फसल की खेती (Crop Cultivation)

गेहूं की फसल में बीज जनित रोगों से बचाव: बीज उपचार के कारगर तरीके

08 नवंबर 2024, नई दिल्ली: गेहूं की फसल में बीज जनित रोगों से बचाव: बीज उपचार के कारगर तरीके – रबी सीजन में गेहूं की बुवाई तेजी से चल रही है, और इस समय किसानों के लिए यह जानना बेहद अहम है कि गेहूं के बीजों में होने वाले रोगों से कैसे बचाव किया जाए। गेहूं के कुछ बीज जनित रोग जैसे लूज स्मट (खुला कंडवा), करनाल बंट, हैड स्कैब और परण झुलसा रोग पैदावार को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। इन रोगों से बचाव के लिए बीज उपचार एक महत्वपूर्ण कदम है, जो आपकी फसल को बेहतर और रोगमुक्त बना सकता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के ‘पूसा समाचार’ में इस महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाया गया, कार्यक्रम में रोगविज्ञान संभाग के वैज्ञानिक डॉ. एम. एस. सहारन द्वारा गेहूं में होने वाले प्रमुख बीज जनित रोग, उनके लक्षण, बीज उपचार के तरीके और बीज उपचार की विधि के बारे में बताया गया ।

गेहूं में होने वाले प्रमुख बीज जनित रोग और उनके लक्षण

  1. लूज स्मट (खुला कंडवा): यह एक फफूंद जनित रोग है, जिसे फसल में बालियों के काले दानों के रूप में देखा जा सकता है। जब फसल में बालियां आनी शुरू होती हैं, तब यह रोग अधिक दिखाई देता है। काले रंग के दाने फफूंद के स्पोर होते हैं जो बीज से फैलते हैं।
  2. करनाल बंट: यह भी एक फफूंद जनित रोग है जिसमें दाने काले पड़ जाते हैं। यह समस्या तब पता चलती है जब आप अपनी फसल को घर लाते हैं और उसमें कुछ दाने काले नजर आते हैं।
  3. हेड स्कैब: इस रोग का प्रकोप नमी वाले क्षेत्रों में अधिक होता है, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में। इसमें फसल की बालियों में गुलाबी रंग की फफूंद नजर आती है जिसे फ्यूजियम कहते हैं।
  4. परण झुलसा (स्पॉट ब्लोच): यह एक गंभीर रोग है जो बीज में मौजूद रहता है। यह रोग फसल की पत्तियों और तनों को प्रभावित करता है और इसके प्रकोप से फसल की उपज पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

बीज उपचार के तरीके

इन बीमारियों से बचने के लिए बीज उपचार अत्यंत आवश्यक है। बीज उपचार में निम्नलिखित दवाओं का उपयोग किया जा सकता है:

  • कार्बेन्डाजिम (50 WP): 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से।
  • कार्बोक्सिन (75 WP): 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से।
  • तेबुकोनाजोल (2 DS): 1.25 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से।

यदि आप रासायनिक दवाओं का कम उपयोग करना चाहते हैं, तो ट्राइकोडर्मा विरिडे जैसे जैविक उपचार का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, जो 4-5 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से लगाया जा सकता है।

बीज उपचार की विधि

सबसे पहले, फंगी साइड (कवकनाशी) को बीज के ऊपर समान रूप से छिड़कें। इसके बाद, बीज को हल्का गीला करें ताकि दवा उस पर अच्छी तरह से चिपक जाए, लेकिन ध्यान रखें कि बीज बहुत अधिक गीले न हों। बीज उपचार हमेशा छाया में ही करें और उपचारित बीज को सूखने दें। सूखने के बाद अगले दिन आप इन बीजों का उपयोग बुवाई के लिए कर सकते हैं।

बीज उपचार के फायदे

बीज उपचार से बीज जनित रोगों की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है, जिससे पैदावार में सुधार होता है और फसल में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। इसके अलावा, यह बीज को फफूंद और अन्य हानिकारक रोगों से बचाकर स्वस्थ और मजबूत पौधे तैयार करता है, जिससे पैदावार और गुणवत्ता दोनों में वृद्धि होती है।

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