उद्यानिकी (Horticulture)

आ गया भिंडी लगाने का समय

बीज की मात्रा व बुआई का तरीका- ग्रीष्म ऋतु के लिए 18 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा खरीफ के लिए 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों के लिए 5 किग्रा प्रति हेक्टर की बीज दर पर्याप्त होती है। भिंडी के बीज सीधे खेत में ही बोये जाते हैं। बीज बोने से पहले खेत को तैयार करने के लिये 2-3 बार जुताई करनी चाहिए। वर्षाकालीन भिंडी के लिए कतार से कतार दूरी 40-45 सेमी एवं कतारों में पौधे की बीच 25-30 सेमी का अंतर रखना उचित रहता है। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। कतार से कतार की दूरी 25-30 सेमी एवं कतार में पौधे से पौधे के मध्य दूरी 15-20 सेमी रखनी चाहिए। बीज की 2 से 3 सेमी गहरी बुवाई करनी चाहिए। बुवाई के पूर्व भिंडी के बीजों को 3 ग्राम मेन्कोजेब या कार्बेन्डाजिम/किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
बुआई समय- ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई फरवरी-मार्च में तथा वर्षाकालीन भिंडी की बुवाई जून-जुलाई में की जाती है। यदि भिंडी की फसल लगातार लेनी है तो तीन सप्ताह के अंतराल पर फरवरी से जुलाई के मध्य अलग-अलग खेतों में भिंडी की बुवाई की जा सकती है।
निंदाई-गुड़ाई- नियमित निंदाई-गुड़ाई कर खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। बोने के 15-20 दिन बाद प्रथम निंदाई-गुड़ाई करना जरुरी रहता है। खरपतवार नियंत्रण हेतु रसायनिक कीटनाशकों का भी प्रयोग किया जा सकता है। खरपतवारनाशी फ्लूक्लोरोलिन के 1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।
सिंचाई- सिंचाई मार्च में 10-12 दिन, अप्रैल में 7-8 दिन और मई-जून में 4-5 दिन के अन्तर पर करें।
बीज एवं बीजोपचार- ग्रीष्मकालीन फसल हेतु 18-20 किग्रा बीज एक हेक्टर बुवाई के लिए पर्याप्त होता है जबकि वर्षाकालीन फसल में अधिक बढ़वार की कारण 12-15 किग्रा बीज प्रति हेक्टर उपयोग करना चाहिए। ग्रीष्मकालीन भिंडी के बीजों को बुवाई के पूर्व 12-24 घंटे तक पानी में डुबाकर रखने से अच्छा अंकुरण होता है। बुवाई के पूर्व भिंडी के बीजों को 3 ग्राम थायरम या कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज दर से उपचारित करना चाहिए। संकर किस्मों के लिए 5 किग्रा प्रति हेक्टर बीज पर्याप्त होता है। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। कतार से कतार की दूरी 25-30 सेमी एवं कतार में पौधे की मध्य दूरी 15-20 सेमी रखनी चाहिए। वर्षाकालीन भिंडी के लिए कतार से कतार दूरी 40-45 सेमी एवं कतारों में पौधे की बीच 25-30 सेमी का अंतर रखें।
पोषण प्रबंधन- भिंडी की बुवाई के दो सप्ताह पूर्व 250-300 क्विंटल सड़ा हुआ गोबर खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। प्रमुख तत्वों में नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश क्रमश: 60 कि.ग्रा., 30 कि.ग्रा. एवं 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से मिट्टी में देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व भूमि में देना चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा दो भागों में 30-40 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए।
जल प्रबंधन- यदि भूमि में पर्याप्त नमी न हो तो बुवाई के पूर्व एक सिंचाई करनी चाहिए। गर्मी के मौसम में प्रत्येक पांच से सात दिन के अंतराल पर सिंचाई आवश्यक होती है। बरसात में आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए तथा अतिवृष्टि के समय उचित जल निकास होना चाहिए।
फल की तुड़ाई एवं उपज- किस्म की गुणवत्ता के अनुसार 45-60 दिनों में फलों की तुड़ाई प्रारंभ की जाती है एवं 4 से 5 दिनों के अंतराल पर नियमित तुड़ाई की जानी चाहिए। ग्रीष्मकालीन भिंडी फसल में उत्पादन 60-70 क्विंटल प्रति हेक्टर तक होता है।

उन्नत किस्में

पूसा ए-4

  • यह भिंडी की एक उन्नत किस्म है।
  • यह प्रजाति 1995 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा निकाली गई हैं।
  • यह एफिड तथा जैसिड के प्रति सहनशील हैं।
  • यह पीतरोग यैलो वेन मोजैक विषाणु रोधी है।
  • फल मध्यम आकार के गहरे, कम लस वाले, 12.15 सेमी लंबे तथा आकर्षक होते हंै।
  • बोने के लगभग 15 दिन बाद से फल आना शुरू हो जाते है तथा पहली तुड़ाई 45 दिनों बाद शुरू हो जाती हैं।
  • इसकी औसत पैदावार ग्रीष्म में 10 टन व खरीफ में 15 टन प्रति हे. है।

परभनी क्रांति

  • यह किस्म पीत रोगरोधी है।
  • यह प्रजाति 1985 में मराठवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय, परभनी द्वारा निकाली गई हैं।
  • फल बुआई के लगभग 50 दिन बाद आना शुरू हो जाते है।
  • फल गहरे हरे एवं 15.18 सेमी. लम्बे होते हैं।
  • इसकी पैदावार 9.12 टन प्रति हे. है।

पंजाब-7

यह किस्म भी पीतरोग रोधी है। यह प्रजाति पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा निकाली गई हैं। फल हरे एवं मध्यम आकार के होते हैं। बुआई के लगभग 55 दिन बाद फल आने शुरू हो जाते है। इसकी पैदावार 8.12 टन प्रति हे. है।

अर्का अभय :

  • यह प्रजाति भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा निकाली गई हैं।
  • यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी है।
  • इसके पौधे ऊँचे 120.150 सेमी सीधे तथा अच्छी शाखा युक्त होते हैं।

अर्का अनामिका :

यह प्रजाति भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा निकाली गई हैं।
यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी है।
इसके पौधे ऊँचे 120.150 सेमी सीधे व अच्छी शाखा युक्त होते हैं।
फल रोमरहित मुलायम गहरे हरे तथा 5.6 धारियों वाले होते हैं।
फलों का डंठल लम्बा होने के कारण तोडऩे में सुविधा होती हैं।
यह प्रजाति दोनों ऋतुओं में उगाईं जा सकती हैं।
पैदावार 12.15 टन प्रति हे. हो जाती हैं।

वर्षा उपहार:

  • यह प्रजाति चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा निकाली गई हैं।
  • यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी है।
  • पौधे मध्यम ऊँचाई 90.120 सेमी तथा इंटरनोड पास पास होते हैं।
  • पौधे में 2-3 शाखाएं प्रत्येक नोड से निकलती हैं।
  • पत्तियों का रंग गहरा हरा, निचली पत्तियां चौड़ी व छोटे छोटे लोब्स वाली एवं ऊपरी पत्तियां बडे लोब्स वाली होती हैं।
  • वर्षा ऋतु में 40 दिनों में फूल निकलना शुरू हो जाते हैं व फल 7 दिनों बाद तोड़े जा सकते हैं।
  • फल चौथी पांचवी गठियों से पैदा होते हैं। औसत पैदावार 9.10 टन प्रति हे. होती हैं।
  • इसकी खेती ग्रीष्म ऋतु में भी कर सकते हैं।

हिसार उन्नत

  • यह प्रजाति चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा निकाली गई हैं।
  • पौधे मध्यम ऊँचाई 90.120 सेमी तथा इंटरनोड पासपास होते हैं।
  • पौधे में 3-4 शाखाएं प्रत्येक नोड से निकलती हैं। पत्तियों का रंग हरा होता हैं।
  • पहली तुड़ाई 46-47 दिनों बाद शुरू हो जाती हैं।
  • औसत पैदावार 12-13 टन प्रति हे. होती हैं।
  • फल 15.16 से.मी. लम्बे हरे तथा आकर्षक होते हैं।
  • यह प्रजाति वर्षा तथा गर्मियों दोनों समय में उगाईं जाती हैं।

वी.आरओ-6

  • इस किस्म को काशी प्रगति के नाम से भी जाना जाता है।
  • यह प्रजाति भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी द्वारा 2003 में निकाली गई हैं।
  • यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी है।
  • पौधे की औसतन ऊँचाई वर्षा ऋतु में 175 सेमी तथा गर्मी में 130 सेमी होती है।
  • इंटरनोड पास-पास होते हैं।
  • औसतन 38 वें दिन फूल निकलना शुरू हो जाते हैं ।
  • गर्मी में इसकी औसत पैदावार 13.5 टन एवं बरसात में 18.0 टन प्रति हे. तक ली जा सकती है।
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