राज्य कृषि समाचार (State News)

समन्वित सोयाबीन अनुसन्धान परियोजना की 53 वीं वार्षिक बैठक ग्वालियर में सम्पन्न

सोयाबीन की सात किस्मों की अधिसूचना की अनुशंसा, तीन किस्में इंदौर केंद्र की  

19 मई 2023, इंदौर: समन्वित सोयाबीन अनुसन्धान परियोजना की 53 वीं वार्षिक बैठक ग्वालियर में सम्पन्न – भाकृअनुप-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान इंदौर एवं राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषिविश्वविद्यालय, ग्वालियर  के संयुक्त तत्वावधान में सोयाबीन पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 53 वीं वार्षिक समूह बैठक गत दिनों ग्वालियर में आयोजित की गई। जिसमें डॉ तिलक राज शर्मा, उप-महानिदेशक (फसल विज्ञान) भाकृअप, नई दिल्ली , डॉ अरविंदकुमार शुक्ला, कुलपति; राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय , ग्वालियर ,डॉ संजीव गुप्ता, एडीजी (तिलहन और दलहन) ,डॉ के.एच. सिंह, निदेशक, भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर; सहायक महानिदेशक (तिलहन एवं दलहन) भाकृअप , डॉ संजय शर्मा, निदेशक, अनुसंधान सेवाएं सहित अ.भा.समन्वित सोयाबीन अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपीएस) से जुड़े विभिन्न केंद्रों  के लगभग 100 वैज्ञानिक ,विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारी एवं अन्य अतिथि शामिल हुए। एआईसीआरपीएस से सम्बद्ध विभिन्न केंद्रों के वैज्ञानिकों ने उनके द्वारा विगत वर्ष किए गए अनुसंधान कार्यक्रमों की समीक्षा की गई।

डॉ के. एच. सिंह  ने पिछले खरीफ सीजन में विभिन्न केंद्रों पर की गई अनुसंधान गतिविधियों और परीक्षणों की रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने वर्ष 2022  के सोया वैज्ञानिकों द्वारा विकसित उन्नत तकनीक, पद्धतियां एवं  नवीनतम किस्मों की सराहना  कर सोयाबीन के उत्पादन में हानि  पहुंचाने वाले कीट/रोग/ सूखा /अतिवर्षा , जैविक और अजैविक कारकों जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए किए जा रहे अनुसन्धान  कार्यक्रमों से भी अवगत कराया। आपने बताया कि आईआईएसआर, इंदौर सहित देश के विभिन्न  केंद्रों द्वारा किए गये अनुसंधान परीक्षणों के परिणाम संतोषजनक रहे हैं । डॉ सिंह ने सोयाबीन अनुसंधान एवं विकास प्रणाली द्वारा विकसित नवीनतम तकनीकी सिफारिशों   की जानकारी  देते हुए बताया कि इस वार्षिक बैठक में सोयाबीन की कुल 7 नई क़िस्मों के नोटिफ़िकेशन की अनुशंसा की गई है ,इनमें मध्य क्षेत्र के लिए भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान , इंदौर द्वारा विकसित तीन क़िस्में – एनआरसी 181(कुनीट्ज़ ट्रिप्सिन इनहिबिटर मुक्त), एनआरसी 188 (मध्य क्षेत्र की प्रथम वेजिटेबल सोयाबीन), एनआरसी 165; जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर की दो क़िस्में जेएस 22-12 एवं जेएस 22-16; गोविंद वल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित सोयाबीन क़िस्म पीएस 1670 को देश के उत्तरी मैदानी क्षेत्र के लिए और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा विकसित क़िस्म आरएससी 11-35 देश के पूर्वी क्षेत्र के लिए पहचान की गई है।

डॉ  संजीव गुप्ता ने कहा कि  देश की खाद्य तेल आवश्यकता की पूर्ति में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए  हमें अपरम्परागत क्षेत्रो में सोयाबीन की खेती का  क्षेत्र बढ़ाने के लिए प्रयास तेज करने होंगे। ब्राजील एवं अर्जेंटीना जैसे देशों में सोयाबीन की खेती में कम जुताई वाली  तकनीकी  (कंजर्वेशन एग्रीकल्चर) की तरह अपने देश में भी ऐसे अनुसन्धान एवं विकास  कार्य करने होंगे । डॉ अरविंद कुमार शुक्ला ने कहा कि सोयाबीन की खेती में विभिन्न शस्य क्रियाओं में लगभग 40 प्रतिशत व्यय  मानव श्रम के रूप में  होता है, ऐसे में  यांत्रिकीकरण की गति बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है। ग्वालियर संभाग में सोयाबीन की खेती को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा प्रयास  कर रहा है, जिसके सकारात्मक परिणाम  मिलने की उम्मीद है। डॉ. टी आर शर्मा, ने सोयाबीन प्रजातियों की विविधता को बढ़ावा देने तथा अधिक से अधिक जलवायु-उपयुक्त, अधिक उत्पादन क्षमता वाली किस्मों का कृषको में प्रचार-प्रसार करने पर जोर दिया और कहा कि जैव तकनीकी  पर आधारित (मार्कर असिस्टेड सिलेक्शन-जिनोम वाइड एसोसिएशन स्टडीज) तरीकों का उपयोग करते हुए स्पीड ब्रीडिंग की सहायता से कम से-कम समय में सोयाबीन किस्मों के विकास की प्रक्रिया की गति बढ़ाई जा सकती  है । इस कार्यक्रम में दो तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। फसल सुधार कार्यक्रम से संबंधित तकनीकी सत्र में पादप प्रजनकों ने देश भर में किए गए प्रारंभिक के साथ-साथ अग्रिम किस्मों के परीक्षणों के परिणाम प्रस्तुत किए ।  वहीं पौध संरक्षण के तकनीकी सत्र  में विभिन्न प्रतिरोध  स्रोतों को शामिल करते हुए कीट-पीड़कों और रोगों के प्रबंधन के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डाला गया।

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