संपादकीय (Editorial)

बीज-प्रथम सोपान

8 जुलाई 2021, भोपाल । बीज-प्रथम सोपान – बीज सुदृढ़ खेती की एक महत्वपूर्ण सीढ़ी है। जिस पर चढ़कर ही लक्षित उत्पादन का सपना साकार किया जा सकता है। बीज पौधों का वह अंग है जो परिपक्व होने पर नई पीढ़ी को जन्म देता है अर्थात् बीज वह शक्ति है जो पीढ़ी दर पीढ़ी तक अपनी पहचान कायम रख सकता है। बीज देखने में कितना छोटा दिखता है परंतु उसमें छुपी क्षमता को परखना साधारण मानव के परे है। वटवृक्ष की विशाल विकसित शाखाओं को देखकर क्या भला अनुमान लगाया जा सकता है कि उसका बीज राई के बीज के समान ही होता है परंतु उसकी क्षमता भविष्य ही दिखाता है। खेती के जानकारों का मानना है कि केवल उत्तम एवं शुद्ध बीज का उपयोग करने से उत्पादकता 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है। अच्छा बीज उसे ही मानना होगा जो अनुवांशिक तथा भौतिक रूप से शुद्ध एवं स्वस्थ हो तथा उसकी अंकुरण क्षमता एक निश्चित इकाई की पौध संख्या देने में सक्षम हो। इसी वजह के खेती का मूलमंत्र अच्छे बीज के उपयोग में ही व्याप्त है। उल्लेखनीय है कि 60 के दशक में भारतीय कृषि में क्रांति आई जिसे हरितक्रांति कहा गया। इस हरित क्रांति की पृष्ठभूमि में यदि देखा जाये तो बीज की भूमिका खास रही है। देश में खाद्यान्नों की भीषण कमी थी रोग विशेषकर गेरूआ की दो-दो महामारी से बुआई के लिये भी बीज का संकट था बाहर से गेरूआ को सहने वाला बीज लाया गया देशी किस्मों से संस्करण कराके रोग रोधी बीज निकाला गया जिसके उपयोग से उत्पादन के आंकड़ों में जादुई उछाल आया और कालान्तर में हम ना केवल खाद्यान्नों के मायने में आत्म निर्भर बने बल्कि हमारी क्षमता धान्यों के आयात के लिये भी बढऩे लगी हमारा सर गौरव से विदेशों में उठने लगा। साठ के दशक के बाद से हाईब्रिड के कदम तेजी से देश में बढऩे लगे करीब एक दर्जन गेहूं की और धान की विकसित जातियों ने भारतीय खेतों पर कई दशक राज किया तथा लक्षित उत्पादन देकर देश की और कृषकों की आर्थिक स्थिति सुधारी। जहां तक हाईब्रिड बीज का सवाल है मक्का और ज्वार की हाईब्रिड किस्मों ने गरीब तबके के कृषकों में बहुत तेजी से प्रगति के रास्ते खोल दिये सच है बीज की क्षमता ही तो है जिसने दशकों पहले पडऩे वाले आकाल को इतिहास के पत्रों में सिकोड़ कर रख दिया।

आज केवल आंकड़ें ही बतलाते हैं कि अमुक समय कितना भयंकर अकाल पड़ा था और उसका निदान भी कितनी शीघ्रता से आज हमारे सामने है सच तो यही है भारतीय बीज उद्योग का प्रार्दुभाव ही उन्नत, उत्तम बीज के उत्पादन विकास और विस्तार के कारण ही सफलता से हुआ और आज वह सफलता की चरम सीमा तक पहुंच गया है। हमारी निजी कम्पनियों ने अपना -अपना क्षेत्र चुना और सैकड़ों लोगों को इस उद्योग में रोजगार भी प्राप्त हुआ निजी कम्पनियों का योगदान सब्जी बीज उत्पादन में क्रांतिकारी रहा ऐसा कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। इसके कारण 70-75 प्रतिशत बीज रिपलेसमेन्ट (अच्छा बीज का विस्तार) इसकी सफलता का सबूत है। सब्जी बीज को प्राप्त करने के लिये सब्जी उत्पादक कृषक कीमत पर ध्यान दिये बगैर इसके क्रय के लिये तैयार रहते हैं इस दौड़ में उत्तरप्रदेश के कृषक सबसे आगे है। जहां उन्नत सब्जी बीज का कारोबार आज 300 करोड़ के ऊपर जा पहुंचा है। देश में सीड रिपलेशमेन्ट कार्यक्रम 60 से 70 प्रतिशत बढऩे की सम्भावनाओं का लक्ष्य है। कृषकों की भागीदारी की इस क्षेत्र में जरूरत है। कृषकों की सतत भागीदारी और सरकारी संस्थानों की क्रियाशीलता से ‘बीजÓ की उत्पत्ति का कार्य निरन्तरता चलता रहे तथा हमें लक्षित उत्पादन मिलता रहे इस दिशा में बीज के महत्व को कभी भी नहीं भुलाया जाये।

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