राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

देश में 150 सीड हब खुलेंगे : डॉ. सिंह

राष्ट्रीय दलहन अनुसंधान संस्थान के निदेशक से कृषक जगत की बातचीत

दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए 150 सीड हब खोले जा रहे हैं 

(अतुल सक्सेना)
भोपाल। दलहनी फसलें प्रोटीन तथा पोषक तत्वों से भरपूर होती है, इनमें 20 से 25 फीसदी तक प्रोटीन होता है इसलिए दलहनों का उत्पादन बढ़ाने तथा देश को आत्मनिर्भर बनाने एवं बच्चों को कुपोषण से मुक्त रखने के उद्देश्य से देशभर में 225 करोड़ रुपये की लागत से 150 सीड हब खोले जा रहे हैं जहां दलहनी फसलों के उन्नतशील प्रजाति के प्रमाणित बीज उपलब्ध रहेंगे और किसान बीज लेकर अपना उत्पादन बढ़ा सकेंगे। इसके साथ ही दलहनी फसलें जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं इसके लिए जागरुकता बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह जानकारी विश्व दलहन दिवस के अवसर पर भोपाल आये राष्ट्रीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर के निदेशक डॉ. एन.पी. सिंह ने कृषक जगत को एक विशेष मुलाकात में दी।

डॉ. सिंह राजधानी में आयोजित तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय दलहन संगोष्ठी में भाग लेने यहां आए थे। उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रस्ताव पारित कर विश्व दलहन दिवस 10 फरवरी को मनाने की घोषणा की गई है इसी तारतम्य में यह विश्व दलहन दिवस भोपाल में मनाया जा रहा है।

निदेशक ने बताया कि देश में दलहनी फसलों का रकबा बढ़ा है तथा रिकॉर्ड उत्पादन भी हो रहा है इसके बावजूद हम आत्मनिर्भर नहीं हुए हैं। उन्होंने बताया कि इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश-विदेश के लगभग 400 वैज्ञानिक दलहन उत्पादन की नयी-नयी तकनीक एवं प्रजातियों की जानकारी उपलब्ध करवा रहे हैं जिसका रोड मैप बनाकर भारत सरकार को देंगे जिससे दलहन की नीति तैयार हो सकेगी। दलहन के 150 सीड हब खोलने की कवायद भी दलहन का उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने का एक हिस्सा है।

विश्व दलहन दिवस पर समाचार

उन्होंने बताया कि म.प्र. में 16 सीड हब बनाने का निर्णय लिया गया है जिससे प्रदेश के किसानों को लाभ मिलेगा।

दलहनी फसलों से जलवायु परिवर्तन नियंत्रण के संबंध में डॉ. सिंह ने बताया कि यह फसलें वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकरण कर प्रति वर्ष लगभग 72 से 350 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर प्रदान करने की क्षमता रखती है जिससे नत्रजन की कमी काफी हद तक पूरी की जा सकती है तथा आगामी फसलों की नत्रजन की आवश्यकता में कमी आती है। उन्होंने बताया मिट्टी की उर्वरता और भौतिक संरचना में सुधार के क्षेत्र में भी दलहनी फसलें कारगर साबित होती है इसलिए दालों को मिश्रित एवं अंतरवर्तीय खेती के रूप में किसानों को अपनाना चाहिए।

निदेशक ने बताया कि स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति को दालों का सेवन करना चाहिए इससे प्रोटीन की भरपाई होती है। क्योंकि देश में लगभग 42 फीसदी 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे कुपोषण के शिकार हैं उन्होंने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने दलहनी फसलों के समर्थन मूल्य में इजाफा कर किसानों को आकर्षित किया है जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई है। वैसे भी भारत दलहन के क्षेत्र एवं उत्पादन दोनों में विश्व में पहले स्थान पर है, आयात पर निर्भरता कम हुई है तथा घरेलू उत्पादन में निर्भरता की ओर हम बढ़ रहे हैं।

डॉ. एन.पी. सिंह

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