सोयाबीन का बीजोपचार एवं जैविक टीकाकरण कैसे करें
20 जून 2022, भोपाल । सोयाबीन का बीजोपचार एवं जैविक टीकाकरण कैसे करें – विभिन्न बीमारियों से सोयाबीन के बचाव हेतु बीजोपचार अत्यंत आवश्यक है। अन्यथा रोगग्रस्त पौधों के मरने से उपयुक्त पौध संख्या में कमी एवं उत्पादन में हानि होती है। अत: यह सलाह है कि कृषकगण बोवनी से पहले सोयाबीन बीज को अनुशंसित, पूर्व मिश्रित, फफूंदनाशक, पेनफ्लूफेन + ट्रायफ्लोक्सिस्ट्रोबिन 38 एफ.एस. (1 मि.ली./कि.ग्रा. बीज) या कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत + थायरम 37.5 प्रतिशत (3 ग्राम /कि.ग्रा. बीज) या थाइरम (2 ग्राम) एवं कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम) प्रति कि.ग्रा. बीज अथवा जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा विरडी (8-10 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज) से उपचारित करें।
पीला मोजाइक बीमारी एवं तना मक्खी का प्रकोप प्रति वर्ष होने वाले क्षेत्रों में अनुशंसित फफूंदनाशक से बीजोपचार के पश्चात कीटनाशक थायामिथोक्सम 30 एफएस (10 मि.ली. प्रति कि.ग्रा. बीज) या इमिडाक्लोप्रिड (1.25 मि.ली./कि.ग्रा. बीज) से बीज उपचारित करने की अनुशंसा की जाती है।
उपरोक्त अनुशंसित कवकनाशियों द्वारा उपचार बीज को छाया में सुखाने के पश्चात जैविक खाद ब्रेडीराइजोबियम कल्चर तथा पीएसबी कल्चर दोनों (5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज) से टीकाकरण कर तुरंत बोवनी हेतु उपयोग करना चाहिए। अपरंपरागत या नए क्षेत्रों में सोयाबीन की खेती करने की स्थिति में जैविक खाद की मात्रा दुगुनी से तिगुनी (10-15 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से) कर बीजोपचार करना चाहिए।
कृषकगण यह विशेष ध्यान रखें कि क्रमानुसार फफूंदनाशक, कीटनाशक से बीजोपचार के पश्चात ही जैविक कल्चर /खाद द्वारा टीकाकरण करना चाहिए। साथ ही कल्चर व कवकनाशियों को एक साथ मिलाकर कभी भी उपयोग में नहीं लाना चाहिए। जबकि जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा विरडी का उपयोग करने की स्थिति में अनुशंसित कीटनाशक से बीजपोचार पश्चात तीनों जैविक उत्पाद (राइजोबियम एवं पीएसएम कल्चर तथा ट्राइकोडर्मा विरडी) को मिलाकर बीज टीकाकरण कर सकते हैं।
बीजामृत (बीज अमृत) से सोयाबीन बीज उपचार कैसे करें
किसान मित्रों! बुआई करने से पहले बीजों का संस्कार अर्थात् संशोधन करना बहुत जरूरी है। इसके लिए बीजामृत बहुत ही उत्तम है। जीवामृत की भांति ही बीजामृत में भी वही चीजें डाली हैं जो हमारे पास बिना किसी कीमत के मौजूद हैं। बीजामृत निम्नलिखित सामग्री से बनता है-
- देशी गाय का गोबर 5 कि.ग्रा.
- गोमूत्र 5 लीटर
- चूना या कली 250 ग्रा.
- पानी 20 लीटर
- खेत की मिट्टी मुट्ठी भर
इन सभी पदार्थों को पानी में घोलकर 24 घंटे तक रखें। दिन में दो बार लकड़ी से इसे हिलाना है। इसके बाद बीजों के ऊपर बीजामृत डालकर उन्हें शुद्ध करना है। उसके बाद छाया में सुखाकर फिर बुआई करनी है।
बीजामृत द्वारा शुद्ध हुए बीज जल्दी और ज्यादा मात्रा में उगते हैं। जड़ें तेजी से बढ़ती हैं। पौधे, भूमि द्वारा लगने वाली बीमारियों से बचे रहते हैं एवं अच्छी प्रकार से पलते-बढ़ते हैं।
बीजामृत (बीज अमृत) बनाने की विधि
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