रबी की तैयारी
कृषि के कामों में निरन्तरता से सभी परिचित हैं। अच्छे मानसून के चलते खरीफ की नैय्या तो पार लगती दिखती है। भादो में भरपूर बारिश ने पिछले रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं। वैसे भी अगस्त माह और वर्षा का गहरा साथ है यदि पिछले सालों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाये तो कभी-कभी अगस्त के 31 दिनों में से 29 दिन बरसात के पाये गये, परंतु इस वर्ष सितम्बर में वर्षा थमने का नाम नहीं ले रही। किसान के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। कहीं फसल लेट गई, कहीं चौपट हो गई, कहीं बची है पर पानी की जरूरत नहीं। फिर भी प्रकृति उड़ेले जा रही है। सितम्बर की वर्षा दोनों फसलों खरीफ – रबी के लिए जरूरी और महत्वपूर्ण है। कहावत है मां के परसे और मघा के बरसे अर्थात् माता यदि खाना परसे तो पेट भर जाता है और मघा के बरसने से फसल तृप्त हो जाती है। बतर मिलते ही खरीफ पड़ती के खेतों में बखर करके भूमि में नमी का संचार और संग्रहण अच्छे रबी के लिये बहुत जरूरी है अनुभव बतलाते हैं कि खरीफ पड़ती में जितने बार बखर होकर नमी का संरक्षण होगा रबी फसलों के बीजों के अच्छे अंकुरण का मार्ग प्रशस्त होता रहेगा इस कारण आज से ही रबी की तैयारी का शंखनाद शुरू किया जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि असिंचित खेती से पर्याप्त उत्पादन तभी मिलेगा जब वर्तमान में ही खेत की तैयारी पर पूर्ण ध्यान दिया जाये और ऐसी खेती देश-प्रदेश के 65-70 प्रतिशत क्षेत्र में की जाती है जो उत्पादन के आंकड़ों पर असर देने में सक्षम होती है। इतिहास गवाह है युद्ध की शुरूआत सुबह और शाम को अंत, शंखनाद पर ही आधारित रहती थी एक ऐसा नियम जो पूरी ईमानदारी से सभी योद्धा अपनाते थे किसान भी अपने खेतों का योद्धा ही तो है खरीफ को पाल-पोस कर तैयार किया, उसकी शाम शुरू हुई तो रबी के प्रभात का सूर्योदय भी होने लगा। कहावत है बुआई के लिये खरीफ के तीन दिन तो रबी के तेरह अर्थात् रबी की बुआई के लिये पर्याप्त समय मिलता है। सूझबूझ, सलाह-मशवरा करके पूर्ण विवेक से बुआई करने से भविष्य सजता, संवरता है जैसे-जैसे कुंआर के कदम आगे बढ़ेंगे वर्षा का क्रम थमेगा और खेत तपने लगेंगे। भूमिगत तापमान वातावरण के तापमान से अधिक होता है। इस वजह से बुआई हेतु फसलों का चयन भी उसी पर निर्भर रखा जाये ध्यान रहे खेती में जल, आद्र्रता के समान तापमान पर भी ध्यान दिये बगैर अंधाधुंध तरीके से कभी भी कोई भी फसल की बुआई करके स्वयं का तथा देश का नुकसान कदापि नहीं किया जाये। रबी फसलों की बुआई का क्रम तोरिया, अलसी, कुसुम, मटर, मसूर, चना से शुरू होकर सबसे आखिरी में गेहूं पर समाप्त होना चाहिये। कभी-कभी भूमि में आल के गिरने की फिक्र में उच्च तापमान पर ही गेहूं की बुआई कर दी जाती है। कहीं-कहीं तो यह भी देखा गया है कि असिंचित भूमि में जलवायु पर विचार किये बिना सिंचित गेहूं की बौनी किस्मों की बुआई भी भरपूर उर्वरक डाल कर दी जाती है। परिणाम स्वरूप अल्प अवधि में ही गेहूं में बाली निकल कर पोचादाना हाथ लगता है इस कारण जरा सम्भल कर सोच-समझ कर तापमान की परख करने के बाद ही गेहूं की बुआई करें रहा सवाल भूमिगत नमी का तो बखरनी पसटारनी पाटा चला-चलाकर उसका संरक्षण करते रहना चाहिये ताकि अच्छा अंकुरण मिल सके गेहूं की बुआई के लिये 26 डिग्री से.ग्रे. के आसपास का समय ठीक रहता है। अलसी के चिकने बीज की बुआई अनुभव प्राप्त औरय्या के द्वारा ही करवाई जाये ताकि घनी – बेगरी ना हो जाये इसी प्रकार तोरिया के बीज को गोबर खाद में मिलाकर बुआई करें ताकि खेत में पौधे एकसे पनपे, कुसुम की जडं़े लम्बी हो जाती हैं इस वजह से साधारण खेत में भी उसे लगाया जा सकता है। मटर की अगेती फसल से बाजार में मटर के अच्छे दाम प्राप्त किये जा सकते हैं। आलू की अगेती फसल से अच्छे दाम लेकर भविष्य में दूसरी रबी की फसल लेना संभव होगा। थोड़े क्षेत्र में शकरकंद तथा मसाला फसलें लेकर अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है। मसाला फसलों में धनिया, लहसुन, प्याज, सौंफ, अजवाईन तथा जीरा हाथों-हाथ बिकने वाली जिन्स है अच्छा पैसा भी मिलना संभव है जिसकी बुआई पूर्व बीज की प्राप्ति के लिये अभी से प्रयास जरूरी है। प्रकृति की कृपा है खरीफ तो अब अच्छा पैदा होने की पूर्ण सम्भावनायें हैं, अब रबी का शंखनाद खेत की तैयारी से शुरू करके उज्जवल भविष्य की नींव रखें।