पाले का फसलों पर प्रभाव – बचाव के सुरक्षात्मक उपाय
04 जनवरी 2024, भोपाल: पाले का फसलों पर प्रभाव – बचाव के सुरक्षात्मक उपाय – वर्तमान में शीतलहर तथा अधिक ठंडी के कारण पाला पडऩे की संभावना एवं उससे बचाव के उपाय किसान भाइयों को दी जा रही है, जिसे अपनाकर काफी हद तक फसलों को सुरक्षित रख सकते हैं। विगत दो-तीन दिनों से लगातार तापमान में गिरावट होने के कारण फसलों एवं उद्यानिकी फसलों पर पाला पडऩे की संभावना बढ़ गई है। पाला तब पड़ता है जब तापमान 4 डिग्री सेंटीग्रेड से कम होते हुए शून्य डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है। ऐसी अवस्था में वायुमंडल के तापमान को शून्य डिग्री से ऊपर बनाए रखना जरूरी हो जाता है। पाले की अवस्था में पौधों के अंदर का पानी जम जाने से तथा उसका आयतन बढऩे से पौधों की कोशिकाएं फट जाती हैं जिसके कारण पत्तियां झुलस जाती हैं और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होने से फसल में फल और फूल नहीं लगते तथा उपज बुरी तरह प्रभावित होती है। यदि पाला की यह अवस्था अधिक देर तक बनी रहे तो पौधे मर भी सकते हैं। पाला विशेषकर दिसंबर तथा जनवरी के महीने में ज्यादा पडऩे की संभावना रहती है। पाला के प्रभाव से प्रमुख रूप से उद्यानिकी फसलें जैसे टमाटर, बैंगन, आलू, फूलगोभी, मिर्च, धनिया, पालक तथा फसलों में प्रमुख रूप से मसूर चना तथा कुछ मात्रा में गेहूं आदि के प्रभावित होने की ज्यादा संभावना रहती है।
अत: पाले से बचाव के लिए यहां किसान भाइयों को कुछ विशेष उपयोगी उपाय जैसे _ पाला पडऩे की संभावना होने पर रात्रि 10 बजे से पहले सिंचाई अवश्य करें या घुलनशील गंधक 80 प्रतिशत डब्ल्यू पी का दो से ढाई ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें। इससे दो से ढाई डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान बढऩे से काफी हद तक पाला से बचाया जा सकता है। थायो यूरिया का 0.5 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल कर छिडक़ाव करने से भी पाला से काफी हद तक फसलों को बचाया जा सकता है। प्रत्येक अवस्था में पानी की मात्रा प्रति एकड़ डेढ़ से दो सौ लीटर अवश्य रखें।
पाला से सबसे अधिक नुकसान नर्सरी में होता है। इसलिए रात्रि के समय नर्सरी में लगे पौधों को प्लास्टिक की चादर से ढक करके बचाया जा सकता है। ऐसा करने से प्लास्टिक के अंदर का तापमान 2 से 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है। 1 से 2 वर्ष के फलदार पौधों का अपने खेतों में वृक्षारोपण किया हो उन्हें बचाने के लिए पुआल, घास-फूस आदि से अथवा प्लास्टिक की सहायता से ढककर बचायें।
विशेषज्ञ_ डॉ प्रिया सिंह चौहान, श्री रामविकाश जायसवाल ( कृषि विशेषज्ञ, कृषि संकाय, पंडित एस. एन. शुक्ला विश्वविद्यालय शहडोल मध्य प्रदेश)
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