लहसुन की उन्नत उत्पादन तकनीकी
25 नवम्बर 2023, भोपाल: लहसुन की उन्नत उत्पादन तकनीकी – लहसुन एक कन्द वाली मसाला फसल है। इसमें एलसिन नामक तत्व पाया जाता है जिसके कारण इसकी एक खास गंध एवं तीखा स्वाद होता है। लहसुन की एक गाँठ में कई कलियां पाई जाती हैं जिन्हे अलग करके एवं छीलकर कच्चा एवं पकाकर स्वाद एवं औषधीय तथा मसाला प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है। इसका इस्तेमाल गले तथा पेट सम्बन्धी बीमारियों में होता है। इसमें पाये जाने वाले सल्फर के यौगिक ही इसके तीखे स्वाद और गंध के लिए उत्तरदायी होते हैं। जैसे ऐलिसन, ऐजोइन इत्यादि। इस कहावत के रूप में बहुत आम है कि एक सेब एक दिन डॉक्टर को दूर रखता है, इसी तरह, लहसुन की एक एकल बल्ब एक दिन, बीमारियों को दूर रखने के लिए अच्छा है। यह एक नकदी फसल है तथा इसमें कुछ अन्य प्रमुख पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं।
इसका उपयोग आचार,चटनी,मसाले तथा सब्जियों में किया जाता है। लहसुन का उपयोग इसकी सुगन्ध तथा स्वाद के कारण लगभग हर प्रकार की सब्जियां तथा माँस के विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है। इसका उपयोग हाई बल्ड प्रेशर, पेट के विकार, पाचन विकृतियों, फेफड़े के लिए, कैंसर गठिया की बीमारी, नपुंसकता तथा कई खून की बीमारियों के लिए होता है, इसमें एंटीबैक्टीरिया तथा एंटीकैंसर गुणों के कारण बीमारियों में प्रयोग में लाया जाता है। यह विदेशी मुद्रा अर्जित करने में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। लहसुन की खेती बड़े पैमाने पर नीमच, मंदसौर, रतलाम, उज्जैन एवं धार में बहुत ही तकनीकी से की जा रही है। साथ-साथ प्रदेश के सभी जिलों में इसकी खेती की जा सकती है। आजकल इसका प्रसंस्करण कर पावडर, पेस्ट, चिप्स तैयार करने हेतु प्रसंस्करण इकाईयां मप्र में कार्यरत हैं जिससे प्रसंस्करण उत्पादों को निर्यात करके विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहे है |
जलवायु – लहसुन को ठंडी एवं नम जलवायु की आवश्यकता होती है वैसे लहसुन के लिए गर्म और सर्दी दोनों ही उत्तम होती है अधिक गर्म और लम्बे दिन इसके कंद निर्माण के लिए उत्तम रहते हंै सर्द मौसम एवं छोटे दिन इसके वानस्पतिक वृद्धि के लिए अच्छे होते हंै इसकी सफल खेती के लिए 29-35 डिग्री सेल्सियस तापमान 10 घंटे का दिन और 70 प्रतिशत आर्द्रता उपयुक्त होती है
भूमि एवं खेत की तैयारी – इसके लिए उचित जल निकास वाली दोमट भूमि अच्छी होती है। भारी भूमि में इसके कंदों का समुचित विकास नहीं हो पाता है। मृदा का पीएच मान 6.5 से 7.5 उपयुक्त रहता है।
दो-तीन जुताई करके खेत को अच्छी प्रकार समतल बनाकर क्यारियां एवं सिंचाई की नालियां बना लें।
बुआई का समय
लहसुन की बुआई का उपयुक्त समय अक्टूबर-नवम्बर होता है। परन्तु कुछ किसान अच्छे भाव लेने हेतु एवं पानी की उपलब्धता अनुसार अगेती रुप में सितम्बर माह में भी लहसुन की बुवाई कर देते हंै। सितम्बर माह में बुवाई किया हुआ लहसुन बीज उत्पादन एवं भण्डारण के लिए उपयुक्त नहीं होता है।
बीज एवं बुआई
लहसुन की बुआई हेतु स्वस्थ एवं मध्यम आकार की शल्क कंदों (कलियों) का उपयोग किया जाता है। बीज 5-6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती हैं। शल्ककंद के मध्य स्थित सीधी कलियों का उपयोग बुआई के लिए नहीं करना चाहिए। बुआई पूर्व कलियों को कार्बेन्डाजिम+मेन्कोजेेब 3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी के सम्मिश्रण के घोल में 3 से 5 मिनट तक डुबोकर के उपचारित करें।
लहसुन की बुआई कूंडो में या डिबलिंग विधि से की जाती है। कलियों को 5-7 सेमी की गहराई में गाड़कर ऊपर से हल्की मिट्टी से ढक दें। बोते समय कलियों के पतले हिस्से को ऊपर ही रखते है। बोते समय कतारों से कतार की दूरी 15 सेमी व कलियों से कलियों की दूरी 8 सेमी रखना उपयुक्त होता है। बड़े क्षेत्र में फसल की बोनी के लिये गार्लिक प्लान्टर का भी उपयोग किया जा सकता है। आधुनिक समय में इसकी बुवाई ब्राड बेड में मल्चिंग के साथ भी सफलता पूर्वक की जा रही है।
किस्में –
यमुना सफेद 1 (जी-1) – इसके शल्क कन्द ठोस तथा बाह्य त्वचा चांदी की तरह सफेद, कली क्रीम के रंग की होती है। 150-160 दिनों में तैयारी हो जाती हैै। पैदावार 150-160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो जाती है।
यमुना सफेद 2 (जी-50) – इसके शल्क कन्द ठोस, त्वचा सफेद, गुदा क्रीम रंग का होता है। फसल 165-170 दिनों में तैयार हो जाती है। पैदावार 130-140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो जाती है । यह रोगों – जैसे बैंगनी धब्बा तथा झुलसा रोग के प्रति सहनशील होती है ।
यमुना सफेद 3 (जी- 282) – इसके शल्क कन्द सफेद, बड़े आकार के, क्लोव का रंग सफेद तथा कली क्रीम रंग की होती है। 15-16 क्लोव प्रति शल्क पाया जाता है । यह जाति 140-150 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 175-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह जाति निर्यात की दृष्टि से बहुत ही अच्छी है।
यमुना सफेद 4 (जी- 323) – इसके शल्क कन्द सफेद, बड़े आकार के, क्लोव का रंग सफेद तथा कली क्रीम रंग का होता है। 18-23 क्लोव प्रति शल्क पाया जाता है। यह जाति 165-175 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 200-250 क्विंटल है। यह जाति निर्यात की दृष्टि से बहुत ही अच्छी है।
खाद एवं उर्वरक
खाद व उर्वरक की मात्रा भूमि की उर्वरता पर निर्भर करती है। मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें। सामान्यतौर पर प्रति हेक्टेयर 20-25 टन पकी गोबर या कम्पोस्ट या 5-8 टन वर्मी कम्पोस्ट, 100 किग्रा नत्रजन, 50 किग्रा फास्फोरस एवं 50 किग्रा पोटाश की आवश्यकता होती है।
गोबर की सम्पूर्ण खाद, आधा भाग नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत की अंतिम तैयारी के समय भूमि मे मिला दें। शेष नत्रजन की मात्रा को दो बराबर भागों में यूरिया के माध्यम से खडी फसल में 30-35 दिन बाद एवं 55-60 दिन की अवस्था पर दें। स्ूाक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा का उपयोग करने से उपज मे वृद्धि मिलती है। 25 किग्रा जिन्क सल्फेट प्रति हेक्टेयर 3 साल में एक बार उपयोग करें। टपक सिंचाई एवं फर्टिगेशन का प्रयोग करने से उपज में वृद्धि होती है जल घुलनशील उर्वरको का प्रयोग टपक सिंचाई के माध्यम से करें।
सिंचाई एवं जल निकास
बुआई के तत्काल बाद हल्की सिंचाई कर दें। शेष समय में वानस्पतिक वृद्धि के समय 7-8 दिन के अंतराल पर तथा फसल परिपक्वता के समय 10-15 दिन के अंतर पर सिंचाई करते रहें। सिंचाई हमेशा हल्की एवं खेत में पानी भरने नहीं दें। अधिक अंतराल पर सिंचाई करने से कलियां बिखर जाती हैं। खुदाई के 20-25 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर दें।
निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
जड़ों में उचित वायु संचार हेतु खुरपी, हैंड हो, या कुदाली द्वारा बोने के 25-30 दिन बाद प्रथम निंदाई-गुड़ाई एवं दूसरी निंदाई-गुड़ाई 45-50 दिन बाद करें। खरपतवार नियंत्रण हेतु ऑक्सीफ्लूरोफेन 250 ग्राम सक्रिय तत्व बुआई के पूर्व 500 लीटर पानी में घोलकर/हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। या पेंडीमिथालीन 1 किग्रा सक्रिय तत्व बुआई बाद अंकुरण पूर्व 500 लीटर पानी में घोलकर/हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। या खड़ी फसल में बुवाई के 15-20 दिन की अवस्था में क्विजालोफॉफ इथाइल की 50 ग्राम सक्रिय तत्व की मात्रा 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
कटाई /खुदाई एवं लहसुन का सुखाना
लहसुन 50 प्रतिशत गर्दन गिरावट के स्तर पर काटा जाये। जिस समय पौधों की पत्तियां पीली पड़ जायें और सूखने लग जाये सिंचाई बंद कर दें। इसके बाद गाँठों का 3-4 दिनों तक छाया में सुखा लेते हैं। फिर 2 से 2.5 से.मी. छोड़ कर पत्तियों को कन्दों से अलग कर लेते हैं। कन्दों को साधारण भण्डारण में पतली तह में रखते हैं। ध्यान रखें कि फर्श पर नमी न हो। आधुनिक समय में कंदों को जालीदार बैग/बोरोंं में भी भरकर रखते है |
छंटाई
लहसुन को बाजार या भण्डारण में रखने के लिए उनकी अच्छी प्रकार छटाई करने से अधिक से अधिक लाभ मिलता है तथा भण्डारण में हानि कम होती है इससे कटे-फटे, बीमारी तथा कीड़ों से प्रभावित लहसुन छांट कर अलग कर लेते हैं।
उपज
लहसुन की उपज उसकी जातियों, भूमि और फसल की देखरेख पर निर्भर करती है प्रति हेक्टेयर 150 से 200 क्विंटल उपज मिल जाती है।
भण्डारण
अच्छी प्रकार से सुखाये गये लहसुन को उनकी छटाई करके साधारण हवादार घरों में रख सकते हैं। 5-6 महीने भण्डारण से 15-20 प्रतिशत तक का नुकसान मुख्य रूप से सूखने से होता है।
उपरोक्त के अलावा कुछ किसान क्षेत्रीय या स्थानीय नाम से प्रचलित महादेव, अमलेटा, विदिशा, ऊटी आदि नामों से प्रचलित किस्मों/लोकल प्रजातियों का भी प्रयोग करते हैं। इन नामों की कोई प्रजातियां नहीं है। ये मात्र स्थानों के नाम है।
लहसुन का पोषक मूल्य
पोषक मूल्य (प्रति 100 ग्राम खाने योग्य भाग में)
नमी (ग्राम) | 62.2 |
प्रोटीन (ग्राम) | 6.3 |
वसा (ग्राम) | 0.1 |
खनिज तत्व (मिनिरल्स ग्राम) | 1.0 |
रेशा (ग्राम) | 0.8 |
कार्बोहाइड्रेटस | 29.0 |
कैलोरी | 145 |
कैल्शियम (मि.ग्राम) | 30.0 |
मैग्नेशियम (मि. ग्राम) | 71.0 |
मैगनीज (मि. ग्राम) | 0.86 |
पोषक मूल्य (प्रति 100 ग्राम खाने योग्य भाग में)
फास्फोरस (मि. ग्राम) | 310 |
जिंक (मि. ग्राम) | 1.93 |
आयरन (मि. ग्राम) | 1.2 |
कॉपर | 0.63 |
थाईमीन (मि. ग्राम) | 0.06 |
रिबोप्लेविन (मि. ग्राम) | 0.23 |
निकोटिनीक अम्ल (मि. ग्राम) | 0.40 |
विटामिन सी (मि. ग्राम) | 13.0 |
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