- डॉ. साधुराम शर्मा, गन्ना विशेषज्ञ, पूर्व गन्ना आयुक्त (म.प्र.)
- भारत में अनेक राज्यों और उनके कई जिलों में सूखे की मार से हाहाकार की स्थिति बन गई है। पीडि़त तो कृषक हैं या आम जनता जो सारे काम त्याग कर एक-एक घड़ा पानी की जुगाड़ में लगे हैं। सबसे अधिक त्रस्त तो महिलायें हैं जो रोज मीलों दूर से पानी भरकर लाती हैं और उसके बाद घर-गृहस्थी की सारी जिम्मेदारी वहन करती हैं। सूखे ने ग्रामों में खान-पान सामग्री का भी अभाव पैदा कर दिया है। लगातार चार सालों से कम वर्षा के कारण भू-जल स्तर रसातल में चला गया है।
- हर जिम्मेदार यह सोच रहा है कि इस त्रासदी का ठीकरा किसके सर फोड़ा जाय। पानी की हर बूंद के संजोने का कार्य तो हुआ नहीं। हर ओर से आवाज आने लगी कि अधिक पानी पीने वाली फसलें मुख्यतया गन्ना इस त्रासदी का दोषी है। शोर है कि मराठवाड़ा के लातूर की हालत गन्ने की फसल ने ही पैदा की है। इस भ्रान्ति पर विस्तृत विवेचना करना श्रेयस्कर होगा क्योंकि ‘अलनीनोÓ के कारण आई विकृति तो झेली, पर हो सकता है कि इस वर्ष ‘लानीनोÓ के कारण भरपूर वर्षा हो और हम इससे कोई सबक न सीख कर, आने वाले वर्षों हेतु जल प्रबंधन में गुणात्मक सुधार न कर सकें।
- गन्ने की जल मांग सामान्य फसलों से कम
इसमें कोई शक नहीं कि गन्ने की जल की मांग 2100-2200 मि.मी. है जबकि धान 1400 मि.मी. से अधिक, कपास की 900 मि.मी., ज्वार, अरहर, गेहूं, सोयाबीन, चना अन्य दालें 500 से 600 मि.मी. की श्रेणी में आती हैं।
पानी की मांग के साथ फसलों की पकाव अवधि जलवायु एवं प्रति हेक्टेयर उपज का भी अध्ययन आवश्यक है। निम्नलिखित तालिका में उपरोक्त आधार पर प्रतिदिन जल मांग की स्थिति स्पष्ट होती है। वर्ष भर से अधिक की फसल की 3 से 4 माह वाली फसलों से तुलना करना कहां तक न्याय संगत है?
अगर औसत गन्ने की फसल की प्रति दिन की जल मांग का अध्ययन करें तो ज्ञात होगा कि यह धान से आधी एवं अन्य खाद्य फसलों के आसपास ही है।
अखिल भारतीय गन्ना संस्थान लखनऊ के आंकलन अनुसार विभिन्न राज्यों में 1 किलो गन्ना पैदा करने हेतु पानी की आवश्यकता निम्न तालिका में दर्शायी गई है।
पानी की मांग गन्ना उत्पादन हेतु भूमि का प्रकार, जलवायु, प्रति हेक्टर उपज एवं उत्तम जल उपयोग गुणवत्ता के आधार पर कम या अधिक होती है। महाराष्ट्र में जो देश की एक तिहाई शक्कर पैदा करता है 292 लीटर पानी 1 किलो गन्ना पैदा करने में लगता है। इसको अगर शक्कर के मान से देखें तो 2450 लीटर पानी एक किलो शक्कर उत्पादन में लगता है जबकि उत्तर प्रदेश में एक किलो गन्ना उत्पादन का आंकड़ा केवल 99.0 लीटर का है। ध्यान रहे गन्ने की जल मांग को 50 प्रतिशत से अधिक कम करने हेतु सूक्ष्म सिंचाई अपनाना आवश्यक है।
- सिंचाई जल का बहुआयामी उपयोग
गन्ना सारा साल खेत में रहता है व अगले 2-3 साल कम खर्चे वाली जड़ी फसल भी ली जाती है। अगर किसी भी वर्ष भर के फसल चक्र में 2-3 फसलों की जल मांग को जोड़ें तो यह गन्ने से कहीं-कहीं अधिक होगी। गन्ना फसल अपने 70-80 टन/ हे. उत्पादन के अलावा 15-16 टन हरा बॉड पत्ते आदि भी प्रदान करती है जो अक्टूबर-नवम्बर से अप्रैत तक पशु चारे का उत्तम विकल्प है। गन्ने के साथ जो सह फसलें उगाई जाती हैं वे भी बिना अधिक जल मांग के 3-4 माह में अच्छा उत्पादन देती है। इस तरह चारा व सह फसलों हेतु कृषक को अतिरिक्त सिंचाई नहीं देनी पड़ती। इस बचत को भी नजर अन्दाज न करें।
- इथेनाल उत्पादन से पेट्रोल की बचत
इसके अलावा प्रति टन गन्ने के प्रसंस्करण से 4 प्रतिशत फाइनल मोलेसिस निकलता है जिससे 11 लीटर इथेनाल उत्पादन से रु. 533/- की अतिरिक्त आय प्राप्त हो सकती है। यह देश हेतु विदेशी मुद्रा की बचत एवं पर्यावरण संरक्षण का मुख्य स्रोत सिद्ध होगा।
- उर्वराशक्ति का स्रोत
शक्कर शुद्धिकरण में निकलने वाली प्रेसमड एक उत्तम जैविक खाद है। गन्ने की सूखी पत्तियों का भूमि की उर्वराशक्ति एवं जीवांश पदार्थ बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान है। इस तरह गन्ना मुख्यतया बायोमास सह ऊर्जा की फसल है। शक्कर तो इसका एक छोटा भाग है।
- गन्ने को पानी चूसने वाली फसल न समझें
हर कृषक जानता है कि गन्ना जोखिम रहित फसल है जो अपने आप में फसल का बीमा है। जलवायु के बदलते तेवरों को अगर कोई फसल सहन कर सकती है तो वह गन्ना है। वर्षा जल की बूंद-बूंद का संचन न करने से पानी की कमी का ठीकरा किसी फसल पर फोडऩा उचित नहीं है। मराठवाड़ा की ही अगर बात करें तो लगातार चार साल से अवर्षा के जूझने एवं उचित जल प्रबंधन के अभाव के कारण यह हालात बने हैं। मराठवाड़ा में लगभग 70 लाख हे. फसल क्षेत्र में से गन्ना केवल 1.9 लाख हे. में लगाया जाता है। यह विचारणीय है कि केवल 3 प्रतिशत क्षेत्र में लगने वाली गन्ना फसल पूरे क्षेत्र का पानी कैसे पी गयी? क्या मराठवाड़ा में जहां गन्ना नहीं है वहां पानी का अभाव नहीं है? मध्य क्षेत्र के बुन्देलखंड आदि में जहां गन्ना फसल नहीं उगाई जाती, सूखे की मार से जन-जन त्रस्त नहीं है? क्या हरियाणा, पंजाब आदि से भूजल स्तर में कमी नहीं आई है?
महाराष्ट्र सरकार ने भविष्य में मराठवाड़ा क्षेत्र में नई फैक्ट्रियां लगाने पर पाबंदी लगा दी है जो स्वागत योग्य है लेकिन पिछले तीन सालों में इस क्षेत्र में 20 नये शक्कर कारखाने लगे इसका जिम्मेदार कौन। कहावत है ‘अति सर्वथा वर्जयेत। मध्य प्रदेश में नर्मदा घाटी अन्तर्गत नरसिंहपुर एवं उससे लगे क्षेत्रों में प्रदेश की 16 में से 9 शक्कर कारखाने चल रहे हैं एवं 2-3 के लायसेन्स प्रतिक्षा में हैं। जल प्रबंधन की दशा देखें तो ड्रिप में क्षेत्र नगण्य है व नीचे जाते भूजल स्तर को बढ़ाने के प्रयास पर्याप्त नहीं है। इससे गन्ने का दोष नहीं वरन नीतिगत चूक कहना ही श्रेयस्कर होगा।
कृषि लागत मूल्य आयोग ने अपनी गन्ना मूल्य नीति प्रतिवेदन में अनुशंसा की है कि गन्ने की औसत उत्पादन में वृद्धि के साथ अधिकतम जल उपयोग गुणवत्ता प्राप्त की जावे। इसके लिए ड्रिप सिंचाई के साथ फर्टीगेशन का उपयोग प्राथमिकता पर करने हेतु जोर दिया गया है, जिससे 40-50 प्रतिशत जल, 30 प्रतिशत उर्वरक एवं 30 प्रतिशत से अधिक ऊर्जा की बचत हो सके। इससे गन्ना उत्पादन में 25-50 प्रतिशत वृद्धि अनुमानित है। यही अनुशंसा लगभग सभी कृषि विशेषज्ञों ने की है। समय आ गया है इसे दीर्घकालीन योजना तहत कृषकों में चेतना भरकर इसी बुआई सत्र से लागू करवाने की। ‘गन्ना शक्कर के साथ चारा, अन्तरवर्तीय फसलों का पोषण, ऊर्जा एवं इथेनाल उत्पादन, उपउत्पादों से बेशकीमती अनेकों उत्पाद बनाने वाली, समृद्धि का साक्षात प्रतीक है। इसलिए वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाएं एवं अति उत्साहवाद में सक्षम फसल विकल्पों से किनारा करने की सलाह पर पूर्ण मंथन के बाद ही कोई निर्णय लें।
फसल |
अवधि (दिन) |
जल मांग (मि.मी.) |
उपज/हे. क्विंटल |
प्रतिदिन जल मांग (मि.मी.) |
गन्ना |
365 |
2100-2200 |
800 |
5.75 |
धान |
130 |
1400 |
60 |
10.76 |
कपास |
180 |
900 |
40 |
5.0 |
अरहर |
150 |
550 |
20 |
3.05 |
गेहूं |
110 |
550 |
55 |
5.0 |
ज्वार |
110 |
600 |
40 |
5.45 |
चना |
110 |
500 |
15 |
4.5 |
राज्य |
सिंचाई संख्या |
औसत गन्ना उपज (टन/हे.) |
1 किलो गन्ना पैदा करने में जल (लीटर) |
1 किलो शक्कर उत्पादन में जल (लीटर) |
महाराष्ट्र |
32 |
82.1 |
292 |
2104 |
उत्तरप्रदेश |
8 |
60.5 |
99 |
1028 |
कर्नाटक |
32 |
90.3 |
266 |
– |
तमिलनाडु |
25 |
103.6 |
181 |
2245 |
पंजाब |
13 |
72 |
135 |
– |
आंध्रप्रदेश |
28 |
80.1 |
262 |
2234 |
- बगास से बिजली
शक्कर उद्योग के विशेषज्ञ श्री हरीश दामोदरन के अनुसार गन्ना फसल में 70 प्रतिशत पानी होता है। यह 700 लीटर/ टन पानी कारखानों में शक्कर प्रसंस्करण में उपयोग आता है। इस 700 लीटर में से 250 लीटर बायलर में स्टीम का ऊर्जा परिवर्तन में और इतना ही शक्कर उत्पादन प्रक्रिया में काम आता है। इसके उपरान्त भी बचे हुए 200 लीटर को स्प्रे पोन्ड में ठण्डा कर उपचार उपरांत सिंचाई या अन्य कार्यों में उपयोग किया जा सकता है।
बिना बाहरी पानी के अपनी स्वयं की ऊर्जा, बगास का उपयोग कर हाई प्रेशर बायलर माध्यम से बिजली उत्पादित होती है। हर एक टन गन्ने से 130 किलोवाट हावर बिजली पैदा होती है। इसमें से केवल 35-36 यूनिट कारखाने में प्रसंस्करण हेतु एवं बाकी 94-95 यूनिट बिजली बोर्ड के ग्रिड हेतु प्रदाय की जा सकती है।
गन्ने की फसल को छोडऩे की वकालत करने वाले लोग इन बिन्दुओं पर भी विचार करें तो देश का हित होगा।
- गन्ना फसल का 5 मिलियन हे. क्षेत्र से टर्न ओवर रु. 90-95 हजार करोड़ प्रति वर्ष से अधिक है जिसमें से 60 प्रतिशत भागीदारी कृषकों की है।
- शक्कर उद्योग की वर्तमान क्षमता 2239 मिलियन लीटर इथेनाल बनाने की है जो 5 से 10 प्रतिशत पेट्रोल में मिलाने से विदेशी मुद्रा की बचत एवं पर्यावरण संरक्षण करेगा।
- शक्कर उद्योग अपनी आवश्यकता की 3000 मेगावाट ऊर्जा स्वयं उत्पादित करता है एवं इसके अलावा 5000 मेगावाट बिजली ग्रिड को भी प्रदान करता है।
- भारत में शक्कर उपभोग 26 मि. टन होता है। क्या भारत इतनी शक्कर बाहर से मंगाने में अपनी अर्थव्यवस्था को नहीं बिगाड़ लेगा? क्या इतना शक्कर आयात संभव है? क्या ऐसे प्रचार को बढ़ावा देना ब्राजील या अन्य शक्कर उत्पादक देशों की चाल तो नहीं?
- क्या 50 मिलियन कृषकों एवं उनके परिवारों के लिए जो गन्ना फसल पर निर्भर हैं, ओला-पाला जैसी मौसम की त्रासदियों पर छोडऩा उचित होगा?
- क्या 550 शक्कर कारखानों को बन्द करने से लाखों मजदूर, तकनीकी स्टाफ बेरोजगार नहीं हो जाएगा? क्या यह कृषि आधारित सबसे बड़े उद्योग के साथ न्याय होगा? शक्कर उद्योग के साथ जुड़े अनेकों कारखाने, ट्रांसपोर्ट, छोटे-बड़े व्यापारियों आदि को बड़ा झटका नहीं लगेगा?
- शक्कर कारखाने अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं, गन्ने के अभाव में बन्दी से सबसे पहले ग्रामीण अंचलों पर बहुत बुरा असर नहीं होगा। यह कितनी कृषक आत्महत्याओं का कारण होगा?
- गन्ना सी-4 श्रेणी का पौधा है व गर्म नम जलवायु पसन्द करता है। ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन के इस दौर में यही किसानों का रक्षक सिद्ध होगा।