मानव स्वास्थ्य के लिये वरदान, कोदो-कुटकी, रागी, सांवा खाद्यान्न
02 फरवरी 2023, खंडवा: मानव स्वास्थ्य के लिये वरदान, कोदो-कुटकी, रागी, सांवा खाद्यान्न – छोटे आकार के दाने वाले अनाज जैसे कोदो-कुटकी, सांवा , रागी, ज्वार, बाजरा, कांगनी आदि भारत एवं प्रदेश के प्रमुख लघु धान्य (मिलेट्स) फसलें हैं । इन अनाजों की न्युट्रेटिव (पोष्टिकता मूल्य) वेल्यु अन्य अनाजों से ज्यादा होने के कारण इन अनाजों को लघु धान्य (माईनर मिलेटस्) पोषक अनाज अथवा न्युट्रिसीरियल के नाम से जाना जाता है। यह मानव स्वास्थ्य के लिये वरदान है।
उप संचालक कृषि ने बताया कि इन अनाजों में प्रोटीन का स्तर गेहूं के लगभग समान होने के साथ -साथ इनमें विटामिन -बी, विटामिन-ई, आयरन, फास्फोरस, वसा, फाईबर(रेसा), पोटेशियम, मैग्नेशियम, कैल्शियम, जिंक, मैगनींज, कार्बोहाईड्रेटस्, के साथ ही ऐमिनो एसिडस् प्रचुर मात्रा में पाये जाने के कारण स्वास्थ्य विशेषज्ञो ने इन पोषक अनाजो को सुपर फूड की श्रेणी में रखा है। लेकिन बहुत ही दुःखद बात है कि नीतिगत उपेक्षा एवं सब्सिडी की कमी के कारण हमारी खाद्य श्रृंखला (फूड चेन) से बाहर होते चले गये तथा इनका स्थान गेहूं एवं चावल ने ले लिया। इन पोषक अनाजों के रकबे में दिन-प्रतिदिन कमी होती चली गई। जिसका परिणाम यह हुआ कि वर्तमान समय में हर छः व्यक्तियों में से एक व्यक्ति शुगर या डाईबिटीज से आज के समय में पीड़ित है। लेकिन पशुओं, एवं पक्षियों के भोजन तथा इनसे स्टार्च उत्पादन, शराब आदि के उत्पाद बनाने में उपयोग किये जाने के कारण आज तक इन पोषक अनाजों का अस्तित्व बचा हुआ है।
उप संचालक कृषि ने बताया कि ये फसलें 60-80 दिन की अवधि में पक जाती है तथा गेहूं , चावल आदि फसलों की अपेक्षा बहुत ही कम पानी की आवश्यकता होती है। इन फसलों का उत्पादन कम उपजाऊ भूमि में भी आसानी से किया जा सकता है। इन फसलों के बारे में तर्क दिया जाता है कि यह फसलें स्वाभाविक रूप से ऊर्जा और पौधों के पोषक तत्वों को जैव भार में अधिक किफायत से परिवर्तित कर लेती है। लघु धान्य फसलों से तैयार होने वाले प्रमुख व्यंजन पोषक अनाज का उपयोग प्रमुख रूप से रोटी अथवा भात (चावल) के रूप में किया जाता है। किन्तु आज कल इन पोषक अनाजों से विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन भी तैयार किये जाते हैं ।
लघु धान्य फसलों की प्रमुख विशेषताएं – उप संचालक कृषि ने बताया कि यह प्रायः सभी प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है। वर्षाकाल में वर्षा का अंतराल लम्बा होने पर ये फसलें मरती नही है अर्थात ये सूखा सहनशील होती है। उत्पादन लागत बहुत कम आती है। कीट- व्याधि के प्रति प्रतिरोधक क्षमता या सहनशीलता के कारण कीट-व्याधि से आंशिक रूप से प्रभावित होती है। इन लघु धान्य अनाजों का भण्डारण अन्य अनाजों की अपेक्षा अधिक दिनों तक किया जा सकता है।
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