कृषकों में कपास फसल प्रबन्धन के लिए अलख जगाने तैयार किया निमाड़ी लोकगीत
19 अप्रैल 2024, भोपाल: कृषकों में कपास फसल प्रबन्धन के लिए अलख जगाने तैयार किया निमाड़ी लोकगीत – मध्य प्रदेश में खंडवा के भगवंतराव मण्डलोई कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. दीपक हरि रानडे ने बताया कि आई. पी. एम एवं आई. आर. एम. जैसी परियोजनाएँ जिले के कृषकों के बीच कार्य कर रही है और इन परियोजनाओं में कृषकों की सहभागिता भी है। इन परियोजनाओं का प्रमुख उद्देश्य यह है कि कृषकों को कपास फसल में कीट व्याधियों के प्रबन्धन के सम्बन्ध में जानकारी दी जावे। साथ ही पिछले कुछ वर्षो से फसल में उभरकर आई कीट समस्या गुलाबी डेन्डू छेदक को न्यूनतम कीटनाशकों के उपयोग द्वारा प्रबन्धन के उपायों का प्रचार प्रसार करना है। इन दोनों परियोजनाओं का कार्य महाविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक (कीट विज्ञान) डॉ. सतीश परसाई के नेतृत्व में किया जा रहा है। उन्होनें बताया कि एनसीआईपीएम नई दिल्ली एवं सीआयसीआर नागपुर के सहयोग से इन दोनों परियोजनाओं के तहत जिले के सात गॉवों में कार्य हो रहा है और इन गॉवों के एक सौ से अधिक कृषक जुडें हुए है। इन कृषकों के मध्य समय-समय पर परियोजना के तकनीकी सहयोगी पहुँचते है और फसल में कीट व्याधियों की पहचान, हानि और उनके प्रबन्धन के बेहतर उपायों के सन्दर्भ में मार्गदर्शन देते है। साथ ही कृषकों को नई तकनीकों जैसे फीरोमोन प्रपंच, टी-आकार की खूंटियों, नीम आधारित कीटनाशकों के उपयोग को अपनाने हेतु भी प्रेरित किया जा रहा है। उन्हें किसी भी कीट का आर्थिक हानि स्तर आने पर ही अनुशंसित कीटनाशकों के प्रयोग की सलाह भी दी जा रही है। महाविद्यालय परिसर में भी कृषक प्रशिक्षण , किसान मेलों का आयोजन किया जाता है। इन कार्यक्रमों में स्लाइड शो (पावर पाइन्ट प्रेजेण्टेशन) के माध्यम से जानकारी दी जाती है। इस प्रकार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर कृषकों से सीधे सम्वाद बनाए रखना ही परियोजनाओं का महत्वपूर्ण उद्वेश्य है। कपास फसल में कीट व्याधि और गुलाबी डेन्डू छेदक के प्रबन्धन के ज्ञान को और बेहतर ढंग से कृषकों तक पहुँचाने के उद्वेश्य को लेकर विगत दिनों निमाड़ी भाषा में एक लोकगीत भी डॉ परसाई के मार्गदर्शन में बनाया गया। श्री मेवाराम नायक, श्री बद्रीप्रसाद शर्मा एवं श्री छगन द्वारा इसे तैयार किया गया। आकाशवाणी खंडवा के सहयोग से इस लोकगीत को रिकार्ड किया गया तथा खंडवा केन्द्र के किसानवाणी कार्यक्रम में प्रसारण भी किया गया। इस लोकगीत कों बनाने में डॉ अजंता बिराह एनसीआईपीएम नई दिल्ली का सहयोग रहा है।
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