जलसंकट से बचायेगा हाइड्रोजेल
कुल मिलाकर हालात ऐसे हो गए हैं, जो इस ओर इशारा कर रहे हैं कि आने वाले समय में जलसंकट और विकराल रूप लेगा। देश की बढ़ती आबादी के लिये पेयजल के अलावा बड़ी मात्रा में खेती के लिये पानी की जरूरत पड़ेगी, ऐसे में पानी के बेहतर प्रबन्धन की सख्त जरूरत है ताकि भविष्य में पानी के संकट का मुकाबला किया जा सके। भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ की अर्थव्यवस्था खेती पर आधारित है, इसलिये सिंचाई में ऐसी पद्धति का इस्तेमाल करना होगा जिससे पानी का बेहतर-से-बेहतर इस्तेमाल किया जा सके। भारत में जितनी खेती होती है उनमें से 60 प्रतिशत खेती ऐसे क्षेत्र में की जाती है जहाँ पानी की बेहद किल्लत है। इनमें से 30 प्रतिशत जगहों पर पर्याप्त बारिश नहीं होती है। हालांकि ऐसा नहीं है कि जलसंकट केवल भारत में ही है। बताया जाता है कि विश्व के 181 देशों में जलसंकट है। भारत इस सूची में 41वें स्थान पर है।
भारत में खेती मुख्य रूप से बारिश पर निर्भर है। देश में 60 प्रतिशत खेती बारिश के पानी पर निर्भर है और इन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 1150 मिलीमीटर से भी कम होती है। यह सब देखते हुए खेती में पानी का बेहतर इस्तेमाल वक्त की जरूरत है।
खेती में पानी के बेहतर इस्तेमाल की बात यहाँ इसलिये की जा रही है क्योंकि भारत में पानी की जितनी खपत होती है, उसका 85 प्रतिशत हिस्सा खेती में इस्तेमाल होता है। औद्योगिक क्षेत्र में 15 प्रतिशत और घरेलू क्षेत्रों में 5 प्रतिशत पानी का उपयोग हो रहा है लेकिन जिस तरह देश की आबादी में बढ़ोत्तरी हो रही है और कल कारखाने खुल रहे हैं। उससे आने वाले समय में पानी की घरेलू और औद्योगिक खपत बढ़ेगी जिसका परिणाम यह निकलेगा कि खेती के लिये पानी की किल्लत हो जाएगी।
इस हालात में खेती को अगर बचाना है तो ऐसे विकल्पों पर विचार करना होगा जिसमें सिंचाई में पानी की बर्बादी न हो और पूरी कवायद में हाइड्रोजेल महत्वपूर्ण किरदार निभा सकता है।
भारत में जलसंकट के मजबूत संकेत दिखने लगे हैं। गई गर्मी में बुन्देलखण्ड समेत देश के कई राज्यों में सूखे ने खेती को पूरी तरह चौपट कर दिया। कई जगहों पर पेयजल का संकट भी दिखा। सूखे के कारण ग्रामीण इलाकों से पलायन भी हुआ। |
हाल ही में कृषि वैज्ञानियों ने एक शोध किया है जिसमें पता चला है कि हाइड्रोजेल की मदद से बारिश के पानी को स्टोर कर रखा जा सकता है और इसका इस्तेमाल उस वक्त किया जा सकता है जब फसलों को पानी की जरूरत पड़ेगी।
हाइड्रोजेल पोलिमर है जिसमें पानी को सोख लेने की अकूत क्षमता होती है और यह पानी में घुलता भी नहीं। हाइड्रोजेल बायोडिग्रेडेबल भी होता है जिस कारण इससे प्रदूषण का खतरा भी नहीं रहता है।साथ ही पाया गया है कि हाइड्रोजेल खेत की उर्वराशक्ति को तनिक भी नुकसान नहीं पहुँचाता है और इसमें 400 गुना पानी सोख लेने की क्षमता होती है। और एक एकड़ खेत में महज 1 से 2 किलोग्राम हाइड्रोजेल ही पर्याप्त है। हाइड्रोजेल 40 से 50 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी खराब नहीं होती है, इसलिये इसका इस्तेमाल ऐसे क्षेत्रों में किया जा सकता है, जहाँ सूखा पड़ता है। हाइड्रोजेल को खासतौर पर उष्ण कटिबंधीय और अद्र्घ कटिबंधीय जलवायु वाले देशों में इस्तेमाल के लिए तैयार किया गया है, जहां आमतौर पर दूसरे सभी तरह के जेल काम नहीं कर पाते हैं। वास्तव में जब तापमान 45 डिग्री सेल्सियस या उससे ऊपर चला जाता है तो इस जेल की अवशोषण क्षमता और बढ़ जाती है। पूसा हाइड्रोजेल कृषि में इस्तेमाल के लिए दूसरी सभी शर्तों को भी पूरा करता है जैसे कि खाद के साथ तालमेल बिठाना एव खासतौर पर सबसे अधिक इस्तेमाल में लाए जाने वाली यूरिया के साथ उसे काम में लाया जा सकता है। साथ ही यह जेल फसल के पूरे एक सत्र तक चल जाता है। इसमें कोई ऐसा पदार्थ नहीं है जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता हो। यह जेल जमीन की सेहत सुधारने में भी मदद करता है। यह मिट्टी को थोड़ा ढीला बनाकर फसलों की उत्पादकता को बढ़ाता है। शोधपत्र में कहा गया है कि हाइड्रोजेल के कण बारिश होने पर या सिंचाई के वक्त खेत में जाने वाले पानी को सोख लेता है और जब बारिश नहीं होती है तो कण से खुद-ब.-खुद पानी रिसता है, जिससे फसलों को पानी मिल जाता है। फिर अगर बारिश हो तो हाइड्रोजेल दोबारा पानी को सोख लेता है और जरूरत के अनुसार फिर उसमें से पानी का रिसाव होने लगता है। खेतों में हाइड्रोजेल का एक बार इस्तेमाल किया जाये तो, वह 2 से 5 वर्षों तक काम करता है और इसके बाद ही वह नष्ट हो जाता है लेकिन नष्ट होने पर खेतों की उर्वराशक्ति पर कोई नकारात्मक असर नहीं डालता है, बल्कि समय-समय पर पानी देकर फसलों और खेतों को फायदा ही पहुँचाता है। हाइड्रोजेल का इस्तेमाल उस वक्त किया जा सकता है जब फसलें बोई जाती हैं। फसलों के साथ ही इसके कण भी खेतों में डाले जा सकते हैं। हाइड्रोजेल के इस्तेमाल को लेकर कई प्रयोगशालाओं एवं खेतों में व्यापक शोध किया गया है और इन शोधों के आधार पर ही यह शोधपत्र तैयार किया गया है। सोयाबीन, सरसों, प्याज, टमाटर, फूलगोभी, गाजर, धान, गन्ने, हल्दी, जूट समेत अन्य पसलों में हाइड्रोजेल का इस्तेमाल कर पाया गया कि इससे उत्पादकता तो बढ़ती है, लेकिन पर्यावरण और फसलों को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है।
- उत्तम कुमार त्रिपाठी
- डॉ. राजीव सिंह
- आराधना वर्मा
- डॉ. कमलेश अहिरवार
- डॉ. वीणा पाणि श्रीवास्तव
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