Horticulture (उद्यानिकी)

स्ट्रॉबेरी की आधुनिक खेती पद्धति

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  • एग्रोनॉमिस्ट टीम, रिसर्च एंड डेवलपमेन्ट
    ग्रोइट इंडिया प्रा. लि.,
    सूरत  (गुजरात)

    मो. : 91-8008896978

1 सितम्बर 2022, स्ट्रॉबेरी की आधुनिक खेती पद्धति – स्ट्रॉबेरी एक ऐसा फल है जिससे हम सभी भली-भांति परिचित हैं। स्ट्रॉबेरी में कई जरुरी पोषक तत्व पाए जाते हैं जो हमारे सेहत के लिए जरुरी हैं। स्ट्रॉबेरी की बढ़ती कीमत और मांग की वजह से किसानों की रूचि स्ट्रॉबेरी की खेती की ओर बढऩे लगा है। स्ट्रॉबेरी एक महत्वपूर्ण नरम फल है, जिसको विभिन्न प्रकार की भूमि तथा जलवायु में उगाया जा सकता है। यह पॉलीहाउस के अंदर और खुले खेत दोनों जगह हो जाता है। इसका पौधा कुछ ही महीनों में फल दे सकता है। इस फसल का उत्पादन बहुत लोगों को रोजगार दे सकता है। स्ट्रॉबेरी दूसरे फलों के मुकाबले जल्दी आमदनी देता है। यह कम लागत और अच्छे मूल्य का फल है।

स्ट्रॉबेरी एंटीऑक्सिडेंट, विटामिन सी, विटामिन-बी 1, बी 2, नियासिन, प्रोटीन और खनिजों का एक अच्छा प्राकृतिक स्रोत है। इसमें मिनरल्स भरपूर मात्रा में होते हैं।

भारत के इन राज्यों में होती है स्ट्रॉबेरी की खेती

स्ट्रॉबेरी की खेती आमतौर पर ठंडे इलाकों में की जाती है। भारत में कई राज्य जैसे-नैनीताल, देहरादून, हिमाचल प्रदेश, महाबलेश्वर, महाराष्ट्र, नीलगिरी, दार्जिलिंग आदि जहां स्ट्रॉबेरी की खेती व्यावसायिक तौर पर की जाती है।

जलवायु

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यह फसल शीतोष्ण जलवायु वाली फसल है जिसके लिए 20 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है। तापमान बढऩे पर पौधों में नुकसान होता है और उपज प्रभावित हो जाती है।

स्ट्रॉबेरी उगाने के लिए मिट्टी व खेत की तैयारी

विभिन्न प्रकार की भूमि में इसको लगाया जा सकता है। परंतु रेतीली-दोमट भूमि इसके लिए सर्वोत्तम है। भूमि में जल निकासी अच्छी हो। इसकी खेती के लिए पीएच 5 से 6.5 तक मान वाली मिट्टी भी उपयुक्त होती है। बलुई दोमट और लाल मिट्टी स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए अच्छी मानी जाती है, क्योंकि इस मिट्टी में स्ट्रॉबेरी की अधिक पैदावार और फल में मिठास आती है।

स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाने का समय

स्ट्राबेरी के पौधों की रोपाई 10 सितम्बर से 10 अक्टूबर तक की जाये। रोपाई के समय अधिक तापमान होने पर पौधों को कुछ समय बाद अर्थात् 20 सितम्बर तक शुरू किया जा सकता है।

स्ट्राबेरी की किस्में

भारत में स्ट्राबेरी की बहुत सी किस्में उगाई जाती हैं जैसे कि कमारोसा, चांडलर, ओफ्रा, फेस्टिवल ब्लैक मोर, स्वीड चार्ली, एलिस्ता और फेयर फॉक्स आदि किस्मों की खेती की जाती है। इन सभी किस्मों को सितंबर से अक्टूबर महीने में बोया जाता है।

बेड तैयार करना

खेत में आवश्यक खाद उर्वरक देने के बाद बेड बनाने के लिए बेड की चैड़ाई 2.5- 3 फिट रखें और बेड से बेड की दूरी डेढ़ फिट रखें। बेड तैयार होने के बाद उस पर टपक सिंचाई की पाइप लाइन बिछा दें। पौधे लगाने के लिए प्लास्टिक मल्चिंग में 20 से 30 सेमी की दूरी पर छेद करें।

प्लास्टिक मल्चिंग विधि क्या है?

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जब खेत में लगाए गए पौधों की जमीन को चारों तरफ से क्वालिटी प्लास्टिक फिल्म द्वारा अच्छी तरह ढक दिया जाता है, तो इस विधि को प्लास्टिक मल्चिंग कहा जाता है। इस तरह पौधों की सुरक्षा होती है और फसल उत्पादन भी बढ़ता है।

पौधे से पौधे की दूरी –

पौध से पौध : 45 सेमी
बेड से बेड : 1.5 फिट
प्रति एकड़ : 17000-20000 पौधे

प्लास्टिक मल्चिंग विधि से लाभ
  • खेत में पानी की नमी को बनाए रखती है, साथ ही वाष्पीकरण रोकती है।
  • खेत में मिट्टी के कटाव को भी रोकती है।
  • खरपतवार से बचाव करती है।
  • बागवानी में खरपतवार नियंत्रण और पौधों को लम्बे समय तक सुरक्षित रखती है।
  • यह भूमि को कठोर होने से बचाती है।
  • पौधों की जड़ों का विकास अच्छी तरह होता है।
क्रॉप कवर के फायदे
  • फसलों को ठंडे तापमान से बचाता है।
  • पौधों के अच्छे विकास और वृद्धि के लिए एक माइक्रो क्लाइमेट बनाता है।
  • ऑफ-सीजन के दौरान फसलों को उगाने में मदद करता है।
  • कीटनाशक उपयोग को कम करता है कार्बनिक खेती में मदद करता है।
  • क्रॉप कवर सीओटू (ष्श२) को बनाए रखने में मदद करता है।
  • यह पौधों को प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों जैसे बारिश, हवा, ओलावृष्टि आदि से बचाता है।
स्ट्राबेरी के लिए खाद और उर्वरक
  • स्ट्रॉबेरी का पौधा काफी नाजुक होता है। इसलिए उसे समय समय खाद और उर्वरक देना जरुरी होता है जो कि आपके खेत के मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट को देखकर दें।
  • साधारण रेतीली भूमि में 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति एकड़ की दर से भूमि तैयारी के समय बिखेर कर मिट्टी में मिला दें।
स्ट्राबेरी की सिंचाई

इस पौधे के लिए उत्तम गुणवत्ता (नमक रहित) का पानी हो। पौधों को लगाने के तुरंत पश्चात् सिंचाई करना आवश्यक है। टपक सिंचाई से करें।

स्ट्रॉबेरी की तुड़ाई

जब फल का रंग 70 प्रतिशत असली हो जाये तो तोड़ लें। अगर बाजार दूरी पर है तब थोड़ा सख्त ही तोड़े। तोड़ाई अलग-अलग दिनों में करें। तोड़ाई के समय स्ट्रॉबेरी के फल को नहीं पकड़े, ऊपर से डण्डी पकड़ें।

उत्पादन

प्रति छोड़ : 300 ग्राम-1.0 किग्रा
7-10 टन प्रति एकड़
(पौधे की उत्पादन क्षमता वातावरण, खाद और भूमि की फलद्रुपता पर आधार रखती है)

लो टनल का उपयोग

पाली हाउस नहीं होने की अवस्था में किसान भाई स्ट्रॉबेरी को पाले से बचाने के लिए नॉन वूवन क्रॉप कवर को टनल बनाकर इसका उपयोग कर सकते हैं। नॉन वूवन क्रॉप कवर का टनल बनाने के लिए फायबर स्टिक को 10-12 फिट का अंतर रखकर एग्री थ्रेड से तीनों साइड बांधें और फिर इसके ऊपर नॉन वूवन क्रॉप कवर को लगायें फिर इसके ऊपर प्लास्टिक क्लिप को फायबर स्टिक लगायें जिससे क्रॉप कवर की मजबूती अच्छी रहती है और एक लो-टनल जैसा स्ट्रक्चर बना सकते हैं।

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One thought on “स्ट्रॉबेरी की आधुनिक खेती पद्धति

  • Me M. P. KE Ujjain dist. Se belong krta hu mujhe straberry ki kheti krna he Plant kaha se milenge or kya rate me

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