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उर्वरक सब्सिडी के लिए डीबीटी योजना में अब ई-रूपी का उपयोग

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डॉ रबीन्द्र पस्तोर, सी ई ओ, ई-फसल

06 मई 2024, नई दिल्ली: उर्वरक सब्सिडी के लिए डीबीटी योजना में अब ई-रूपी का उपयोग – भारतीय बजट में तेल, खाद्यान्न व उर्वरकों पर सब्सिडी का सर्वाधिक बोझ होता है। भारत सरकार ने तेल कंपनियों को बाज़ार के अनुरूप मूल्य निर्धारित करने का अधिकार दे कर तेल सब्सिडी से लगभग छुटकारा पा लिया है। भारत  सरकार आज विश्व की सबसे बड़ी खाद्य सुरक्षा योजना संचालित कर रही है जिसके तहत 80 करोड़ से अधिक लोगों को सब्सिडी पर राशन दिया  जा रहा है। इस कड़ी में तीसरी सबसे बड़ी सब्सिडी हैं उर्वरक पर दी जाने वाली सब्सिडी जो 2.53 लाख करोड़  रूपये तक पहुँच गई है।

हमारे देश में प्रति वर्ष लगभग 650 लाख टन विभिन्न प्रकार के उर्वरकों की पूर्ति देश में स्थापित 2.5 लाख से अधिक  पॉइंट ऑफ सेल (पीओएस) आउटलेट्स के माध्यम से की जाती है। जहां किसान लाभार्थियों की पहचान आधार कार्ड के नम्बर, किसान क्रेडिट कार्ड या अन्य दस्तावेजों के माध्यम से की जाती है।खुदरा विक्रेताओं द्वारा किसानों को की गई बिक्री के आधार पर उर्वरक निर्माता कंपनियों को उर्वरक सब्सिडी जारी की जाती है। देश अपनी डीएपी की लगभग आधी आवश्यकता आयात करता है और लगभग 25% यूरिया की आवश्यकता आयात के माध्यम से पूरी की जाती है। घरेलू म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) की मांग पूरी तरह से आयात (बेलारूस, कनाडा और जॉर्डन आदि से) के माध्यम से पूरी की जाती है।डीएपी सहित फॉस्फेटिक और पोटाश (पी एंड के) उर्वरक की खुदरा कीमतें सरकार द्वारा एक वर्ष में दो बार घोषित पोषक तत्व आधारित सब्सिडी तंत्र के हिस्से के रूप में ‘निश्चित-सब्सिडी’ व्यवस्था की शुरूआत सन् 2020 से की गईं हैं । उदाहरण के लिये आज यूरिया के मामले में, प्रति बैग (45 किलोग्राम) उत्पादन लागत लगभग 2,650 रुपये है जबकि किसानों को 242 रुपये की निर्धारित कीमत का भुगतान कर उपलब्ध करवाई जा रही है तथा शेष राशि सरकार द्वारा उर्वरक इकाइयों को सब्सिडी के रूप में दी  जाती है।

इन कारणों से  ही सरकार ई- रूपी से सब्सिडी सार्वजनिक सेवा वितरण के लिए डिजिटल वाउचर का लाभ उठाने के लिए प्रयास कर रही है। इस दिशा में एक परिवर्तनकारी कदम हाल ही में लॉन्च किया गया ई-आरयूपीआई है, जो एक व्यक्ति को विशिष्ट उद्देश्य के लिए डिजिटल भुगतान का साधन है। जिसे योजना में लीकेज  और अन्य  समस्याओं के प्रभावी समाधान के रूप में देखा जा रहा है।आधार कार्ड योजना, यूपीआई के माध्यम से सीधे बैंक खाते से भुगतान की योजना, किसान सम्मान निधि का भुगतान तथा घरेलू गैस सिलेंडर पर सब्सिडी का सीधा भुगतान आदि अनेक सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं में सीधे हितग्राहियों के खाते में पैसा सीधे ट्रांसफ़र किया जा रहा है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी ई-रूपी इसी कड़ी का अगला कदम है।

सब्सिडी वाले उर्वरकों की बिक्री सीमा तय होगी

जब देश में नई सरकार चुनने के लिए चुनाव की प्रक्रिया चल रही है तभी भारतीय रिज़र्व बैंक व अनेक सरकारी विभाग उर्वरक सब्सिडी प्राप्तियों के वित्तपोषण को बंद करने की संभावना पर बैंकों के साथ चर्चा कर रहे है। जिस के तहत लाभार्थियों को खुदरा विक्रेताओं की वास्तविक बिक्री के आधार पर उर्वरक कंपनियों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) की पेशकश की जाना है।

उर्वरक सब्सिडी के लिए सरकार पायलट आधार पर कर्नाटक, असम, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र सहित सात राज्यों के एक-एक जिले में पायलट प्रोजेक्ट शुरू करेगी। जिसके तहत इन राज्यों के सात जिलों में उर्वरकों की सब्सिडी को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) योजना के तहत, किसानों को उनकी भूमि जोत को ध्यान में रखते हुए सब्सिडी वाले उर्वरकों की बिक्री की सीमा तय की जाएगी।अनेक स्तर पर विभिन्न संगठनों द्वारा प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण के विचार पर आपत्ति जताई गई थी, क्योंकि उस मॉडल के तहत, किसानों को वास्तविक सब्सिडी राशि उनके बैंक खातों में स्थानांतरित होने से पहले उर्वरक खरीदने के लिए एक बड़ी राशि का भुगतान करना होगा। हालाँकि, सरकार ने किसानों को उनके बैंक खातों में सब्सिडी प्राप्त करने से पहले, बाजार दरों पर पोषक तत्वों को क्रय कर अग्रिम भुगतान करने की योजना को छोड़ दिया है।क्योंकि विभाग का मानना है कि बाज़ार दर पर उर्वरक ख़रीदने के लिए कई किसानों के पास पैसा नहीं होता है।विभाग का मानना है कि “बेचे गए उर्वरक का सब्सिडी घटक काफी अधिक है जबकि किसानों की वास्तविक बाजार दर पर उर्वरक खरीदने की क्षमता सीमित है।”

भूमि रिकॉर्ड के आधार पर मिलेगी उर्वरक सब्सिडी

पायलट प्रोजेक्ट  की प्रतिक्रिया के आधार पर संशोधित डीबीटी को पूरे देश में लागू किया जाएगा।उर्वरक विभाग के मुताबिक, किसानों के भूमि रिकॉर्ड के आधार पर उन्हें बेचे जाने वाले अत्यधिक सब्सिडी वाले उर्वरक का कोटा तय किया जाएगा तथा निर्धारित कोटा से ऊपर की किसी भी मात्रा के लिए, किसानों को उर्वरक बाजार दर पर खरीदना होगा।इसका उद्देश्य मिट्टी के पोषक तत्वों के तर्कसंगत उपयोग को बढ़ावा देना है।पायलट परियोजनाओं को शुरू करने से पहले राज्यों को डिजिटल भूमि रिकॉर्ड, फसल सर्वेक्षण, मृदा स्वास्थ्य कार्ड की कवरेज और लैंडिंग होल्डिंग्स में औपचारिक और अनौपचारिक किरायेदारी के प्रावधानों को डिजीटल करने की आवश्यकता है।

ई-रूपी की कार्य प्रणाली

भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) द्वारा विकसित ई-आरयूपीआई, एक बार का संपर्क रहित और कैशलेस वाउचर-आधारित भुगतान का तरीका है, जिसमें वाउचर का मोचन किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए किसी विशिष्ट व्यक्ति तक ही सीमित है। यह अनिवार्य रूप से एक प्रीपेड डिजिटल वाउचर है जो लाभार्थी को एसएमएस या क्यूआर कोड के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक रूप से वितरित किया जाता है। लाभार्थी इन वाउचरों को इच्छित वस्तुओं या सेवाओं के बदले नामित विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं पर भुना सकता है। उदाहरण के लिए, एक किसान को सार्वजनिक योजना के तहत जारी किए गए ई-आरयूपीआई खाद ख़रीदने के लिए जारी वाउचर के साथ एक निर्दिष्ट खाद की दुकान से संपर्क कर सकता है जहां वह खाद पर उपलब्ध सब्सिडी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए वाउचर को भुना सकता है। जैसे ही एसएमएस कोड दर्ज किया जाता है या क्यूआर कोड स्कैन किया जाता है, वाउचर राशि तुरंत सरकार द्वारा वित्तीय मध्यस्थों के माध्यम से खाद निर्माता कम्पनी के खाते में जमा कर दी जाती है।

जबकि डीबीटी प्रणाली के लिए लाभार्थी के पास आधार कार्ड से जुड़ा बैंक खाता होना जरूरी  है, ई-आरयूपीआई के लिए केवल एक फोन की आवश्यकता होती है। स्मार्टफोन की कोई जरूरत नहीं! किसी डेबिट/क्रेडिट कार्ड, डिजिटल भुगतान ऐप, इंटरनेट बैंकिंग एक्सेस या यहां तक कि इंटरनेट कनेक्शन की भी आवश्यकता नहीं है! लाभार्थी को बस एक मोबाइल फोन चाहिए, जो एसएमएस या क्यूआर-कोड प्राप्त करने में सक्षम हो। दूसरे, सेवा प्रदाता खातों में पैसा तभी जमा किया जाता है जब लाभार्थी द्वारा लेनदेन पूरा कर लिया जाता है। यह एक लीक-प्रूफ भुगतान प्रणाली बनाता है जिसमें वैकल्पिक उपयोग के लिए धन के विचलन की संभावना को नियंत्रित किया जाता है। उम्मीद है कि सार्वजनिक सेवाओं की लक्षित, पारदर्शी और लीकेज-प्रूफ डिलीवरी सुनिश्चित करने में ई-आरयूपीआई एक प्रमुख भूमिका निभाएगी।

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