किसान के हितों को प्राथमिकता मिले
भारत सरकार ने पिछले सप्ताह खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किये हैं, जिनमें पिछले वर्ष घोषित समर्थन मूल्य की अपेक्षा धान में 60 रु., ज्वार में 55-60 रु., बाजरा में 55 रु., मक्का में 43 रु. रागी में 75 रु. की वृद्धि की है। जबकि दलहनी फसलों में यह वृद्धि अरहर में 425 रु., मूंग व उर्द में 375 रु. की है, यह वृद्धि दलहनी फसलों में बोनस के रूप में दी है। तिलहनी फसलों में मूंगफली 90 रु., सूर्यमुखी 150 रु., सोयाबीन 175 रु., तिल 100 रु. व रामतिल में 300 रु. वृद्धि की गयी है। कपास में यह वृद्धि 60 रु. है। इस वृद्धि को देखते हुए आम नागरिक को यह भ्रम होता है कि किसानों को एक बड़ी राहत दी गयी है। पिछले कुछ माह में बाजार की बढ़ी हुई कीमतों को देखें तो किसान को फसल उगाने के लिये जिन चीजों पर निवेश करना पड़ता है उनमें हुई वृद्धि न्यूनतम समर्थन मूल्य की वृद्धि में कहीं अधिक होगी।
यदि हम मात्र बीज को ही लें तो मध्यप्रदेश शासन द्वारा जो सोयाबीन का बीज किसानों को पिछले वर्ष 5300 रु. प्रति क्विंटल के हिसाब से दिया गया था, उसका मूल्य इस वर्ष मध्यप्रदेश शासन द्वारा 5900 प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है। सोयाबीन के बीज मेें 600 रु. प्रति क्विंटल यह वृद्धि, सोयाबीन के समर्थन मूल्य में की गयी वृद्धि लगभग साढ़े तीन गुनी है। प्रदेश शासन द्वारा सोयाबीन के बीज में 600 रु. बीज वितरण अनुदान देने से किसानों को कुछ राहत मिलेगी, परंतु डीजल व अन्य चीजों के बड़े हुए दामों के साथ फसल उगाना किसानों के लिये घाटे का ही सौदा सिद्ध होगा। दलहनी फसलों में अरहर में 425 रु. तथा मूंग, उर्द में 375 रु.प्रति क्विंटल की वृद्धि ऊपरी तौर पर एक बढ़ी वृद्धि दिखाई देती है जो म.प्र. शासन ने बोनस के रूप में दी है। प्रदेश शासन ने दलहनी फसलों के उन्नत बीज की अपनी ओर से किसानों से उपार्जन हेतु तथा कृषकों को प्राप्त होने वाली बीज की अंतिम दर की कोई घोषणा नहीं की है। इसका यह अर्थ हुआ कि शासन की ओर से उन फसलों का किसानों को उन्नत बीज उपलब्ध कराने की कोई योजना नहीं है। ऐसी स्थिति में दलहनी फसल उगाने वाला किसान अपने खेत में बीज न बोकर दाल के दाने बैचेगा जिसकी उत्पादकता की कोई गारन्टी नहीं। इस ओर शासन को कुछ सोचना होगा ताकि किसान अगले वर्ष बीज बोये दाल के दानें नहीं। भारत सरकार ने अरहर, मूंग उर्द के न्यूनतम समर्थन मूल्य क्रमश: 5050 रु., 5225 रु. तथा 5000 रु. प्रति क्विंटल निर्धारित किये है।
किसान को इनकी लागत निकालने व चार पांच माह खेत में मेहनत करने के बाद क्या मिलता है। जबकि व्यापारी इन्हें दाल में परिवर्तित कर कुछ ही दिनों में खरीद कीमत के लगभग बराबर लाभ कमा लेते हंै। दलहनी फसलों की पूर्ति के लिए किसान के हितों को देखना होगा तभी किसान इन फसलों को उगाने के प्रति आकर्षित होंगे।
किसानों के नुकसान की भरपाई होगी