क्या भारत का किसान जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से वाकिफ है ?
- शशिकांत त्रिवेदी
वरिष्ठ पत्रकार
17 नवंबर 2021, क्या भारत का किसान जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से वाकिफ है ? – हाल ही में 2 नवंबर को ग्लास्गो (स्कॉटलैंड) में दुनिया भर के राजनेता जलवायु परिवर्तन और उसके कृषि-निर्भर क्षेत्रों पर बढ़ते सबसे बुरे प्रभाव और उनके समाधानों के लिए इकठ्ठा हुए. संयुक्त राष्ट्र के इस जलवायु शिखर सम्मेलन को कॉप 26 नाम दिया गया। इस सम्मलेन में जो बात सामने आई वह यह कि जल्दी ही ठोस कदम नहीं उठाये गये तो दक्षिण एशियाई और उप-सहारा अफ्रीकी क्षेत्र सहित कई दूसरे भौगोलिक क्षेत्रों में गरीबी और भुखमरी चुनौती के तौर पर सामने खड़ी है.
इस COP26 सम्मेलन में जो पिछले ऐसे कई सम्मेलनों की एक श्रृंखला थी, इस बात के लिए भी आयोजित की गई कि पहले हुए सम्मेलनों में लिए गए ग्रीनहाउस गैसों, कार्बन उत्सर्जन और कृषि पर उनके प्रभाव की समस्या से निपटने के बारे में दुनिया के देशों ने क्या किया और कौन से नए समाधान या तरीके सामने आये हैं जिन पर चर्चा की जा सके. एक तात्कालिक कदम के रूप में इस संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में दान दाताओं के गठबंधन ने सीजीआईएआर (अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान पर सलाहकार समूह) के माध्यम से कम आय वाले देशों में किसानों को जलवायु-परिवर्तन से निपटने के समाधान के उपाय जुटाने के लिए 575 मिलियन डॉलर देने का वादा भी किया गया.
इस सीजीआईएआर समूह की स्थापना 1971 में हुई थी. इसमें विभिन्न स्तरों के ’दाता’ हैं जो 15 अंतर्राष्ट्रीय केंद्रों का समर्थन करते हैं. वे दुनिया भर में कई सैकड़ों सरकारी और नागरिक समाज संगठनों और कई निजी उद्योग घरानों के साथ मिलकर काम करते हैं. यह सम्मलेन, जो पहले 2020 में निर्धारित था, कोविड-19 महामारी के कारण टल गया था. पेरिस समझौते के बाद यह पहला सम्मेलन था, जो इस बात की स्पष्ट तस्वीर प्रदान करने के लिए प्रभावी हुआ कि वैश्विक समुदाय अपने लक्ष्यों से कितने पिछड़ रहे हैं.
भारत ने भी इस सम्मलेन में खेती और सम्बंधित व्यवसायों पर पडऩे वाले विपरीत प्रभावों को लेकर अपना पक्ष रखा. भारत के प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी ने COP26 जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान दुनिया को यह विश्वास दिलाया कि भारत जलवायु परिवर्तन से लडऩे के लिए पांच उपायों के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें यह सुनिश्चित करने की योजना भी शामिल है कि देश का आधी ऊर्जा सन 2030 केवल जीवाश्म ईंधन के अलावा अन्य मिश्रित स्रोतों से आने लगेगी. हालांकि, भारत ने देश के विशाल कृषि क्षेत्र और सम्बंधित व्यापार पर पडऩे वाले विपरीत प्रभाव पर अपनी चिंताओं के कारण वनों की कटाई को रोकने और 2030 तक मीथेन गैस उत्सर्जन में कटौती करने के लिए COP26 में ली जाने वाली शपथ पर हस्ताक्षर नहीं किये. यह एक सही निर्णय था क्योंकि ऐसा करने से फायदे के बजाय नुकसान ज़्यादा था क्योंकि इसका सीधा असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पशुधन की भूमिका पर पड़ेगा. हालांकि कई अन्य नेताओं ने दशक के अंत तक वनों की कटाई को रोकने और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए ग्रीनहाउस गैस मीथेन के उत्सर्जन में कटौती करने का संकल्प लिया. भारत की 2.7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 15 प्रतिशत से अधिक है और हमारा कृषि क्षेत्र देश के लगभग 80 लाख लोगों की किसी न किसी तरह का रोजगार देता है. लगभग 80 लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और भारत की बड़ी पशुधन आबादी देश की कृषि और इसकी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हालांकि, मीथेन उत्सर्जन को कम करने की तुलना में वानिकी कोई बड़ा मुद्दा या चुनौती नहीं है; फिर भी सम्मलेन में भाग लेने वाले सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट्स ये आईं कि भारत ने अभी ऐसे किसी भी संकल्प को लेने से इसलिए इंकार किया क्योंकि इससे कई तरह का व्यापार सीमित हो जाता. कार्बन डाइऑक्साइड एक ग्रीनहाउस गैस है, इसके उत्सर्जन से ग्रह का तापमान बढ़ जाता है.
यह माना जाता है कि पेड़ पौधे पिछले कई सौ वर्षों में तेल, गैस और विशेष रूप से कोयले के जलने से वातावरण में CO2 का उत्सर्जन के विपरीत प्रभावों को पेड़ पौधे उलट सकते हैं. लेकिन ये वे पेड़ पौधे होने चाहिए जो इस तरह का प्रभाव कम कर सकें, खेती में भी वे फैसले उगाई जाएँ जो कार्बन डाइऑक्साइड का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल करती हों या कम से कम ’कार्बन-तटस्थ’ होनी चाहिए. वास्तविक स्थिति इतनी आसान नहीं है. एक हालिया शोध से पता चलता है कि सन् 2015 में खेतों से लेकर सारी खाद्य प्रणालियों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 18 गीगाटन था, और यह कि इस खतरनाक ग्रीन हाउस गैस का ज़्यादा हिस्सा भोजन के खेत से बाहर निकलने से पहले ही वातावरण में गया था. दूसरे शब्दों में इतनी भारी मात्रा में किसी ग्रीनहॉउस गैस का उत्सर्जन दुनिया भर में हुए कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग एक तिहाई था. एक अन्य शोध से पता चलता है कि पशु-आधारित भोजन, पौधा-आधारित खाद्य पदार्थों की तुलना में दोगुना CO2 उत्सर्जित करती है. फिलहाल इस सम्मलेन में सीजीआईएआर ने अपनी दान राशि इस वर्ष 863 मिलियन डॉलर कर दी है ताकि जल्दी ही जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना किया जा सके जो भूख और गरीबी के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को आगे बढ़ा सकती हैं.
जहाँ तक भारत का सवाल है, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने COP26 शिखर सम्मेलन के मौके पर श्री बिल गेट्स से भी मुलाकात की. प्रधानमंत्री ने भारत में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना की. फसलों, मछलियों और पशुओं पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भुखमरी और गरीबी में लगातार वृद्धि होने का एक प्रमुख कारक है, कथित तौर पर यह धीरे-धीरे वर्षों में हुई प्रगति को खत्म कर रही है. हालांकि, दक्षिण एशियाई और उप-सहारा क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के खतरे का पैटर्न चुनौतीपूर्ण है. ऐसी आशंकाएँ भी हैं कि किसानों को जल्दी ही इन चुनौतियों से निपटने में सक्षम बनाने के लिए रणनीतिक और आक्रामक रवैये की ज़रूरत है क्योंकि इनके अभाव में, कृषि पर जलवायु परिवर्तन का विपरीत प्रभाव पडऩे से वे पहले ही पीडि़त हैं. जलवायु परिवर्तन से गरीबी और कुपोषण की उच्च दर के विभिन्न आंकड़ों से ये तथ्य स्पष्ट हो चुके हैं. जलवायु परिवर्तन का एक और बुरा नतीजा यह है कि दुनिया भर में 2030 तक भुखमरी खत्म करने के जो सतत विकास लक्ष्य तय किये गए हैं उन्हें प्राप्त करना असंभव हो जाएगा. खेती में सुधार कर, जलवायु परिवर्तन के कारण संभावित भुखमरी और गरीबी से दुनिया को बचने के लिए COP26 में कई घोषणाएं की गई हैं फिर भी जलवायु परिवर्तन के खतरे और छोटे किसानों के लिए ज़रूरी धनराशि उपलब्ध करवाने के बीच अभी भी एक बहुत बड़ी खाई है जिसे पाटा जाना नितांत आवश्यक है.