State News (राज्य कृषि समाचार)

ग्रीन फर्टिलाइज़र्स रासायनिक उर्वरकों का बेहतर विकल्प

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कृषक जगत – मल्टीप्लेक्स का वेबिनार संपन्न  

19 दिसम्बर 2023, इंदौर: ग्रीन फर्टिलाइज़र्स रासायनिक उर्वरकों का बेहतर विकल्प – राष्ट्रीय कृषि अखबार और मल्टीप्लेक्स ग्रुप के संयुक्त तत्वावधान में गत दिनों ‘ ग्रीन फर्टिलाइज़र्स  रासायनिक उर्वरकों का बेहतर विकल्प ‘ विषय पर ऑन लाइन वेबिनार का आयोजन किया गया। प्रमुख वक्ता मल्टीप्लेक्स ग्रुप के बैंगलोर से टेक्निकल हेड डॉ निरंजन  एच.जी.और चीफ मार्केटिंग मैनेजर श्री नागेंद्र शुक्ला ,इंदौर से शामिल हुए । इस वेबिनार में रासायनिक उर्वरकों के बेहतर विकल्प ग्रीन फर्टिलाइजर्स पर विस्तृत चर्चा की गई। इस वेबिनार में मध्यप्रदेश के अलावा महाराष्ट्र , गुजरात और उत्तराखंड के किसान भी शामिल हुए। किसानों ने जहां प्रश्नोत्तरी में अपनी समस्याओं से संबंधित सवाल पूछे ,वहीं अपने अनुभव भी साझा किए। कृषि ज्ञान प्रतियोगिता के चार विजेताओं को मल्टीप्लेक्स ग्रुप की ओर से पुरस्कार स्वरूप कम्पनी उत्पाद देने की घोषणा की गई। वेबिनार का संचालन कृषक जगत के संचालक श्री सचिन बोंद्रिया ने किया।

ग्रीन फर्टिलाइजर की प्रासंगिकता – आरम्भ में श्री शुक्ला ने ग्रीन फर्टिलाइजर  के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि रासायनिक उर्वरकों के गलत प्रयोग  के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। ज़मीन कठोर होती जा रही है। खेती का लागत खर्च भी बढ़ रहा है। रसायनों का अंश हमारे भोजन में शामिल होकर हमारे स्वास्थ्य को  प्रभावित कर रहा है। ऐसे में ग्रीन फर्टिलाइजर न केवल समय की ज़रूरत है , बल्कि प्रासंगिक भी है। ग्रीन फर्टिलाइजर नए ज़माने का खाद है ,जो रासायनिक खादों का बेहतर विकल्प है। ग्रीन फर्टिलाइजर के माध्यम से मल्टीप्लेक्स का प्रयास है कि ज़मीन सुरक्षित रहने के साथ ही किसानों की लागत कम हो ,उत्पादन भी बढ़िया मिले । प्राप्त उपज भी आम जन के स्वास्थ्य के लिए हितकर हो।  श्री  शुक्ला  ने कहा कि हमारी कम्पनी अगले वर्ष 2024 में 50 वें वर्ष में प्रवेश कर स्वर्ण जयंती मनाने जा रही है। इसीसे कम्पनी की विश्वसनीयता और उत्पादों की गुणवत्ता का पता चल जाता है। मल्टीप्लेक्स भारतीय बहुराष्ट्रीय कम्पनी है जो अपने उत्पाद 20 देशों में निर्यात करती है।

बढ़ता प्रदूषण चिंताजनक – डॉ निरंजन ने रासायनिक उर्वरकों से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव से जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण , मिट्टी के बिगड़ते स्वास्थ्य पर चिंता ज़ाहिर करते हुए बताया कि उपजाऊ मिट्टी में 45 % खनिज अंश, 25 % हवा, 25 % पानी पकड़ने की क्षमता और 5 % जैविक पदार्थ होना ज़रूरी है। एक चम्मच मिट्टी में विश्व की आबादी से दो गुना  सूक्ष्मजीवी जीवाणु रहते हैं। मिट्टी में कार्बन और नाइट्रोजन का संतुलन होना ज़रूरी है। मिट्टी में रससार होना महत्वपूर्ण है। पीएच मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए। इससे कम पीएच होने पर पौधे प्रमुख तत्व मैग्नीशियम , फास्फोरस आदि नहीं ले पाते हैं , वहीं इससे अधिक पीएच होने पर मिट्टी क्षारीय होने से पौधे आयरन , मैग्नीशियम, कॉपर आदि पोषक तत्व नहीं ले पाते हैं। इसलिए मिट्टी में जैविक पदार्थ  अच्छे होने चाहिए।  इससे मिट्टी भुरभुरी  हो जाती है और मित्र जीवों की आबादी बढ़ जाती है। रासायनिक उर्वरकों का पीएच पर सीधा असर पड़ता है। जिससे लागत बढ़ने के साथ ही पैदावार भी  प्रभावित होती है। इसलिए पर्यावरण की सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य के लिए ग्रीन फर्टिलाइज़र्स  रासायनिक उर्वरकों का बेहतर विकल्प है। इसमें मल्टीप्लेक्स के उत्पाद  लिक्विड एन , ग्रीन फास्फोरस,ग्रीन पोटाश और प्रणाम सीए बेहतर साबित हो रहे हैं। यह पर्यावरण सुरक्षा के साथ लागत में कमी कर उत्पादन में भी वृद्धि कर रहे हैं।

लिक्विड एन – यह यूरिया का बेहतर विकल्प है। यूरिया में 46 % नाइट्रोजन होता है , लेकिन यह पौधे को मात्र 20 -25 % ही मिल पाता है। यूरिया से जल और वायु प्रदूषण बढ़ने के साथ ही मिट्टी /मानव का स्वास्थ्य भी बिगड़ता है। यूरिया से अंकुरण की भी समस्या आती है। जबकि वैकल्पिक तरल उत्पाद  लिक्विड एन में यूरिया अमोनियम नाइट्रेट होता है। जिसमें नाइट्रेट 7.5 %, अमोनियम 7.5 %,अमाइड  16.5 % और नाइट्रोजन की मात्रा 32 %  होने से यह पौधे को तुरंत उपलब्ध हो जाता है। इससे प्रकाश संश्लेषण अच्छा होता है। पौधा हरा होकर विकसित होने लगता है। 2 -3 दिन में ही लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इसे धान, मक्का और गेहूं सभी फसलों  में रोपाई /बीज बुवाई के 15 – 20  दिन के बाद पहला स्प्रे 3 -5  मिली /लीटर की दर से करना है , जबकि दूसरा स्प्रे 15 -20  दिन बाद करने से धान में फुटाव , गेहूं की बालियां अच्छी बनती है और पीलापन भी खत्म हो जाता है। इसका ड्रिप में भी उपयोग किया जा सकता और इसे  किसी भी कीटनाशक या फफूंदनाशक के साथ मिलाकर स्प्रे कर सकते हैं।

ग्रीन फास्फोरस – यह डीएपी का विकल्प है। ग्रीन फास्फोरस में  खनिज अंश और जैविक पदार्थों का समावेश  होता है। इसमें सूक्ष्मजीव  /मित्र जीव भी होते हैं ,जो 20 -25  % फास्फोरस पौधों को उपलब्ध  कराते हैं ।  इसके अलावा यह ज़मीन में फंसा 8 -10  % फास्फोरस भी पौधे को उपलब्ध कराता है। इससे अलग से देने की ज़रूरत  नहीं रहती है। जबकि डीएपी में 46 % फास्फोरस होता है , लेकिन यह पौधे को पूरा नहीं मिल पाता है।  इसमें नमक का अंश अधिक होने से पौधों को नुकसान होता है। जबकि ग्रीन  फास्फोरस  पूर्ण रूप से जैविक पदार्थों से निर्मित उत्पाद है , जो पाउडर और दानेदार रूप में उपलब्ध है। इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है, पीएच का संतुलन होने से मिट्टी भी उपजाऊ हो जाती है। इसे 60 किलो /एकड़ की दर से बुवाई /रोपाई से पहले ही डालने की अनुशंसा की गई है।  

ग्रीन पोटाश – एमओपी में प्रमुख रूप से पोटेशियम खाद है , यह तीन प्रकार पोटेशियम नाइट्रेट, पोटेशियम सल्फेट और पोटेशियम क्लोराइड का होता  है। यह पोटेशियम क्लोराइड है। जिसे विदेश से आयात किया जाता है। इसमें 60 % पोटाश रहता है और इसके साथ क्लोराइड का अंश 48 %रहता है। इसे आलू और तम्बाकू की फसल में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए , क्योंकि क्लोराइड के कारण आलू कंद में शुगर को स्टार्च में बदलने में परेशानी होती है और गुण में कमी आ जाती है , वहीं तम्बाकू की पत्तियां भी कमजोर हो जाती है।

ग्रीन पोटाश , म्यूरेट ऑफ पोटाश ( एमओपी ) का विकल्प है। जिसमें 25 % (K2O ) पोटाश रहता है। इसके अलावा इसमें जैविक खाद और पोटाश मोबेलाइजिंग  बेक्टेरिया भी डाले जाते हैं, ताकि ज़मीन में जमा हुए पोटाश को पौधों तक पहुंचाया जा सके।  इसके अलावा इसमें ह्यूमिक एसिड और फल्विक  एसिड भी डाला जाता है । यह चुंबक जैसा कार्य करता है और पोषक तत्वों को खींच कर  पौधों को उपलब्ध करा देता है। यह संतुलित तरीके से तैयार किया गया खाद है। जिसका सभी फसलों में प्रयोग किया जा सकता है। इसकी 40 से 80 किलो /एकड़ की दर से  प्रयोग करने की सिफारिश की गई है।  

प्रणाम सीए – यह कैल्शियम नाइट्रेट का विकल्प है। जो पूर्ण रूप से जैविक पदार्थ से बना खाद है।  यह स्वाभाविक रूप से  जमा कैल्शियम, पौधों को उपलब्ध कराता है। इसलिए इसमें इसमें 15 % कैल्शियम ,8 % नाइट्रोजन और 1 % बोरान भी मिलाया गया है, ताकि अच्छे नतीजे मिले। बोरान और कैल्शियम की कमी से  फूल गिरने, पल्प पड़ने की समस्या हो जाती है। लेकिन प्रणाम सीए में यह समस्या नहीं आती है। पौधे की ज़रूरत के हिसाब से 15 -20  दिन में फूल आने के समय , परागण के समय और फलों का आकार बढ़ाने के समय इसका इस्तेमाल करना चाहिए। इसकी 3 मिली /लीटर मात्रा पानी में घोलकर  प्रयोग करें। इसका स्प्रे के अलावा ड्रिप में इस्तेमाल किया जा सकता है। विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि इसे फास्फोरस और सल्फर समूह के उर्वरकों के साथ नहीं मिलाना चाहिए। बाकी के साथ इसका प्रयोग सुरक्षित रहता है।  

किसानों के प्रश्न और अनुभव – वेबिनार में अपनी विभिन्न समस्याओं को लेकर किसानों द्वारा सवाल  किए गए  जिनका  वक्ताओं ने समाधानकारक जवाब दिए , वहीं  किसानों ने अनुभव भी साझा किए। इनमें श्री आलोक, निवासी चाँद ( छिंदवाड़ा ) श्री राम, नर्मदापुरम ,श्री करण पटेल, सिराली( हरदा ), श्री सुशील पाटीदार, मंदसौर ,श्री शैलेन्द्र झाला (उज्जैन ) और श्री पंकज भाई (अकबरी )जूनागढ़  के अलावा श्री वसंत हेगड़े, लातूर, श्री सुमित डोंगरे ,खंडवा , श्री दीपांशु पटेल ,भगवानपुरा , श्री महेश बिरला,सनावद, श्री विकास तिवारी , श्री दिनेश पाटिल ,नागपुर , श्री बालाजी नखाटे, लातूर , श्री नीरज द्विवेदी ,श्री राजकुमार प्रजापति ( दमोह ), श्री अनूप दांगी (दतिया), श्री राहुलसिंह सोलंकी (आसामपुरा ), श्री सुखदेव उधमसिंह नगर (उत्तराखंड )  और आनंद ( गुजरात ) से  श्री भावेश पटेल, श्री अजय पुनासिया और  श्री दिनेश ठाकुर शामिल हैं।

कृषि ज्ञान प्रतियोगिता – इसमें वेबिनार से जुड़े चार सवाल पूछे गए थे  जिनका प्रतिभागी श्री करण पटेल (हरदा ), श्री सुशील पाटीदार ( मंदसौर ) श्री संजय गोयल और श्री शैलेन्द्र झाला (उज्जैन )  सटीक जवाब देकर विजेता बने। इन विजेताओं को मल्टीप्लेक्स की ओर से कम्पनी उत्पाद देने की घोषणा की गई।

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