फसल की खेती (Crop Cultivation)

आम की वैज्ञानिक खेती

जयपाल छिगारहा; डॉ. आर.के. प्रजापति; डॉ. बी.एस. किरार; डॉ.एस.के. सिंह; डॉ. यू. एस. धाकड; डॉ. एस. के. जाटव; डॉ. आई.डी. सिंह; हंसनाथ खान, कृषि विज्ञान केंद्र, टीकमगढ़ (म.प्र.)

05 जनवरी 2024, टीकमगढ़: आम की वैज्ञानिक खेती – आम की खेती लगभग पूरे देश में की जाती है। यह मनुष्य का बहुत ही प्रिय फल माना जाता है इसमें खटास लिए हुए मिठास पाई जाती है। जो की अलग-अलग प्रजातियों के मुताबिक फल में कम ज्यादा मिठास पायी जाती है। कच्चे आम से चटनी, आचार एवं अनेक प्रकार के पेय के रूप में प्रयोग किया जाता है। इससे जैली, जैम, सीरप आदि बनाये जाते हैं। यह विटामिन ए एवं विटामिन बी का अच्छा स्त्रोत है।

भूमि एवं जलवायु

आम की खेती उष्ण एव समशीतोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में की जाती है। आम की खेती समुद्र तल से 600 मीटर की ऊँचाई तक सफलता पूर्वक होती है इसके लिए 23.5 से 32.6 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान अति उत्तम होता है। आम की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। परन्तु अधिक बलुई, पथरीली, क्षारीय तथा जल भराव वाली भूमि में इसे उगाना लाभकारी नहीं है, तथा अच्छे जल निकास वाली दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है।

उन्नतशील प्रजातियाँ

हमारे देश में उगाई जाने वाली प्रजातियों में, दशहरी, लंगड़ा, चौसा, फजरी, बाम्बे ग्रीन, अलफांसो, तोतापरी, हिमसागर, किशनभोग, नीलम, सुवर्णरेखा,वनराज आदि प्रमुख उन्नतशील प्रजातियाँ हैं। आम की नयी किस्मों में मल्लिका, आम्रपाली, दशहरी-5, दशहरी-51, अम्बिका, गौरव, राजीव, सौरव, रामकेला, तथा रत्ना प्रमुख प्रजातियां हैं।

गड्ढों की तैयारी और वृक्षों का रोपण

आम के पेड़ों को लगाने के लिए सारे देश में वर्षाकाल उपयुक्त समय माना गया है। जिन क्षेत्रों में वर्षा आधिक होती है वहां वर्षा के अंत में आम का बाग लगायें। लगभग 50 सेन्टीमीटर व्यास एक मीटर गहरे गड्ढ़े मई माह में खोद कर उनमें लगभग 30 से 40 किलो ग्राम प्रति गड्ढा सड़ी गोबर की खाद मिट्टी में मिलाकर और 100 ग्राम क्लोरोपाइरीफास पाउडर भुरककर गड्ढे को भर दें। पौधों की किस्म के अनुसार 10 से 12 मीटर पौध से पौध की दूरी हो, परन्तु आम्रपाली किस्म के लिए यह दूरी 2.5 मीटर ही हो।

प्रवर्धन या प्रोपोगेशन

आम के बीजू पौधे तैयार करने के लिए आम की गुठलियों को जून-जुलाई में बुवाई कर दी जाती है आम की प्रवर्धन की विधियों में भेट कलम, विनियर, साफ्टवुड ग्राफ्टिंग, प्रांकुर कलम, तथा बडिंग प्रमुख हैं, विनियर एवं साफ्टवुड ग्राफ्टिंग द्वारा अच्छे किस्म के पौधे कम समय में तैयार कर लिए जाते हैं।

खाद एवं उर्वरक का प्रयोग

पौधों की दस साल की उम्र तक प्रतिवर्ष उम्र के गुणांक में नाइट्रोजन, पोटाश तथा फास्फोरस प्रत्येक को 100 ग्राम प्रति पेड़ जुलाई में पेड़ के चारों तरफ बनायी गयी नाली में दें। इसके अतिरिक्त मृदा की भौतिक एवं रासायनिक दशा में सुधार हेतु 25 से 30 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद प्रति पौधा देना उचित पाया गया है। जैविक खाद हेतु जुलाई-अगस्त में 250 ग्राम एजोस्पाइरिलम को 40 किलोग्राम गोबर की खाद के साथ मिलाकर थाले में डालने से उत्पादन में वृद्धि पाई गयी है।

सिंचाई

आम की फसल के लिए बाग़ लगाने के प्रथम वर्ष सिंचाई 2-3 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार करें 2 से 5 वर्ष पर 4-5 दिन के अंतराल पर आवश्यकता अनुसार सिंचाई करें। तथा जब पेड़ों में फल लगने लगे तो दो तीन सिंचाई करनी अति आवश्यक है। आम के बागों में पहली सिंचाई फल लगने के पश्चात दूसरी सिंचाई फलों का काँच की गोली के बराबर अवस्था में तथा तीसरी सिंचाई फलों की पूरी बढ़वार होने पर करें। सिंचाई नालियों द्वारा थालों में ही करें जिससे की पानी की बचत हो सके।

निंदाई – गुड़ाई

आम के बाग को साफ रखने के लिए निराई गुड़ाई तथा बागों में वर्ष में दो बार जुताई कर दें इससे खरपतवार तथा भूमिगत कीट नष्ट हो जाते हैं इसके साथ ही साथ समय-समय पर घास निकालते रहें।

रोग एवं नियंत्रण

आम के रोगों का प्रबंधन कई प्रकार से करते हंै। जैसे की पहला आम के बाग में पावडरी मिल्डयू नामक एक बीमारी लगती है इसी प्रकार से खर्रा या दहिया रोग भी लगता है इससे बचाने के लिए घुलनशील गंधक 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में या ट्राईमाफ़र् 1 मिली प्रति लीटर पानी या डाईनोकैप 1 मिली प्रति लीटर पानी घोलकर प्रथम छिड़काव बौर आने के तुरन्त बाद दूसरा छिड़काव 10 से 15 दिन बाद तथा तीसरा छिड़काव उसके 10 से 15 दिन बाद करें आम की फसल को एन्थ्रेक्नोज फोमा ब्लाइट डाईबैक तथा रेडरस्ट से बचाव के लिए कॉपर आक्सीक्लोराईड 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अन्तराल पर वर्षा ऋतु प्रारंभ होने पर दो छिड़काव तथा अक्टूबर-नवम्वर में 2-3 छिड़काव करें। जिससे की हमारे आम के बौर आने में कोई परेशानी न हो। इसी प्रकार से आम में गुम्मा विकार या मालफॉर्मेशन बीमारी भी लगती है इसके उपचार के लिए कम प्रकोप वाले आम के बागों में जनवरी फरवरी माह में बौर को तोड़ दें एवं अधिक प्रकोप होने पर एनएए 200 पीपीएम रसायन की 900 मिली प्रति 200 लीटर पानी घोलकर छिड़काव करें। इसके साथ ही साथ आम के बागों में कोयलिया रोग भी लगता है। इसके नियंत्रण के लिए बोरेक्स या कास्टिक सोडा 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रथम छिड़काव फल लगने पर तथा दूसरा छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें जिससे कोयलिया रोग से फल खराब न हो सके।

कीट एवं नियंत्रण

आम में भुनगा फुदका कीट, गुझिया कीट, आम के छाल खाने वाली सुंडी तथा तना भेदक कीट, आम में डासी मक्खी ये कीट है। आम की फसल की फुदका कीट से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रथम छिड़काव फूल खिलने से पहले करते हैं। दूसरा छिड़काव जब फल मटर के दाने के बराबर हो जायें, तब कार्बोरिल 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करें। इसी प्रकार से आम की फसल की गुझिया कीट से बचाव के लिए दिसंबर माह के प्रथम सप्ताह में आम के तने के चारों ओर गहरी जुताई करें, तथा क्लोरोपाईरीफ़ास चूर्ण 200 ग्राम प्रति पेड़ तने के चारों ओर भुरक दें, यदि कीट पेड़ पर चढ़ गए हों तो इमिडाक्लोप्रिड 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर जनवरी माह में 2 छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें। आम की डासी मक्खी के नियंत्रण के लिए मिथाईलयूजीनाल ट्रैप का प्रयोग प्लाई लकड़ी के टुकड़े की अल्कोहल मिथाईल एवं मैलाथियान के छ: अनुपात चार अनुपात एक के अनुपात में घोल में 48 घंटे डुबोने के पश्चात पेड़ पर ट्रैप मई के प्रथम सप्ताह में लटका दें तथा ट्रैप को दो माह बाद बदल दें।

तुड़ाई

आम की परिपक्व फली की तुड़ाई 8 से 10 मिमी लम्बी डंठल के साथ करें, जिससे फली पर स्टेम राट बीमारी लगने का खतरा नहीं रहता है।

औसतन उपज

रोगों एवं कीटों के पूरे प्रबंधन पर प्रति पेड़ लगभग 150 से 200 किलोग्राम तक उपज प्राप्त हो सकती है। लेकिन प्रजातियों के आधार पर यह पैदावार अलग-अलग पाई गयी है।

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