संपादकीय (Editorial)

द ग्रेट टेल ऑफ़ हिन्दुइज्म : गागर में सागर

द ग्रेट टेल ऑफ़ हिन्दुइज्म  : गागर में सागर – क्या  है हिंदुत्व ? वैदिक धर्म किसे कहते हैं ? संस्कृति की उत्पत्ति कैसे हुई ? ये सवाल पहले भी हमारे  रहे हैं और आगे भी रहेंगे । परंतु ये जटिल प्रश्न युवा पीढ़ी को ज़्यादा मथते हैं । ऐसे ही अनेक शाश्वत सवालों का जवाब देती है द ग्रेट टेल ऑफ़ हिन्दुइजम पुस्तक । प्राचीन और अर्वाचीन , ऐतिहासिक , धार्मिक , सांस्कृतिक, आध्यात्मिक  संपूर्ण भारत के सूक्ष्म ताने बाने को इस किताब के लेखक द्वय श्री पी नरहरि आय ए एस(2001)और श्री पृथ्वीराज सिंह  ने इस पुस्तक में आदि  से अंत तक  बहुत खुबसूरती से पिरोया है । 8 विभिन्न अध्यायों में विभाजित इस पुस्तक में सनातन धर्म  के विभिन्न  आयाम सुधी पाठकों के लिए कड़ी दर कड़ी विश्लेषण सहित प्रस्तुत किए गए हैं  । क्षेपक कथाएँ और रोचक दृष्टान्त के माधयम से द ग्रेट टेल ऑफ़ हिनदुइजम  अल्प शब्दों में अपनी बात  पाठकों के दिलोदिमाग़ तक सीधे पहुँचाती है, और चिंतन प्रक्रिया को भी एक सुनिश्चित दिशा देती है ।पुस्तक में सनातन धर्म की प्रांजल मीमांसा से पाठक भी पुस्तक पढ़ने के बाद स्वयं को समृद्ध  अनुभव करता है । लेखकों ने भारत के इतिहास लेखन को दिल्ली केन्द्रित रहने पर भी चिंता जताई है । वहीं  दक्षिण भारत के अनेक साम्राज्य जैसे चोला डायनेस्टी , मराठा , सातवाहन वंश आदि की गौरव गाथाएँ भारत के  प्रचलित इतिहास में कुछ पंक्तियों तक ही सिमट के रह जाने पर चिंता व्यक्त की  हैं ।साथ ही भारत के हिमालय से ले कर हिन्दुकुश तक फैल गौरवशाली  इतिहास के पुनर्लेखन पर भी ज़ोर दिया है।

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पुस्तक में नारी सशक्तिकरण पर एक पूरा अध्याय है जिसमें वैदिक युग से शक्ति के दैवी स्वरूप को स्वीकारने और सृष्टि के सृजन में नारी की उपलब्धि और योगदान को विस्तृत रूप से रेखांकित किया है । लेखक द्वय ने पुस्तक में  भारत के विभिन्न मज़हब , पंथ ,संप्रदायों का  भी निर्भीकतापूर्वक तुलनात्मक विश्लेषण किया है  । निर्वाण शतकम् ,महाउपनिषद ,विष्णु पुराण से लेकर रामचरितमानस , श्रीमद्भगवदगीता , महाभारत के उद्धरण और मनु स्मृति , मत्स्य पुराण आदि के संदर्भ “ द ग्रेट टेल ऑफ़ हिन्दुइजम “ को सारगर्भित स्वरूप देते हैं । वैदिक काल से , पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता आया ये सनातन धर्म सूर्य -चंद्रमा की मानिंद शाश्वत है , इसमें कोई शंका नहीं है । ।केवल यही एक धर्म ऐसा है जो संपूर्ण सृष्टि को एक कुटुम्ब के रूप में देखता है । और हर काल खंड में  समस्त विरोध , विघटन , विखंडन के बावजूद सुदृढ़ हुआ है । धर्मों रक्षति रक्षित: – तुम धर्म की रक्षा करो , धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा । सनातन धर्म इतना व्यापक , विशद , विस्तीर्ण  है कि उसकी जितनी व्याख्या की जाए कम है । साथ ही  यह उदार , सहिष्णु , क्षमाशील भी  है ।

पुस्तक की प्रस्तावना वैदिक परंपरा के प्रमुख बुद्धिजीवी , टीचर डेविड फ़्रॉली ने लिखी है । पद्म भूषण से सम्मानित और अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ़ वैदिक स्टडीज़ के डायरेक्टर श्री फ़्रॉली पंडित वामदेव शास्त्री के नाम से भी जाने जाते हैं । हिंदुत्व को धर्म से भी आगे  श्रेष्ठतर स्थान पर प्रतिष्ठापित करते हुए यह पुस्तक युवा पीढ़ी के मंन में उठने वाले अनेक प्रश्नों का समाधान कर सकती  है ।और  उनके मन मस्तिष्क के वातायन भी खोलेगी  । बस ,आवश्यकता है युवाओं को पूर्वाग्रह से मुक्त दृष्टि की ,तभी वे अपनी संस्कृति को समझ पाएँगे , और ” धर्म “ रिलीजन के सीमित अनुवाद सीमा से बाहर आएगा ।  विद्वान लेखक द्वय श्री पृथ्वीराज सिंह एवं श्री पी . नरहरि ने आशा व्यक्त की है ,इस पुस्तक के माध्यम से पाठकों को इस दुनिया की  सभ्यता के सृजन में शुरूआत से लेकर अभी तक भारत के महती योगदान को विधिवत समझने का अवसर मिलेगा । श्री नरहरि की कामना है कि सनातन धर्म इस पृथ्वी पर बना रहे ।आमीन !

पुस्तक के अंग्रेज़ी संस्करण को पुस्तक प्रेमी पाठकों का भरपूर प्रतिसाद मिला है और इसके अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद होकर संस्करण लाने की प्रक्रिया जारी है ।ऑनलाइन शौपिंग प्लेटफार्म अमेज़न पर यह पुस्तक उपलब्ध है

  • सुनील गंगराडे
    मो. 98260 34864
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