फसल की खेती (Crop Cultivation)उद्यानिकी (Horticulture)

मटर में सिंचाई कब और कितनी बार करें 

10 जनवरी 2024, भोपाल: मटर में सिंचाई कब और कितनी बार करें  – मटर, किसी भी फलदार सब्जी की तरह, सूखे और अत्यधिक सिंचाई के प्रति संवेदनशील है। परंपरागत रूप से मटर में बहाव अथवा नाली पद्धति द्वारा सिंचाई की जाती है। अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई से पहले पलेवा किया जाना चाहिए। सामान्यत: पहली सिंचाई फूल आने के समय और  दूसरी पॉड बनाने के समय और बाकी की सिंचाइयाँ 15 दिन के अंतराल पर प्रदान की जाती हैं। अत्यधिक सिंचाई से पौधों में पीलापन बढ़ जाता है और उपज में कमी आती है। परंपरागत सिंचाई से पानी का हानि होती है, पंपिंग के लिए ऊर्जा उपयोग बढ़ता है, नाइट्रोजन और अन्य सूक्ष्म पोषण तत्वों का लीचिंग होती है। उचित सिंचाई प्रबंधन करने से पारंपरिक सिंचाई के नकारात्मक प्रभाव कम किया जा सकता है। अनुसन्धान में पाया गया है कि दबाव युक्त सिंचाई प्रणालियों सूक्ष्म फव्वारा एवं टपक सिंचाई प्रणाली द्वारा जल एवं कृषि रसायनों का उचित उपयोग कर उत्पादन में ४०-७० प्रतिशत तक वृद्धि कि जा सकती है। 

सूक्ष्म फव्वारा सिंचाई विधि में पानी का छिड़काव प्रेशर वाले छोटे नोज़ल से होता है। इस विधि में पानी महीन बूँदों में बदलकर वर्षा की फुहार के समान पौधों के ऊपर गिरता है। मटर की फसल में 40 लीटर प्रति घंटा स्त्राव दर वाले सूक्ष्म स्प्रिंकलर का उपयोग किया जा सकता है।  इस विधि से सिंचाई हेतु माइक्रो स्प्रिंकलर हेड के बीच की दूरी 2.5  मीटर एवं लेटरल से लेटरल की दूरी 2.5 रखनी चाहिए।  माइक्रो स्प्रिंकलर के बीच की दूरी इसकी स्त्राव दर एवं वेटेड त्रिज्या पर निर्भर करती है।

टपक सिंचाई विधि: मटर की फसल में टपक सिंचाई प्रणाली हेतु पौध की कतारों के बीच 16 एम. एम. व्यास की 2 लीटर प्रति घंटा स्त्राव वाली लेटरल जिसमे ड्रिपर से ड्रिपर के बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर से 40 सेंटीमीटर हो उपयोग की जाती है। इस विधि में प्रतिदिन अथवा एकदिन के अंतराल में पानी दिया जाता है।

प्लास्टिक मल्चिंग

मटर की फसल में टपक सिंचाई प्रणाली के साथ मल्च का उपयोग जल के कुशल उपयोग एवं उपज में वृद्धि के लिए सहायक है। अनुंसधान में मटर की फसल में २३-३० माइक्रोन मोटाई की प्लास्टिक मल्चिंग को अत्यंत प्रभावशाली पाया गया है।  इसके उपयोग द्वारा मटर की उपज में ६०-८० प्रतिशत तक वृद्धि देखी गयी है। प्लास्टिक मल्चिंग द्वारा फसल में खरपतवार नियंत्रण एवं मृदा के कटाव को रोका जा सकता है।  प्लास्टिक मल्चिंग मिट्टी की संरचना में सुधार करती है जोकि जड़ो के विकास के लाभदायक है।

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