फसल की खेती (Crop Cultivation)

कपास में सफेद मक्खी का नियंत्रण

  • अनुप्रिया कुलचनिया, डॉ. रजनी सिंह सासोड़े
  • प्रथम कुमार सिंह
    आईटीएम यूनीवर्सिटी, ग्वालियर
  • डॉ. प्रद्युम्न सिंह
    राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर

31 अगस्त 2022, कपास में सफेद मक्खी का नियंत्रण – कपास में इन दिनों सफेद मक्खी का प्रकोप देखा जा रहा है। यह ऐसा कीट है जो कपास को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है। इसके नुकसान का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसके प्रकोप से कपास को करीब 50 से 60 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है। इसके अलावा कपास में कई अन्य कीटों का भी आक्रमण होता है जिससे कपास का उत्पादन प्रभावित होता है। इनमें चेपा, हरा तेला, चुरड़ा, मीलीबग आदि हैं। सफेद मक्खी कीट की संख्या में बढ़ोतरी काफी तेजी से होती है और ये कीट फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इसके लिए किसान को सफेद मक्खी कीट के प्रसार को रोकने की आवश्यकता है।

पंजाब और हरियाणा में कपास की फसल पर कीट के हमले होने से पिछले एक सप्ताह में इसकी कीमतों में 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हरियाणा में 40 हजार से अधिक हेक्टेयर और पंजाब में 20 हजार हेक्टेयर में कपास की फसल बैक्टीरियल ब्लाइट एक फंगल और बैक्टीरियल बीमारी से प्रभावित है। कपास की फसल में सफेद मक्खी की संख्या में बढ़ोतरी के मद्देनजर किसानों को सतर्क रहने की आवश्यकता है। अभी के मौसम में कपास की फसल में सफेद मक्खी कीट प्रमुख है, यह कीट कपास की फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है।

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क्या है सफेद मक्खी की पहचान

यह छोटा सा तेज उडऩे वाला पीले शरीर और सफेद पंख का कीड़ा है। छोटा एवं हल्के होने के कारण ये कीट हवा द्वारा एक दूसरे से स्थान तक आसानी से चले जाते हैं। इसके अंडाकार शिशु पत्तों की निचली सतह पर चिपके रहकर रस चूसते रहते हैं। भूरे रंग के शिशु अवस्था पूरी होने के बाद वहीं पर यह प्यूपा में बदल जाते हैं। ग्रसित पौधे पीले व तैलीय दिखाई देते हैं जिन पर काली फंफूदी लग जाती है। यह कीड़े रस चूसकर फसल को नुकसान करते हैं।

सफेद मक्खी से कपास को हानि

यह पत्ती पर्ल वायरस रोग के प्रसार में एक वेक्टर के रूप में कार्य करती है और यह एक प्रवासी कीट है जिससे इस पर नियंत्रण करना बहुत मुश्किल हो जाता है। इस कीट के अत्यधिक हमले से हरे कपास के पत्ते काले हो जाते हैं इस प्रकार प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है और उपज और उत्पाद की गुणवत्ता में काफी कमी आती है।

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सफेद मक्खी नियंत्रण के लिए दवा
  • मध्य अगस्त के बाद कीट विकास नियामक कीटनाशकों जैसे डाईफेन्थाईयूरान नामक दवा की 200 ग्राम मात्रा फ्लोनिकामिड 50 डब्ल्यूजी दवा की 80 ग्राम मात्रा डाईनॉटिफेयूरान 20 प्रतिशत एसजी की 60 ग्राम मात्रा और क्लोथियानिडिन 50 डब्ल्यूजी की 20 ग्राम मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव कर सकते हैं। ये कीटनाशक सफेद मक्खी के खिलाफ प्रभावी हैं और पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं। सीजन के बाद यानी 15 सितंबर के बाद सफेद मक्खी के प्रबंधन के लिए इथिऑन की 800 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से सीमित मात्रा में उपयोग करने की भी सलाह दी गई है।
  • अगस्त-सितंबर में सफेद मक्खी की आबादी सफेद मक्खी की घटनाएं आर्थिक क्षति स्तर या इकनॉमिक थ्रेसहोल्ड लेवल (ईटीएल) को पार कर जाने पर डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी या ऑक्सिडेमेटन मिथाइल 25 प्रतिशत ईसी और नीम आधारित कीटनाशक की एक लीटर की मात्रा को 250 लीटर पानी के साथ मिलाकर स्प्रे कर सकते हैं। इसके अलावा सफेद मक्खी की निम्फल जनसंख्या पर काबू पाने के लिए स्पाइरोमेसिफेन 22.9 प्रतिशत एससी की 200 मि.ली. या पायरीप्रोक्सीफेन 10 प्रतिशत ईसी नामक दवा की 400 मिली मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 200 से 250 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव कर सकते हैं। एक ही कीटनाशक का लगातार छिडक़ाव नहीं किया जाये।
  • इसके साथ यह भी आवश्यक है कि यदि अंडे और निम्फ की अधिक आबादी के कारण पत्तियों के नीचे थैली कवक दिखाई देता है, तो किसान स्पाइरोमेसिफेन की 250 मिली या पायरीप्रोक्सीफेन दवा की 400 से 500 मिली या ब्यूप्रोफेजिन 25 एससी की 400 मिली मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव कर सकते हैं।
  • यदि सफेद मक्खी और थ्रिप्स का मिश्रित संक्रमण देखने को मिलता है, तो किसानों को डाईफेन्थाईयूरान नामक दवा की 200 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें और कीटनाशकों का मिश्रण नहीं करें।
  • यदि सफेद मक्खी और लीफहॉपर का मिश्रित संक्रमण दिखाई दे तो किसानों को फ्लोनिकामिड 50 डब्ल्यूजी दवा की 80 ग्राम मात्रा या डाईनॉटिफेयूरान 20 प्रतिशत एसजी की 60 ग्राम मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव कर सकते हैं।
नीम आधारित कीटनाशकों का प्रयोग

कपास की फसल में बुवाई के 70 दिन बाद तक, किसान एक इमल्शन के दो स्प्रे कर सकते हैं, जिसमें एक प्रतिशत नीम का तेल और 0.05 से 0.10 प्रतिशत कपड़े धोने का डिटर्जेंट, या नीम आधारित कीटनाशक (0.03 प्रतिशत या 300 पीपीएम) शामिल है। यह इमल्शन एक लीटर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया के बाद एक अन्य इमल्शन के दो स्प्रे करने होंगे, जिसमें अरंडी का तेल और 0.05 से 0.10 प्रतिशत कपड़े धोने वाला डिटर्जेंट शामिल है। किसानों को पूरे सीजन के दौरान, जब भी आवश्यक हो, नीम आधारित कीटनाशकों का प्रयोग करते रहें।

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क्या है सफेद मक्खी कीट

यह एक बहुभक्षी कीट है जो कपास की प्रांरभिक अवस्था से लेकर चुनाई व कटाई तक फसल में रहता है। कपास के अलावा खरीफ मौसम में यह 100 से भी अधिक पौधों पर आक्रमण करती है। इस कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनो ही पत्तियों की निचली सतह पर रहकर रस चूसते हैं। प्रौढ़ 1-1.5 मिमी लम्बे सफेद पंखों व पीले शरीर वाले होते हैं। जबकि शिशु हल्के पीले चपटे होते हैं। ये फसल को दो तरह से नुकसान पहुंचाते हैं। एक तो रस चूसने की वजह से जिससे पौधा कमजोर हो जाता है।

दूसरा पत्तियों पर चिपचिपा पदार्थ छोडऩे की वजह से जिस पर काली फफूंद उग जाती है। जो कि पौधे के भोजन बनाने की प्रक्रिया में बाधा डालती है। यह कीट कपास में मरोडिय़ा रोग फैलाने में भी सहायक है। इसका प्रकोप अगस्त-सितंबर मास में ज्यादा होता है। जिनसे पौधे की बढ़वार रुक जाती है और इसका असर उत्पादन पर पड़ता है।

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