जानिए सोयबीन की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग एंव उनके नियंत्रण
21 जून 2023, भोपाल: जानिए सोयबीन की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग एंव उनके नियंत्रण – सोयाबीन में मुख्य रूप से पीला मोजैक, चारकोल, झुलसन, सड़़़न, एन्थ्राक्नोज एवं पोड ब्लाइट जैसी बीमारियों का प्रकोप अधिक देखा गया है । इनके नियंत्रण के उपाय निम्नलिखित हैंः
बीमारी का नाम, प्रबंधन/बचाव के उपाय
1. चारकोल सड़न/गलन
· रोग प्रतिरोधी किस्में जे एस 20-69, जे एस 20-98, जे एस 20-116, जे एस 21-72 उगायें।
· बीज उपचार हेतु कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत, थायरम 37.5 प्रतिशत, 2-3 ग्राम दवा या थायोफिनेट मिथाइल 450, ट्राइकोडर्मा हर्जियानम 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से प्रयोग करें।
· चारकोल सड़़़न से ग्रसित खेतों में बोनी से पूर्व 8-10 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा हर्जियानम को प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह मिला दें।
· उचित फसल चक्र अपनायें।
· भूमि में कार्बनिक पदार्थ का अधिक प्रयोग करें।
2. गर्दनी गलन (कोलर रोट)
· बीज उपचार जेलोरा (थायोफिनेट मिथाइल, पायरोक्लोस्ट्रोबिन (50: एफ.एस.) 1.5 मि.ली /कि.ग्रा. बीज का प्रयोग करें।
· ट्राईकोडरमा विराइड 4-6 किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित करें।
3 एन्थ्राक्नोज एवं पोड ब्लाइट (अंगमारी एवं फली झुलसन)
· ग्रसित पौधे के अवशेषों को जलाना।
· रोग प्रतिरोधी किस्में जे एस 20-69, जे.एस. 21-72, जे एस 20-98, जे एस 20-116, जे एस, 21-72 उगायें।
· खड़ी फसल में रोग के नियंत्रण के लिए टेबुकोनाजोल 25.9 प्रतिशत ई.सी. की 625 मि.ली./हे. या टेबुकोनाजोल 10 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. , सल्फर 65 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. 1250 ग्राम दवा ./हे. 15 दिन के अंतराल पर अवश्यकता पड़ने पर छिड़काव करें।
· सोयाबीन के परिपक्व होने पर तुरन्त कटाई कर लें।
4 पीला मोजेक (येलो मोजेक)
· खरपतवार की समस्या का समुचित प्रबंधन करें ।
· रोग के लक्षण दिखते ही ऐसे पौधे को तुरंत उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिये ।
· सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए थायोमेथोक्सेम 30 प्रतिशत एफ एस 10 मिली/किग्रा बीज की दर से या इमिडाक्लोरोप्रिड 48 एफएस 1.25 मिली/किग्रा बीज की दर से उपचार करें।
· बीटासाइ लोथ्रिन 8.49 प्रतिशत, इमिडाक्लोरोप्रीड 19.8 प्रतिशत 350 मि ली /हे. के हिसाब से छिडकाव।
· समय से बोनी (20 जून से 5 जुलाई के मध्य ) करना चाहिए।
· पीली पट्टी 15-20 नग प्रति हे. का उपयोग करें। यह सफेद मक्खी को आकर्षित कर चिपका कर मार देती हैं ।
· खडी फसल में 35 दिन की अवस्था पर थायामेथोक्जाम 25 डब्ल्यू.जी. 100 ग्राम/हे. या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. दवा 600 मि.ली./हे का छिड़काव बोनी के 35 दिन पर करें।
5 पर्णीय-झुलसन रोग
· कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत, थायरम 37.5 प्रतिशत, 2-3 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार फसल को प्रारंभिक अवस्था में रोगग्रस्त होने से बचाता है।
· उचित जल निकास व अनुशंसित दूरी पर बुवाई करें।
· रोग प्रतिरोधक, सहनशील व नयी उन्नत जातियों जैसे जे. एस. 20-34, जे.एस. 20-69, जे.एस. 20-98, आर व्ही एस 2001-4, एन.आर.सी. 86, जे.एस. 21-72 आदि का प्रयोग करें।
· खड़ी फसल में रोग के नियंत्रण के लिए टेबुकोनाजोल 25.9 प्रतिशत ई.सी. की 625 मि.ली./हे. या टेबुकोनाजोल 10 प्रतिशत डब्ल्यू.पी., सल्फर 65 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. 1250 ग्राम दवा/हे. 15 दिन के अंतराल पर अवश्यकता पड़ने पर छिड़काव करें।
6 फ्रागआई पर्ण दाग
· बीज उपचार हेतु कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत, थायरम 37.5 प्रतिशत, 2-3 ग्राम दवा का प्रति किलो बीज अनुसार प्रयोग करें।
· बीमारी के अधिक फैलाव को रोकने व बीज को स्वस्थ बनाने के लिए फफूंदीनाशकों का एक या दो छिड़काब करे उसके लिए पाइराक्लास्ट्रोविन 20 प्रतिशत डब्लू.जी. 375-500 ग्राम/हे. या टेबुकोनाजोल 10 प्रतिशत डब्ल्यू.पी., सल्फर 65 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. 1250 ग्राम/हे. के हिसाब से बोनी के 50 दिनों के बाद 15 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करें।
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