रबी में लगायें मसूर
- विनोद कुमार , विकास जैन
- अनसिंह निनामा ,दीपक खांडे
- धनंजय कठल, कृ. महा., पवारखेड़ा
18 अक्टूबर 2021, रबी में लगायें मसूर – मसूर का दलहनी फसलों में विशेष स्थान है। बारानी क्षेत्रों में अधिकतर दलहनी फसलों के रूप में मसूर की खेती की जाती है। मसूर में 24.2 प्रतिशत प्रोटीन व कैल्शियम प्रचुर मात्रा में होता है। मसूर का भूसा अत्यन्त पौष्टिक होता है व जानवर इसे चाव से खाते हंै इससे दूध की मात्रा बढ़ती है। भारत वर्ष में मसूर की खेती 15 लाख हे. क्षेत्र में की जाती है जिसकी उत्पादकता 611 किग्रा प्रति हेक्टेयर है। देश में प्रमुख मसूर उत्पादक राज्य उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, आसाम, बिहार, राजस्थान व पश्चिम बंगाल है। मध्य प्रदेश में 49,300 हेक्टेयर क्षेत्र में मसूर की खेती होती है व उत्पादकता 455 किग्रा प्रति हेक्टेयर है। कम उत्पादकता के प्रमुख कारणों में सूखा व उकठा रोग प्रतिरोधी किस्मों का कम प्रचलन, अधिक उत्पादन व बोल्ड दाना वाली किस्मों का अभाव, कम उपजाऊ भूमि में मसूर की खेती आदि है जिससे उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। मसूर का पोषणमान सोयाबीन के प्रोटीन मान से तो कम होता है परंतु अन्य दलीय फसलों की तुलना में प्रोटीन का तीसरा उच्चतम स्तर होता है। मसूर दाल दुनिया के कई हिस्सों में सस्ती प्रोटीन का एक अनिवार्य स्त्रोत है, विशेष रूप से पश्चिम एश्यिा और भारतीय उपमहाद्वीप में, जहां बड़ी शाकाहारी आबादी है।
औषधीय गुणों से भरपूर तुम्बा की खेती शुष्क एवं अतिशुष्क क्षेत्रों में आय का जरिया
उपयुक्त भूमि
मसूर की फसल सभी प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है किन्तु मध्यम से मटियार दोमट मिट्टी जिसमें जल धारण एवं जल निकास क्षमता अच्छी हो इसके लिये उपयुक्त है। मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र में (छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर, दतिया, महोबा, बाँदा, ललितपुर, झांसी आदि जिले) कृषक बारानी क्षेत्र में खरीफ मौसम के अगस्त सितम्बर माह में खेत की जुताई कर छोड़ देते हैं। जिससे बारिश की नमी का संरक्षण कर मसूर की फसल की जा सके। बुवाई के समय, हल्की जुताई कर खेत को समतल कर बीज की बुवाई कर खेत में पाटा लगाया जाता है ताकि नमी लम्बे समय तक खेत में बनी रहे। एवं जिससें बीज का अंकुरण भी अच्छा होता है।
उन्नत किस्म का बीज जिसकी अंकुरण क्षमता अच्छी हो, किसी प्रतिष्ठित संस्था जैसे संचालक प्रक्षेत्र, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय, जबलपुर या बीज निगम आदि से लें।
बुवाई का समय व बीज की मात्रा
बारानी क्षेत्रों में बुवाई 25 सितम्बर से 15 अक्टूबर के बीच तथा सिंचाई सुविधा होने पर 15 अक्टूबर से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है। समय से बोनी करने पर 30 कि.ग्रा. बीज व देर से बुवाई करने पर 40 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर उपयोग करें। कतार से कतार की दूरी 20-25 से.मी. व पौधे से पौधे की दूरी 8-10 से.मी. रखें। बोने से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा अथवा ट्राइकोडर्मा विरिडी की 6-7 ग्राम मात्रा द्वारा प्रति कि.ग्रा. बीज के मान से उपचारित करें। बीज उपचार के पश्चात राइजोबियम व पी.एस.बी. जैव उवर्रक से बीज को निवेशित (उपचारित) करें। उतेरा बोनी में सामान्यत: 40-50 किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है। उतेरा बोनी का समय मानसूनी वर्षा एवं धान की फसल पकने पर निर्भर होता है। ऐसी परिस्थिति में मसूर की बोनी, धान फसल की कटाई के 4-7 दिन पहले छिटकवा विधि से करते हंै।
पोषक तत्व प्रबंधन
दलहनी फसल होने के कारण मसूर की पोषक तत्व मांग कम रहती है। यदि गोबर की अच्छी तरह सड़ी खाद या कंपोस्ट उपलब्ध हो तब 5 क्विंटल/हे. की दर से खेत में अच्छी तरह मिलायें। मसूर की फसल हेतु 20 किग्रा नत्रजन, 60 किग्रा फास्फोरस, 20 किग्रा पोटाश व 20 किग्रा सल्फर प्रति हेक्टेयर देना आवश्यक है। बारानी क्षेत्रों में जहाँ वर्षा ऋतु की नमी में मसूर की बुवाई की जाती है वहाँ 10-15 कि.ग्रा. नत्रजन, 20-25 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टेयर के मान से उपयोग करें। जिन क्षेत्रों में पलेवा लगाकर बुवाई की जाती हैं वहाँ 15:30:10 के अनुपात में नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश दें एवं जहाँ पर सिंचाई की सुविधा हो वहां उर्वरकों की पूरी मात्रा उपयोग करें। उर्वरकों के उपयोग के साथ साथ जैव उर्वरकों (राइजोबियम व पी.एस.बी.) का उपयोग भी आवश्यक है ताकि राइजोबियम द्वारा जड़ों में ग्रंथीकरण ठीक से हो सके व पी.एस.बी. द्वारा भूमि की अनुपलब्ध फॉस्फोरस पौधों को उपलब्ध करायी जा सके। मसूर की फसल हेतु अधिक मात्रा में नमी की आवश्यकता नहीं होती है परन्तु फली अवस्था पर सिंचाई करने से उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
कटाई एवं मड़ाई
जब मसूर के पौधों की पत्तियाँ पीली पडक़र गिरने लगें तब कटाई करेें। सूखी फसल की मड़ाई कर दानों को सुखाकर 12 प्रतिशत नमी पर भण्डारित करेें।
उपज
बारानी क्षेत्रों में 8-10 क्ंिवटल व सिंचाई करने पर 15-16 क्विंटल/हे. उपज प्राप्त होती है।