शुष्क फल करौंदा की उन्नत तकनीक
- दुर्गाशंकर मीना , डॉ. मनोहर लाल मीना , डॉ. भेरूलाल कुम्हार
- डॉ. अशोक कुमार मीना , डॉ. विक्रम सिंह मीना
कृषि अनुसंधान केंद्र, मंडोर, कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर
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7 अक्टूबर 2022, शुष्क फल करौंदा की उन्नत तकनीक – करोंदा को क्राइस्ट थॉर्न ट्री के रूप में जाना जाता है और यह भारत में व्यापक रूप से उगाया जाने वाला एक कठोर, सदाबहार झाड़ी है। इसके अलावा, यह बिहार, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत के कई हिस्सों में जंगली रूप में पाया जाता है। इसे हेज प्लांट के रूप में भी उगाया जाता है। इसके फल, खट्टे और स्वाद में कसैले व लोहे तत्व से समृद्ध स्रोत हैं जिनमें विटामिन सी की अच्छी मात्रा होती है। यह एक मजबूत, पतझड़ी सदाबहार, झाड़ी है। इसके फल खट्टे एवं स्वादिष्ट होते हैं। जिससे जैलीय मुरब्बा, चटनी तथा कैन्डी आदि तैयार की जाती है।
भूमि
इसको सूखी, बंजर, रेतीली, पथरीली भूमि में भी लगाया जा सकता है। पड़ती भूमि में पौधारोपण के लिए यह एक उपयोगी पौधा है।
उन्नत किस्में
भारतीय प्रजाति (कैरिसा करेन्डस), प्रजाति (कैरिसा ग्रेडिफ्लोरा)
करोंदा की किस्में
पिछले दो दशकों के दौरान करोंदा की कुछ किस्मों को विकसित की गई है। जैसे – पंत मनोहर, पंत सुदर्शन, पंत सुवर्णा इन किस्मों को मुख्य रूप से आचार हेतु उपयोग में लिया जाता हैं। इन किस्मों के फल आकार में छोटे होते हैं तथा औसतन इन किस्मों के फलों का वजन 3.5 ग्राम और स्वाद में अम्लीय होते हैं जबकि कोंकण बोल्ड, ष्ट॥श्वस््य-11-7 और ष्ट॥श्वस््य -35 के फल आकार में बड़े एवं इनको टेबल उद्देश्य हेतु काम में लिया जाता हैं।
प्रवर्धन
करौंदे का प्रवर्धन साधारणत: बीज द्वारा ही किया जाता है। नये पौधे निकालकर तुरंत ही क्यारियों में अथवा पॉलीथिन की थैलियों में बो दें। तैयार करने के लिए अगस्त-सितम्बर माह में पूर्ण रूप से पके हुये फलों से बीज करौंदे के बीजों की जीवन क्षमता बहुत कम होती है। एक वर्ष बाद ये पौधे खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं।
करोंदा आमतौर पर बीजों से उगाया जाता है। कुछ वानस्पतिक तरीके जैसे एयर-लेयरिंग और स्टेम (हार्डवुड) कटिंग से भी प्रवर्धन किया जा सकता हैं लेकिन इन विधियों को व्यवसायिक स्तर पर काम में नहीं लिया जाता हैं। ताजा करौंदा के बीज अगस्त-सितंबर से नर्सरी में बोए जाते हैं। जब पौधे एक साल पुराने हो जाते हंै तब इनको खेत में लगाएं।
बीज प्रसार
करौंदा के पौधों को बीज द्वारा आसानी से गुणा किया जा सकता है। करौंदा में बीज प्रसार विधि का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। तुड़ाई के तुरंत बाद बीज को एकत्र करें। इसके बाद बीजों को फलों से निकालकर तुरंत नर्सरी बेड में बो दें। अच्छे अंकुरण के के लिए बीजों को 3 सेमी की गहराई पर ही बोएं। इसके अलावा बीजों को प्रो ट्रे में भी बोया जा सकता है। जब यह बीज अच्छे से अंकुरित होकर तीन से चार पत्ती अवस्था में आ जाए तब इनको पॉलीथिन की थैलियों में प्रत्यारोपित किया जाता है। करौंदा के पौधे 8-10 महीनों में रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं।
वनस्पति प्रसार
वनस्पति प्रसार के लिए स्टेम कटिंग, एयर लेयरिंग और नवोदित विधियों का उपयोग किया जाता है।
कटिंग- कटिंग हेतु अर्ध-दृढ़ लकड़ी की शाखा पौधों के गुणन के लिए उपयुक्त होती है। इस विधि में कटिंग की लंबाई 25-30 सेंटीमीटर व मोटाई पेंसिल के आकार के रूप में काम में लेते हैं। कटिंग रोपण के लिए सबसे अच्छा समय जून-जुलाई रहता है।
एयर लेयरिंग – करौंदा पौधों की एयर लेयरिंग जून और जुलाई के दौरान करने पर अच्छा परिणाम मिलता है। एयर लेयरिंग मे 30 -35 दिन जडं़े निकल आती हैं इसके बाद इनको मृत पौधे से अलग कर पॉलीथिन की थैलियों में रोपण कर दिया जाता है और इसके बाद 6 से 7 महीने के बाद रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं।
सिंचाई
करौंदे के पौधों को प्रारम्भिक वर्षों में सिंचाई की आवश्यकता होती है व पौधों के स्थापित हो जाने पर पुष्पन एवं फलन के समय ही भूमि में नमी की आवश्यकता रहती है।
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