पेड़ लगाने के जुनून में लगी तीसरी पीढ़ी
- (दिलीप दसौंधी, मंडलेश्वर)
14 दिसम्बर 2022, पेड़ लगाने के जुनून में लगी तीसरी पीढ़ी – पर्यावरण के प्रति प्राय: सभी प्रेम और चिंता प्रकट करते हैं, लेकिन बिरले ही ऐसे परिवार होते हैं, जिनके यहाँ पेड़ लगाने की परम्परा को तीसरी पीढ़ी द्वारा भी न केवल निभाया जा रहा है, बल्कि इन पेड़ों के बीच अंतरवर्तीय फसल लेकर आय भी अर्जित की जा रही है। बात हो रही है मंडलेश्वर के मोयदे परिवार की, जो वकालत के क्षेत्र में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। पेड़ लगाने के जूनून ने भी मोयदे परिवार को प्रतिष्ठा दिलाई है।
तीसरी पीढ़ी के युवा अभिभाषक श्री शिशिर मोयदे ने कृषक जगत को बताया कि पेड़ लगाने की परम्परा दादा स्व. श्री सुरेश चंद्र मोयदे ने शुरू की थी, जिसे पिता श्री संजीव मोयदे ने इसे आगे बढ़ाया। अब वे इसे निभा रहे हैं। इसी तरह वकालत के क्षेत्र में भी दादा और पिता के बाद तीसरी पीढ़ी के श्री शिशिर वकील हैं। श्री शिशिर ने बेंगलुरु के एक प्रतिष्ठित कॉलेज से विधि की उपाधि 2017 में हासिल की। आप वकालत के साथ खेती भी करते हैं। मंडलेश्वर में 35 बीघा के खेत में 2018 में नींबू के 600 और जाम के 300 पेड़ लगाए थे। इस वर्ष जाम के बहार की नीलामी से 60 हजार रु मिले। इन पेड़ों के बीच में अंतरवर्तीय फसल के रूप में गेहूं, डॉलर चना और तुअर की फसल लेते हैं। गर्मी में मक्का लगाते हैं। फलों की खेती को प्राथमिकता देने वाला यह परिवार फलों की किस्मों और बीजों को देश भर से एकत्रित करता है। बीज रहित नींबू की किस्म अहमदाबाद से लाए। चयनित देसी पपीता के करीब 750 पौधों के साथ ही आंवले की चकैया किस्म के 300 पौधे 10&10 फीट की दूरी पर हाल ही में लगाए हैं। इसके अलावा इनका आम का बगीचा भी है, जहाँ गत वर्ष आम के 1400 पौधे लगाए हैं, जिसमें 20 प्रजाति के पौधे शामिल हैं,जो करीब 6 फीट के हो गए हैं। केसर किस्म को इंडो-थाई तकनीक से 15&15 फीट की दूरी पर लगाया गया है। इनका कहना है कि आम की किस्म हर जमीन पर नहीं फलती है। कच्छ और महाराष्ट में सफल आम की केसर किस्म सूखे क्षेत्र में भी लग जाती है। आम की खेती के लिए इन्होंने जूनागढ़/गिर में प्रशिक्षण भी लिया है। लगाई गई आम की किस्मों में लंगड़ा, हापुस, राजापुरी, तोतापुरी, सोनापुरी दूध पेड़ा, इमाम पसंद और थाईलैंड का सबसे मीठा आम शामिल हैं।
गत तीन वर्षों से जैविक खेती कर रहे श्री मोयदे ने कहा कि फसलों में जीवामृत, वर्मी कम्पोस्ट और गोबर का खाद इस्तेमाल करते हैं। सिंचाई के लिए कुंआ और नर्मदा की पाइप लाइन भी है, लेकिन उसका कम ही उपयोग होता है। उत्पादित जैविक अनाज को घर के उपयोग के लिए रखने के बाद पहले मोहल्ले, फिर गांव में और अंत में बचने पर आसपास के गांवों में बेचा जाता है।
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