जैविक एजेन्ट एवं जैविक कीटनाशकों के प्रयोग द्वारा सतत कृषि रक्षा प्रबंधन
14 अक्टूबर 2022, भोपाल: जैविक एजेन्ट एवं जैविक कीटनाशकों के प्रयोग द्वारा सतत कृषि रक्षा प्रबंधन – प्रदेश में फसलों को कीटों, रोगों एवं खरपतवारों आदि से प्रतिवर्ष 7 से 25 प्रतिशत तक क्षति होती है, जिसमें 33 प्रतिशत खरपतवारों द्वारा, 26 प्रतिशत रोगों द्वारा, 20 प्रतिशत कीटों द्वारा, 7 प्रतिशत भंडारण, 6 प्रतिशत चूहों द्वारा तथा 8 प्रतिशत अन्य कारण सम्मिलित हैं। यह क्षति दलहन में 7 प्रतिशत, ज्वार में 10 प्रतिशत, गेहूं में 11.4 प्रतिशत, गन्ना में 15 प्रतिशत, धान में 18.6 प्रतिशत, कपास में 22 प्रतिशत तथा तिलहन में 25 प्रतिशत तक होती है। फसलों, फलों एवं सब्जियों पर इनके प्रकोप को कम करने के उद्देश्य से कृषकों द्वारा कृषि रक्षा रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है।
जैविक कीटनाशकों से लाभ:
- जीवों एवं वनस्पतियों पर आधारित उत्पाद होने के कारण, जैविक कीटनाशकों लगभग एक माह में भूमि में मिलकर, अपघटित हो जाते हैं तथा इनका कोई अंश अवशेष नहीं रहता। यही कारण है कि इन्हें परिस्थितकीय मित्र के रूप में जाना जाता है।
- जैविक कीटनाशक केवल लक्षित कीटों एवं बीमारियों को मारते हैं, जबकि रसायनिक कीटनाशकों से मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हैं।
- जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों/व्याधियों में सहनशीलता एवं प्रतिरोध नहीं उत्पन्न होता, जबकि अनेक रसायन कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों में प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न होती जा रही है, जिनके कारण उनका प्रयोग अनुपयोगी होता जा रहा है।
- जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों के जैविक स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं होता जबकि रसायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से ऐसे लक्षण परिलक्षित हुए हैं। सफेद मक्खी अब अनेक फसलों तथा चने का छेदक अब कई अन्य फसलों को भी नुकसान पहुंचाने लगा है।
- जैविक कीटनाशकों के प्रयोग के तुरंत बाद फलियों, फलों, सब्जियों की कटाई कर प्रयोग में लाया जा सकता है, जबकि रसायनिक कीटनाशकों के अवशिष्ट प्रभाव को कम करने के लिये कुछ दिनों की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
- जैविक कीटनाशकों के सुरक्षित, हानिरहित तथा पारिस्थितिकीय मित्र होने के कारण विश्व में इनके प्रयोग से उत्पादित चाय,कपास, फल, सब्जियों, तम्बाकू तथा खाद्यान्नों, दलहन एवं तिलहन की मांग एवं मूल्यों में वृद्धि हो रही है, जिसका परिणाम यह है कि कृषकों को उनके उत्पादों का अधिक मूल्य मिल रहा है।
- जैविक कीटनाशकों के विषहीन एवं हानिरहित होने के कारण ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में इनके प्रयोग से आत्महत्या की संभावना शून्य हो गई है, जबकि कीटनाशकी रसायनों से अनेक आत्महत्याएं हो रही हैं।
- जैविक कीटनाशक पर्यावरण, मनुष्य एवं पशुओं के लिये सुरक्षित तथा हानिरहित हैं। इनके प्रयोग से जैविक खेती को बढ़ावा मिलता है जो पर्यावरण एवं परिस्थितिकीय का संतुलन बनाए रखने में सहायक है।
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