Crop Cultivation (फसल की खेती)

फसल स्थापना – बेहतर उपज की पहली पायदान

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  • डॉ. जयप्रकाश गुप्ता, बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर,
    क्रॉप इस्टैब्लिशमेंट सर्विस, यूपीएल लि.

2 जुलाई 2021, मुम्बई ।  फसल स्थापना – बेहतर उपज की पहली पायदान – जून का महिना, आसमान में बारिश की दस्तक देते बादल, सभी किसान बंधुओं के लिए कोई उत्सव से कम नहीं होता। बारिश आने से पूर्व खरीफ की फसलों की बुआई से पहले खेत तैयार करना, बीज-उर्वरक प्राप्त करना जैसी अन्य कई तैयारी में किसान व्यस्त रहता है। किसान को खरीफ मौसम में लगने वाली फसलों से बहुत सारी उम्मीदें लगी होती हैं और बेहतर उपज के लिए वह हर तरह की कोशिश करता है। किसी भी फसल के जीवनचक्र में 3 प्रमुख अवस्थाएं होती हैं। फसल स्थापना, फसल बढ़वार एवं उत्पादन अवस्था और अंत में फसल कटाई, भंडारण एवं बिक्री। हम सबसे पहली एवं महत्वपूर्ण अवस्था, याने फसल स्थापना के बारे में विस्तार से बात करेंगे।

उपज दो गुना भी संभव

फसल स्थापना का वर्गीकरण सामान्य रूप से बुआई से लेकर अंकुरण और अंकुरण के बाद पहले 10 से 12 दिन तक की फसल की 6 से 10 पत्तों की अवस्था में किया जा सकता है। अनुसंधान यह कहता है कि फसल की अंतिम उपज में फसल स्थापना का योगदान लगभग 40 प्रतिशत होता है। अगर इस अवस्था में सावधानी नहीं रखी गई तो फसल का संभावित नुकसान 50 प्रतिशत से 100 प्रतिशत याने पूरी फसल बरबाद होने तक जा सकता है। वहीं अगर इस अवस्था में फसल का सुयोग्य संरक्षण किया गया तो उपज दो गुना करना भी संभव है, जो हमारे माननीय प्रधानमंत्री का लक्ष्य है।

फसल स्थापना अवस्था में किसान बुआई से पहले खेत की जुताई करना, उर्वरक की महत्वपूर्ण समझने जाने वाली आधार मात्रा देना, बीजोपचार एवं फसल के पोषण के लिए एकात्मिक अन्नद्रव्यों की मात्रा देना, ऐसी कई सारी तैयारियां करता है, और पानी की उपलब्धता एवं मिट्टी में सही नमी देखकर बुआई करता है। अलग-अलग फसलों की तैयारियां अलग-अलग हो सकती है, लेकिन इस अवस्था में आनी वाली समस्या एवं उनके समाधान लगभग एक समान ही होते हैं, विभिन्न हो सकती है तो उनके समाधान की विधि।

फसल स्थापना अवस्था में बीज का संरक्षण एवं पोषण उपलब्ध होने के लिए मिट्टी का सक्रिय एवं संतुलित होना जरूरी होता है। यूपीएल लि. विश्वस्तर की 5वें स्थान की भारतीय बहुराष्ट्रीय कृषि संबंधित कम्पनी है जो भारत और विश्व के अन्य 130 देशों में अपने आधुनिक उत्पाद, तकनीक एवं सेवाएं प्रदान कर रही है। यूपीएल फसल स्थापना अवस्था में विशेष समाधान किसान को प्रदान कर रही है।

बीजोपचार

किसी भी फसल के बीज को बीजजनित एवं मृदाजनित फफूंदजन्य एवं जीवाणुजन्य बीमारियाँ जैसे कि सडऩ-गलन एवं मृदाजनित कीट जैसे कि सफेद दीमक, कटवर्म, इनसे क्षति पहुँचने का खतरा हमेशा बना रहता है। इन्ही बीमारी एवं कीटों से बीज का संरक्षण करना बीजोपचार से संभव है। बीजोपचार याने बीज को बीमारी एवं कीटरोधक दवाइयों का आवरण लगा के संरक्षित करना। यूपीएल की प्रोवेक्स (बीजोपचार फफूंदनाशक) एवं रेनो (बीजोपचार कीटनाशक) की जोड़ी इन्ही समस्याओं से सम्पूर्ण सुरक्षा देती है। प्रोवेक्स एवं रेनो बीजोपचार की विधी जान लेते हैं।

  • बीजोपचार के लिए प्रोवेक्स की मात्रा 2.5 मिली प्रति किलोग्राम बीज एवं रेनो की मात्रा 2.5 मिली प्रति किलोग्राम बीज इतनी है।
  • बीजोपचार के लिए निर्धारित मात्रा में बीज लेकर उसे प्लास्टिक की पन्नी पर छाया में फैलायें। एक जार में 5 मिली प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा से पानी लीजिये (10 किलोग्राम बीज के लिए 50 मिली पानी)।
  • पानी में पहले निर्धारित मात्रा में प्रोवेक्स और बाद में रेनो डालकर एक समान घोल बनाईए (10 किलोग्राम बीज के लिए 25 मिली प्रोवेक्स और 25 मिली रेनो)।
  • यही घोल बीज के ऊपर एक समान स्वरूप में डालकर पूरी तरह से एक समान गुलाबी रंग का आवरण बनने तक बीज को प्रक्रिया करते रहो। यूपीएल कम्पनी ने बीजोपचार को आसान एवं जल्द करने के लिए स्वयं चलित इलेक्ट्रिक मिक्सर मशीन पूरी तरह मुफ्त उपलब्ध कराई है।
  • बीजोपचार होने के बाद बीज को 30 से 60 मिनट तक छाया में सुखाइए। अब आपका बीज बुआई के लिए तैयार है। बीजोपचार होने के बाद किसान अपने सुविधा के हिसाब से बुआई कर सकता है।
  • सही बीजोपचार से बीमारियाँ एवं कीटों से सुरक्षा, एक समान एवं जल्द अंकुरण, स्वस्थ फसल और अंत में उपज में बढ़ौतरी मिलती है।
ज़ेबा-कृषि का भविष्य

ज़ेबा क्या है?
ज़ेबा स्टार्च आधारित जल का महा अवशोषक है।

ज़ेबा कैसे काम करता है?
सोखे : ज़ेबा अपने वजन से 450 गुना पानी सोखता है।
पकड़े: ज़ेबा अवशोषित पानी का अपने अंदर संचय करता है।
छोड़े: ज़ेबा पौधे की आवश्यकता के अनुसार पानी प्रदान करता है।
जैव विघटन: ज़ेबा 6 महिनों तक ‘सोखे पकड़े छोड़ेÓ प्रक्रिया सक्रिय रखकर बाद में जैव विघटीत होकर नष्ट हो जाता है।

ज़ेबा के फायदे क्या हैं?

जल एवं पोषण संचय: बारिश एवं सिंचाई द्वारा दिया हुआ अतिरिक्त पानी एवं उसमे घुला हुआ पोषण ज़ेबा अपने अंदर संचय करके,पौधे को जब चाहे तब प्रदान करता है। जिस कारण फसल अनचाहे तनाव फिर चाहे पानी एवं पोषण कम मिलने से हो या ज्यादा मिलने से हो उस को आसानी से झेल के सुरक्षित एवं स्वस्थ जीवनचक्र पूर्ण करता है।
रिसाव (लिचिंग) को रोके: ज़ेबा की संचयन की यही खूबी पानी एवं पोषण का जड़ों की कक्षा से बाहर होने वाला रिसाव रोककर दोनों की बचत करता है।
सदैव भुरभुरी मिट्टी एवं नमी रहे बरकरार: अपने वजन से 450 गुना पानी सोखते वक्त ज़ेबा जेल स्वरूप बनकर मिट्टी के साथ अनुबंध बनाता है, जिस कारण मिट्टी मे हवा के छोटे छोटे क्षेत्र बन जाते है जो जमीन को भुरभुरा बनाते हैं। भुरभुरी मिट्टी जड़ एवं मृदास्थित मित्र जीवों को सक्रिय रखती है। जो पौधे को पानी एवं पोषण की आवश्यक मात्रा लेने मे सहायक होती है। जिस कारण सडऩ – गलन की बीमारी का प्रसार भी कम होता है।
जल एवं पोषण का सही इस्तेमाल: ज़ेबा के कारण जरूरत के अनुसार उपलब्ध होने वाला पानी एवं मिट्टी का भुरभुरापन पौधे की जड़ों को सक्रिय बनाकर पानी एवं पोषण का पूरा इस्तेमाल करते हंै, जो अंत में ज्यादा उपज में परिवर्तित होता है।
जैव विघटन के बाद बढ़ाये सेंद्रीय कर्ब: ज़ेबा स्टार्च निर्मित होने के कारण उसका जैव विघटन होकर उसका सेंद्रिय कर्ब जमीन में मिल के जमीन को स्वस्थ बनाता है।
सभी प्रकार की जमीन के लिए सुरक्षित: ज़ेबा का श्च॥ न्युट्रल याने 7 है एवं स्टार्च निर्मित होने के कारण ज़ेबा जमीन को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है।

ज़ेबा से किसान को क्या लाभ मिलता है?
  • एक समान अंकुरण, सशक्त फसल स्थापना
  • पानी एवं पोषण के तनाव के कारण फसल की कमजोरी, फूल एवं फल्लियों का गलना जैसी समस्या हो कम
  • उम्मीद से ज्यादा उपज एवं गुणवत्ता
  • पानी, पोषण एवं उनको उपलब्ध कराने का खर्चा हो कम
  • उम्मीद से ज्यादा मूल्य

    ज़ेबा की प्रयोग विधि
    मात्रा : 5 किग्रा/एकड़
    ध्यान दे : ज़ेबा जमीन  के अंदर 4 से 6 इंच जड़ों की कक्षा में जाना चाहिए
    बुआई से पहले – बेड तैयार करते वक्त खाद के साथ
    बुआई के वक्त – बीज एवं खाद डबल सीड ड्रिल के साथ, खाद समेत बीजों के कुंड में
    बुआई के बाद – ड्रिपर के नीचे – रिंग विधी – पिट विधी
    फसल  मात्रा प्रति एकड़  प्रयोग की विधि
    कपास, मकई, सोयाबीन,  5 किग्रा बुआई से पहले आखरी जुताई में
    मूंगफली, सरसो, उड़द, मूंग,    खाद के साथ मिट्टी के अंदर, अथवा 
    अरहर, चना, गेहू, ज्वार, बाजरा,    बुआई के वक्त बीज एवम खाद डबल
    चारे की फसलें    सीड ड्रिल के साथ, खाद समेत  बीजों के कुंड में, अथवा 
        बुआई के बाद 15-25 दिन में पहिली हलनी/बखर/डोरा चलाते वक़्त खाद क साथ
    धान पनेरी (नर्सरी) 1 किग्रा पनेरी (नर्सरी)  तैयार करते वक़्त DAP के साथ फाटा/ सुहागा मारते (प्लॅंकिंग) समय जमीन के नीचे
    धान (मुख्य खेत) 5 किग्रा आखरी मचाई (पडलिंग) के वक्त
    गन्ना 5 किग्रा रोपाई से पहले बनाई गई नाली में खाद के साथ, अथवा 
        रोपाई के बाद 60-90 दिन के बीच मिट्टी चढ़ाते वक्त खाद के साथ 
    सब्जियां 5 किग्रा मल्चिंग या बिना मल्चिंग दोनों के लिए
        रोपाई से पहले बेड तैयार करते वक्त खाद के साथ मिट्टी के अंदर, अथवा 
        रोपन के बाद ड्रिप के नीचे मिट्टी के अंदर 
       

    पौध के बाजू से रिंग बना के मिट्टी के अंदर जड़ों की कक्षा में

    फसल पौध/एकड़  जेबा ग्राम/पेड़
    आम, तेल पाम,लीची, काजू  50-70 100-70 
    खजूर, चीकू, नारियल     
    बादाम, सेब, नीबूवर्गीय, किन्नू 80-140  60-40
    अंजीर, कोकोआ, रबर 160-180 30
    अनार 320 15
    सुपारी 500 10
    अंगूर, केला, पपीता, कॉफी 900-1235 7.5-5

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