहले छिड़काव करें, और फल बनने के बाद 15-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
कालव्रण रोग
यह आम का सामान्य रोग है तथा भारत में इस रोग के लगने से लगभग 2-40 प्रतिशत तक उत्पादन कम हो जाता है। और यह रोग फफूंद के कारण फैलता है तथा कालव्रण रोग का मुख्य लक्षण पत्तियों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं और बाद में फिर काले धब्बे बड़े आकार में हो जाते हैं। इस रोग के प्रकोप से कोमल पत्तियाँ, शाखायें तथा फूल, फल भी सूख जाते हैं।
रोकथाम :
- आम के पौधे रोग रहित लगवाना चाहिए।
- आम के पेड़ से पत्तियाँ जो गिरती हैं उन्हे संग्रह करके मिट्टी के गड्डे में दबा देना या फिर जला दें।
- कवकनाशी रसायन टोपसीन, काबेन्डाजिम ञ्च0.1 प्रतिशत का छिड़काव करें। तथा इस रोग के नियंत्रण के लिये 5:5:50 का बोरडेक्स मिश्रण का फल आने से दो सप्ताह पहले छिड़काव करें।
जीवाणवीय केंकर
यह रोग एक प्रकार के जीवाणु जैन्थोमोनास मैंजिफेरी से होता है। इस रोग में पत्तियों पर छोटे अनियमित तथा कोणीय उठे हुए जलभरे घाव बनते हैं। बाद में पत्तियां पीली होकर गिर जाती है।
प्रबंधन :
- इसके प्रबंधन के लिए कॉपर फफूंदनाशक का उपयोग करना लाभदायक है।
- फलोद्यान का नियमित सर्वेक्षण करें।
- प्रमाणित नवोद्मभद को ही बुवाई के लिए प्रयुक्त करें।
- फलोंजान में सफाई व्यवस्था को बनाए रखें।
अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग
यह रोग अल्टरनेरिया नामक फफूंद से होता है इस रोग में पत्तियों पर भूरे रंग के गोलाकार धब्बे बनते हैं जो कि बाद में पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं रोग के लक्षण पत्ती की निचली सतह पर दिखाई देते हैं प्रभावित पत्तियां गिर जाती हैं।
रोकथाम :
- इस रोग के उपचार के लिए फलोद्यान में नियमित अंतराल पर कॉपर फफूंदनाशक का छिड़काव करें।
- रोगग्रस्त पादप भागों को इक करके जला देना चाहिए।
आम भारत का राष्ट्रीय फल है। भारत देश में उगाये जाने वाले फलों के कुल क्षेत्रफल के आधे से अधिक भाग में आम की बागवानी की जाती है। भारत में कुल फल उत्पादन क्षेत्र 1.2 मिलियन हेक्टेयर में आम का उत्पादन क्षेत्र लगभग 22 प्रतिशत है तथा उत्पादन 11 मिलियन टन है। हमारे भारत देश के कुछ राज्यों में आम की खेती की जाती है जैसे- उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा एवं दिल्ली सर्वाधिक आम उत्पादक क्षेत्र हैं इसका उपयोग अपरिपक्व तथा परिपक्व दोनों अवस्थाओं में किया जाता है। कच्चे अपरिपक्व फलों का उपयोग चटनी, अचार व जूस बनाने में प्रयोग किया जाता है। पके हुए फलों का उपयोग खाने में तथा अन्य उत्पाद जैसे की जैम, जैली, स्क्वैश, मर्मलैड तथा नेक्टर बनाने में होता है आम के विभिन्न वृद्धि अवस्थाओं में कई प्रकार के रोगों का आक्रमण होता है जिनमें से कुछ प्रमुख रोग व उनका प्रबंधन निम्न प्रकार है-
आम का गुच्छा रोग के लक्षण
आम की नई पत्तियों एवं फूलों की असामान्य वृद्धि, टहनियों पर एक ही स्थान पर अनगिनत छोटी-छोटी पत्तियां निकल आना, बौर के फूलों का असामान्य आकार होना, फूल का गिर जाना, फल निर्माण अवरुद्ध हो जाना, आदि इस रोग के प्रमुख लक्षण है।
गुम्मा रोग दो प्रकार का होता है
आम के पत्तियों का गुम्मा
आम की टहनी पर एक पट्टी के स्थान पर अनगिनत छोटी- छोटी पत्तियों का गुच्छा बन जाना, तने की गाठों के बीच का अंतराल अत्यधिक कम हो जाना, पत्तियों का कड़ा हो जाना। बाद में यह गुच्छा नीचे की ओर झुक जाता है, जो बन्ची टॉप जैसा दिखता है।
आम के फूलों का गुम्मा
इस रोग से ग्रसित बौर की डाली अधिक मोटी एवं अधिक शाखायुक्त हो जाती है जिस पर 2 से 3 गुना अधिक अप्रजायी एवं असामान्य पुष्प बन जाते हैं जो कि फल में परिवर्तित नहीं हो पाते हैं अथवा यदि इन पुष्पों से फल बनता भी है तो शीघ्र ही सूख कर धरती पर गिर जाते हैं।
आम के गुच्छा या गुम्मा रोग का समेकित प्रबंधन :
- इस बीमारी का मुख्य लक्षण यह है कि इसमें पूरा बौर नपुंसक फूलों का एक ठोस गुच्छा बन जाता है।
- आम के पौधे को गुम्मा रोग से बचाने के लिए रोगग्रस्त पुष्पों की मंजरियों को 30-40 सेमी नीचे से कटाई कर दें एवं मिट्टी में खोद कर दबा दें।
- उपचार हेतु प्रारम्भिक अवस्था में जनवरी फरवरी माह में ग्रसित पुष्पों/बौर को तोड़ दें एवं अधिक प्रकोप होने पर एन.ए.ए. 200 पी.पी.एम. वृद्धि होरमोन की 900 मिली प्रति 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर दें।
- कलियाँ आने की अवस्था में जनवरी के महीने में पेड़ के बौर तोड़ देना भी लाभदायक रहता है क्योंकि इससे न केवल आम की उपज बढ़ जाती है अपितु इस बीमारी के आगे फैलने की संभावना भी कम हो जाती है।
- 4 मिलीलीटर प्लानोफिक्स प्रति 9 लीटर पानी में घोलकर फरवरी-मार्च के महीने में छिड़काव करें।
केला के प्रमुख रोग एवं निदान
आम के पुराने बगीचे में पानी कब-कब लगायें