फसल की खेती (Crop Cultivation)

प्राकृतिक जल को सहेजें

प्राकृतिक एवं कृत्रिम विधि से भू-जल का संचयन एवं पुनर्भरण-2

  • मंजू ध्रुव
  • श्रुति वर्मा 
  • लव कुमार गुप्ता
  • इंदिरा गांधी कृषि विवि, रायपुर (छ.ग.)

2 मार्च 2022, प्राकृतिक जल को सहेजें पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जो बहूमूल्य संपदा एवं संसाधनों से भरी है। हमें यह विदित है कि पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के जीव जन्तुओं एवं प्राणियों का वास है। पृथ्वी पर जीवन संभव हो पाने का कारण पृथ्वी के गर्भ में पाये जाने वाले एवं जीवन प्रदान करने वाली संपदाओं से है। जिसमें जल का अपना विशिष्ट स्थान है। इस सृष्टि में जल के बिना जीवन कहीं भी संभव नहीं है। नगरीकरण एवं औद्योगिकीकरण की वजह से वन क्षेत्र कमी, कारखानों से निकलने वाले विषैले गैसों एवं पेड़-पौधों की कमी से दिनों-दिन वातावरण के तापमान में वृद्धि हो रही है। गर्मी बढऩे से विश्व के कई क्षेत्रों में जल की कमी एवं उससे होने वाली परेशानियों को स्पष्ट देखा जा सकता है। विश्व स्तर पर जनसंख्या में भी निरंतर वृद्धि हो रही है। ऐसे में जल की महत्ता समझना आवश्यक हो जाता है। यंू तो हमारी धरती का लगभग तीन चौथाई भाग जल मग्न है, लेकिन पीने योग्य पानी की मात्रा केवल 3 प्रतिशत है। जिसमें से 2 प्रतिशत पानी हिमनदों, हिमखण्डों, सतही जल एवं भूमिगत जल के रूप में विद्यमान है।

प्राकृतिक

भू-जल प्राकृतिक रूप से बारिश और बर्फ के पिघलने से और कुछ हद तक सतही जल (नदियों और झीलों) द्वारा रिचार्ज किया जाता है। फर्श, विकास या लॉगिंग सहित मानवीय गतिविधियों से रिचार्ज कुछ हद तक बाधित हो सकता है। इन गतिविधियों के परिणामस्वरूप उपरी मिट्टी का नुकसान हो सकता है। जिसके परिणामस्वरूप पानी की घुसपैठ कम हो सकती है। सतही प्रवाह में वृद्धि हो सकती है और पुनर्भरण में कमी आ सकती है। भूजल का उपयोग विशेष रूप से सिंचाई के लिए जल स्तर को भी कम कर सकता है। स्थायी भूमि के लिए भूजल पुनर्भरण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। क्योंकि लंबी अवधि में जलभृत से प्राप्त आयतन दर, पुनर्भरण की मात्रा दर से कम या उसके बराबर होना चाहिए।

पुनर्भरण जड़ क्षेत्र में जमा अतिरिक्त लवणों को मिट्टी की गहरी परतों में या भूजल प्रणाली में स्थानांतरित करनें में मदद कर सकता है। पेड़ों की जड़ें भूजल में जल संतृप्ति को बढ़ाती है। जिससे जल प्रवाह कम होता है। बाढ़ अस्थायी रूप से क्ले मिट्टी को नीचे की ओर ले जाकर नदी के तल की पारगम्यता को बढ़ा देती है और इससे पुनर्भरण बढ़ जाता है।

कृत्रिम

कृत्रिम जल पुनर्भरण में वर्षा अथवा सतही जल के प्राकृतिक अंत: निस्पंदन को भूमिगत स्तर समूह में किन्हीं निर्माण विधियों, जल विस्तारण अथवा प्राकृतिक स्थितियों को कृत्रिम परिवर्तन द्वारा बढ़ा दिया जाता है। इसके लिए अनेक प्रकार की विधियां विकसित की गई हैं, जिसमें कंटूर नालियॉ, नाली अवरोधक, चेक डेम, रिचार्ज पिट एवं साफट, स्टॉपडेम परकोलेशन टैंक, डाइक, संकनपोंड निर्माण आदि हैं। वर्तमान समय में बढ़ती जल की मांग के कारण भूजल का दोहन बढ़ता गया जिससे भूजल स्तर एवं प्राकृतिक रूप से भूजल पुर्नभरण स्तर के बीच का फासला बढऩे लगा। भूमिगत जल के अधिक दोहन को ध्यान में रखते हुए कृत्रिम रूप से वर्षा के पानी को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। कृत्रिम पुनर्भरण मानव-नियंत्रित साधनों के माध्यम से एक जलभृत में प्रवेश करने वाले पानी की मात्रा को बढ़ाने की प्रथा है।

भूजल संचयन एवं पुनर्भरण के उद्देश्य
  • भूमिगत जल स्तर में बढ़ोतरी करना।
  • भूमिगत जल स्तर को बढ़़ा कर बीजों के अंकुरण के लिए नमी उपलब्ध कराना।
  • मृदा अपरदन को रोकने में सहायता।
  • सतही जल एवं भू-जल के बीच समन्वय।
  • भू-जल पुनर्भरण को बढ़ाकर नलकूपों, कुओं तथा अन्य जलस्त्रोतों के बीच समन्यव।
  • भूमि को मरू भूमि या बंजर भूमि बनने से रोकना।
  • वर्षा के पानी को समुचित रूप से एकत्रित कर पूनर्भरण को बढ़ाना।
  • अपवाह और बाढ़ के पानी का संरक्षण और निपटान।
  • भू-जल जलाशयों के स्तर में गिरावट को कम करना या समाप्त करना।
  • खारे पानी की घुसपैठ को कम करना।
  • पम्पिंग और पाइपिंग की लागत कम करने के लिए पानी स्टोर करना।
  • ऑफ-सीजन में पानी उपयोग के लिए।
  • भूतापीय अनुप्रयोगों में उर्जा का संरक्षण।
भू-जल संवद्र्धन संरचनाएं
  • परकोलेशन पीट ,अधोभूमि अवरोधक
  • स्टॉप डैम , रिचार्ज साप्ट
  • फार्म पोण्ड, टेम्पोरेरी बांध
  • गेबियन स्ट्रक्चर, परकोलेशन टैंक
  • गली प्लग ,ट्रेंच
भूजल संचयन एवं पुनर्भरण लाभ
  • उपसतह भण्डारण स्थान नि:शुल्क उपलब्ध है और बाढ़ से बचा जाता है।
  • वाष्पीकरण के नुकसान नगण्य हैं और तापमान भिन्नताएं न्यूनतम हैं।
  • पारगम्य मीडिया के माध्यम से घुसपैठ द्वारा गुणवत्ता में सुधार।
  • इसका कोई प्रतिकूल सामाजिक प्रभाव नहीं है जैसे जनसंख्या का विस्थापन, दुर्लभ कृषि भूमि का नुकसान आदि।
  • यह तकनीक पर्यावरण के अनुकूल है जो मिट्टी के कटाव और बाढ़ जैसी स्थितियों को नियंत्रित करती है। और शुष्क अवधि या पानी की कमी की स्थिति के दौरान पर्याप्त मिट्टी की नमी प्रदान करती है।
  • मृदा प्रोफाइल में संग्रहित जल प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओंं के प्रति अपेक्षाकृत प्रतिरक्षित होता है।
कृत्रिम भू-जल पुनर्भरण तकनीक

प्रत्यक्ष तकनीक

अ. सतह विधि- भूजल पुनर्भरण की यह विधि बहुत सरल और व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली विधि है। इस विधि के तहत संग्रहित सतही जल को बिना घुसपैठ के सीधे एक जलभृत में ले जाया जाता है और पानी मिट्टी के प्रोफाइल के असंतृप्त क्षेत्रों के माध्यम से प्राकृतिक रूप से रिसता है और भूजल तालिका में शामिल हो जाता है।

  • बाढ़/पानी का फैलाव
  • यह विधि अपेक्षाकृत समतल स्थलाकृति के लिए उपयुक्त हैं।
  • पानी में पतली चादर के रूप में फैला हुआ होता है।
  • इस विधि का संभावित क्षेत्र देश का जलोढ़ क्षेत्र है।
  • एक रिसाव टैंक को अत्यधिक पारगम्य भूमि जलमग्न क्षेत्र में कृत्रिम रूप से निर्मित सतही जल निकाय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। ताकि सतही अपवाह भूजल भंडारण को रिसने और रिचार्ज करने के लिए बनाया जा सके।
  • यह जलोढ़ और कठोर चट्टान दोनों क्षेत्रों में लागू होता है।
  • कठोर चट्टानों में इसकी प्रभाकारिता और व्यवहार्यता अधिक है।

स्ट्रीम विधि

  • कोमल ढ़लान (6 प्रतिशत से कम) वाली छोटी धाराओं में निर्माण करना संभव है।
  • यह कठोर चट्टान के साथ-साथ जलोढ़ निर्माण क्षेत्र दोनों में लागू होता है।
  • यह मुख्य रूप से स्ट्रीम कोर्स तक ही सीमित है और इसकी ऊंचाई सामान्य रूप से बहुत कम होती है।
  • एक नाला बांध एक मिनी परकोलेशन टैंक की तरह काम करता है।

खाई और नाली प्रणाली

यह तकनीक मुख्य रूप से अनियमित स्थालाकृति उथली और सपाट तली और निकट दूरी वाले खांचे या खाई के क्षेत्रों में उपयुक्त है जो नहर, नदी, धारा आदि के माध्यम से भूजल पुनर्भरण के तहत अधिक सतह क्षेत्र प्रदान करते है। इसके लिए कम मिट्टी के काम की आवश्यकता होती है और गाद के प्रति भी कम संवेदनशील होता है।

अधिक सिंचाई-

ब. उपसतह विधि-

  • यह जलोढ़ के साथ-साथ कठोर चट्टानों वाले क्षेत्रों में उपयुक्त है जिनकी गहराई 50 मीटर है।
  • भूजल जलाशय, तूफान का पानी, टैंक का पानी, नहर का पानी आदि सूखे जलभृत को सीधे रिचार्ज करने के लिए इन संरचनाओं में बदल दिया जा सकता है।

रिचार्ज गड्ढ़े और सॉप्ट

  • जलभृत को सीधे रिचार्ज करने के लिए ये सबसे कुशल और लागत प्रभावी संरचनाएं हैं।
  • ऐसे क्षेत्र जहां उथली गहराई पर अभेद्य परत का सामना करना पड़ता है।
  • जहां जलभृत सतही जल के संबंध में हाइड्रालिक रूप से नहीं है।
कुएं का पुनर्भरण
  • यह दबाव में उपचारित सतही जल को पंप करके एक सीमित जलभृत के भूजल को बढ़ाने के उद्येश्य से बनाया गया है।
  • भरे जाने वाले जलभृत का आमतौर पर अत्यधिक दोहन किया जाता है।
  • यह तटीय क्षेत्रों में समुद्र के पानी पर कब्जा करने के लिए उपयुक्त है और उन क्षेत्रों में भूमि के नीचे की समस्याओं का सामना करने के लिए भी उपयुक्त है जहां जलभृत अधिक पंप है।
  • भूजल रिचार्जिंग के लिए उपलब्ध पानी को निलंबित सामग्री के उन्मुलन, रासायनिक स्थिरीकरण और जीवाणु हेरफेर के लिए उचित रूप् से उपचारित किया जाना है।

बोर होल बाढ़-

  • यह धारा में एक उप-सतह अवरोध है जो सिस्टम की प्राकृतिक उप-सतह/भूजल प्रवाह को धीमा कर देता है और पानी की मांग को पूरा करने के लिए जमीन की सतह के निचे पानी को पकड़ लेता है।
  • भूजल बांध का मुख्य कारण उप-बेसिन से भूजल के प्रवाह को पकडऩा और जलभृत की भंडारण क्षमता को बढ़ाना है।
  • कठोर चट्टानों या जलोढ़ वन क्षेत्र में उपयुक्त।
  • स. संयोजन सतह और उपसतह
    पिट सॉप्ट और कुओं के साथ बेसिन या परकोलेशन टैंक।

अप्रत्यक्ष तकनीक-

अ. स्तही जल से प्रेरित पुनर्भरण
ब. जलभृत संसोधन

भू-जल संचयन एवं पुनर्भरण के स्तर को बढ़ाने के लिए आवश्यक सुझाव:

  • कुओं का निर्माण करना चाहिए। जिससे वर्षा के जल को एकत्र भू-जल स्तर में वृद्धि किया जा सके।
  • तालाब गहरीकरण करवाने से अधिक मात्रा में वर्षा जल एवं नहर की पानी का भण्डारण किया जा सकता है।
  • खेतों के किनारे, पड़ती एवं खाली भूमि में पीट खोदकर वर्षा जल का संग्रहण करने से भू-जल स्तर को बढ़ाया जा सकता है।
  • पूराने नहरों, कुओं एवं तालाबों का पून:उद्धार करना चाहिए।
  • वर्षा जल को व्यर्थ बहनें से रोकने के लिए नालियों एवं बेसिन का निर्माण करना चाहिए। जिससे जल उचित स्थान पर एकत्र किया जा सके।
  • जल चक्र को बनाये रखने के लिए वृक्षारोपण को बढ़ावा देना।
  • बॉध एवं डेम का निर्माण कर जल एकत्र करके भू-जल स्तर में सुधार करना चाहिए।
  • फॉर्म पोण्ड का निर्माण करवाना चाहिए।

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