सोयाबीन बीज उत्पादन में कई चुनौतियां
भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान द्वारा, “सोयाबीन प्रजनक बीज उत्पादन ” पर वेबिनार
17 मई 2021, इंदौर । सोयाबीन बीज उत्पादन में कई चुनौतियां – देश की जनता के लिए खाद्यान्न तथा पशुओ के लिए आवश्यक चारा उत्पादन के लिए सभी आदानों में, बीज एक अत्यंत महत्वपूर्ण तथा आवश्यक आदान है जो कि सभी फसलों के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देता है। हाल के कुछ वर्षों में, सोयाबीन फसल के बीज उत्पादन कार्यक्रम में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जैसे बीज गुणन अनुपात में कमी, बीज जीवन क्षमता में कमी , सोयाबीन बीज के प्रसंस्करण तथा परिवहन के दौरान यांत्रिक चोट की वजह से बीज की गुणवत्ता में कमी आदि जिससे बीज उत्पादन कार्यक्रम कम लाभ और अधिक परिश्रम वाला होता है। परिणामस्वरूप, बीज उत्पादन करने वाली एजेंसियां उन्नत किस्मों के सोयाबीन बीज की बढती मांग को पूरा नहीं कर पा रही है. हैं।
सोयाबीन उत्पादन में शामिल वैज्ञानिकों, सरकारी अधिकारियों और बीज उत्पादन एजेंसियों को सोयाबीन बीज उत्पादन के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने के लिए भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान, इंदौर द्वारा गत सप्ताह “सोयाबीन प्रजनक बीज उत्पादन और उसके लिए आधारभूत सुविधाओ की आवश्यकताओं” विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया। संसथान निदेशक डॉ. नीता खांडेकर ने कहा कि सोयाबीन की खेती का मध्य भारत के लाखों लघु और सीमांत किसानों पर उनके सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन आया है।
वेबिनर में डॉ. मृणाल कुचलान, वरिष्ठ वैज्ञानिक (बीज प्रौद्योगिकी), ने सोयाबीन-प्रजनक बीज उत्पादन और उसकी आधारभूत सुविधाओ की आवश्यकताओं , संरचनाओं पर प्रकाश डाला। साथ ही उन्होंने प्रजनक बीज उत्पादन में निहित चुनौतियों का सामना करने के लिए विभिन्न हितधारकों के बीच जागरूकता पैदा करने का मुद्दा उठाया तथा उन मुद्दों के समाधान हेतु नीतिगत इच्छाशक्ति के माध्यम से किये जाने आवश्यकता पर जोर दिया । डॉ. कुचलन ने बीज उत्पादन कार्यक्रम से जुडी विभिन्न मशीनों के बारे में भी जानकारी दी। डॉ. लक्ष्मण सिंह राजपूत, वैज्ञानिक (पादप रोग विज्ञान) ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
वेबिनर में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान के कृषि तकनिकी अनुप्रयोग के तीनों संस्थान(जबलपुर, मध्यप्रदेश; पुणे, महाराष्ट्र तथा जोधपुर, राजस्थान)के वैज्ञानिकों, सहित विभिन्न शासकीय बीज एजेंसियों के कर्मचारियों तथा इन राज्यों के कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिकों समेतकृषि विश्वविद्यालयों के लगभग 30 प्रतिभागियों ने भाग लिया