National News (राष्ट्रीय कृषि समाचार)

उर्वरक संकट : प्रधानमंत्री ने दुनिया को किया आगाह

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  • शशिकांत त्रिवेदी,
    मो. : 9893355391

5 दिसम्बर 2022,  नई दिल्ली । उर्वरक संकट : प्रधानमंत्री ने दुनिया को किया आगाह – पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने त्र-20 देशों के सम्मलेन में दुनिया को आगाह किया कि आज यदि उर्वरकों की उपलब्धता पर ध्यान नहीं दिया गया तो आगे पूरी दुनिया भोजन के संकट से जूझ रही होगी। उन्होंने कहा कि भारत ने कोविड महामारी के दौरान दुनिया के दूसरे देशों को खाद्यान्न की आपूर्ति के साथ साथ देश के 130 करोड़ लोगों को भी खाद्य सुरक्षा मुहैया की।

भारत और दुनिया के दूसरे देशों में पिछले एक दशक में खाद, उर्वरक आदि की कीमतें आसमान छू रही हैं और उनमे स्थिरता नहीं है। यह महज किसानों की समस्या नहीं है बल्कि पूरी दुनिया की खाद्य सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है। भारत जैसे देशों में अभी एक आम धारणा है कि खाद और उर्वरकों का संकट रूस और यूक्रेन के बीच जंग के कारण है, लेकिन इस युद्ध ने ज्यादातर गेहूं और मक्का आयात करने वाले देशों को प्रभावित किया है। कई देश, जिनमें कुछ खाद्य पदार्थ निर्यात करते हैं वे उर्वरक के केवल आयात पर ही निर्भर हैं।

विश्व बैंक का उर्वरक मूल्य सूचकांक इस वर्ष की शुरुआत से लगभग 15 प्रतिशत बढ़ा है और कीमतें दो साल पहले की तुलना में तीन गुना से अधिक हो गई हैं। किसानों के लिए बढ़ती लागत, उर्वरकों की आपूर्ति में व्यवधान और व्यापार प्रतिबंध के कारण उर्वरकों का संकट है। रूस और यूक्रेन के बीच तनाव बढऩे के कारण प्राकृतिक गैस की कीमतों में  गिरावट शुरू हो गई थी, जिससे नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों का एक बड़ा  हिस्सा अमोनिया में बड़े पैमाने पर उत्पादन में कटौती के कारण प्रभावित हुआ। इसी तरह, चीन में कोयले की बढ़ती कीमत, वहां अमोनिया उत्पादन के लिए मुख्य फीडस्टॉक ने उर्वरक कारखानों को उत्पादन में कटौती करने के लिए मजबूर किया। अगर सभी देशों ने मिलकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो दुनिया एक नए खाद्य संकट में पहुंच जाएगी।

सभी देशों को उर्वरकों पर व्यापार प्रतिबंध या निर्यात प्रतिबंध हटा देना चाहिए। निर्यात प्रतिबंध उर्वरकों को उन गरीब विकासशील देशों की पहुंच से बाहर कर देते हैं जो खाद्य असुरक्षा और भूख के उच्चतम स्तर का सामना करते हैं। एक जानकारी के मुताबिक इस साल में जून की शुरुआत तक, 86 देशों में 310 सक्रिय व्यापार उपाय थे, जो भोजन और उर्वरकों को प्रभावित कर रहे थे, और इनमें से लगभग 40 प्रतिशत प्रतिबंधात्मक हैं। यह संख्या अब उस स्तर पर पहुंच रही है जो 2008-2012 के वैश्विक खाद्य मूल्य संकट के बाद से नहीं देखा गया था। व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए, लक्षित वस्तुओं के आयात के लिए अनावश्यक लालफीताशाही से छुटकारा पाकर देश देरी को कम कर सकते हैं और अनुपालन लागत में कटौती कर सकते हैं।

वैश्विक उर्वरक व्यापार की स्थानीय बाधाओं में से एक निर्माताओं, व्यापारियों और आयातकों को वित्तीय सुविधा जुटाने की जरूरत भी है।  कुछ मामलों में, उर्वरक खरीदारों के लिए वित्तीय उपलब्धता की जरूरतें तीन गुना हो गई हैं, इनमें से कई बाजारों में स्थानीय वाणिज्यिक बैंक वित्त पोषण की सामान्य कमी बढ़ गई है। उर्वरक उपयोग को और अधिक कुशल बनाया जाना चाहिए। यह किसानों को उचित प्रोत्साहन प्रदान करके किया जा सकता है जो उनके अति प्रयोग को प्रोत्साहित नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, नाइट्रोजन उपयोग दक्षता सामान्य रूप से 30-50 प्रतिशत तक होती है। यूरोपीय संघ नाइट्रोजन विशेषज्ञ पैनल लगभग 90 प्रतिशत नाइट्रोजन उपयोग दक्षता की सिफारिश करता है। सब्सिडी जो उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग को प्रोत्साहित करती है, बर्बादी को भी प्रोत्साहित करती है। इससे भी बदतर, इसके विनाशकारी परिणाम पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के रूप में देखने को मिल रहे हैं। उर्वरकों के अधिक कुशल उपयोग से उपलब्ध आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है, विशेष रूप से सबसे अधिक जरूरत वाले देशों में। अमीर देश प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम उर्वरकों की खपत करते हैं, जो विकासशील देशों की तुलना में लगभग दोगुना है।      

सब-सहारा अफ्रीकी देश सबसे कम खपत करते हैं, लगभग 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर। उर्वरक के अधिक उत्पादक और टिकाऊ उपयोग के लिए प्रोत्साहन बनाने के लिए सार्वजनिक नीतियों को फिर से तैयार करने और उनके सार्वजनिक व्यय का बेहतर लक्ष्य निर्धारित करने के अवसर मौजूद हैं। एक उदाहरण यूरोपीय संघ के 1992 के कॉमन एग्रीकल्चर प्रैक्टिस (ष्ट्रक्क) द्वारा लागू किए गए सुधार हैं।

इन सुधारों से पहले, यूरोपीय संघ के कृषि क्षेत्र को न्यूनतम मूल्य, आयात शुल्क, सरकारी खरीद आदि ने यूरोपीय संघ के कृषि मूल्यों को विश्व दरों से ऊपर रखा, जिससे उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग को बढ़ावा मिला। जब सुधार आये तब किसानों को सीधे भुगतान मिलने लगा और उत्पादन की कीमतें विश्व कीमतों की बराबरी पर आ गईं।

 इन परिवर्तनों ने उर्वरकों को अधिक कुशलता से उपयोग करने के लिए प्रोत्साहनों में वृद्धि की। तीसरा, हमें सर्वोत्तम प्रथाओं और नई तकनीकों को विकसित करने के लिए नवाचार में निवेश करना चाहिए जो प्रति किलो उर्वरक के उत्पादन में वृद्धि करने में मदद करेगा। इसमें यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसी सभी जानकारियों में निवेश करना शामिल है जिससे यह तय हो सके कि किसी खास फसल के सबसे उपयुक्त उर्वरक कौन सा है और उसकी मात्रा क्या होनी चाहिए।

प्रधानमंत्री मोदी ने अनेक उपाय सुझाये हैं, उन्होंने दुनिया से अपील की कि उर्वरकों की खपत कम करने का एक और तरीका है कि बाजरा जैसे मोटे और पौष्टिक अनाज उगाने पर जोर दिया जाए। भारत ने इसीलिये वर्ष 2023 को मोटे अनाज का वर्ष घोषित किया है।  इससे न केवल वर्तमान आपूर्ति चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी बल्कि उर्वरक की खपत भी कम होगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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