Crop Cultivation (फसल की खेती)

बाजरे की उन्नत खेती एवं उसका महत्व

Share

ऋषिकेश तिवारी एव भूमिका जे.एन.के.वि.वि. जबलपुर (मध्य प्रदेश)

13 जुलाई 2023, भोपाल: बाजरे की उन्नत खेती एवं उसका महत्व – बाजरा एक ऐसी फसल है ऐसे किसानो जो कि विपरीत परिस्थितियो एवं सीमित वर्षा वाले क्षेत्रो तथा बहुत कम उर्वरको की मात्रा के साथ, जहाँ अन्य फसले अच्छा उत्पादन नही दे पाती के लिए संतुत की जाती है। यह स्वादिष्ट और पौष्टिक चारा प्रदान करता है। यह दक्षिण पूर्वी एशिया, चीन, भारत, पाकिस्तान, अरब, सूडान, रूस और नाइजीरिया की महत्वपूर्ण फसलों में से एक है। भारत में, यह हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है बाजरा की खेती मध्यप्रदेश मे लगभग 2 लाख हे. भूमि मे की जाती है जो मुख्य रुप से मध्यप्रदेश के उत्तरी भाग भिण्ड, मुरैना, श्योपुर तथा ग्वालियर जिले मे उगायी जाती है। भिण्ड जिले मे बाजरा लगभग 45000 हेक्टेयर भूमि पर उगाया जाता है। बाजरा के दानो मे, ज्वार से अच्छी गुणवत्ता के पोषक तत्व पाये जाते है।बाजरा कम नमी, कम उर्वरता और उच्च तापमान वाले क्षेत्रों में मिट्टी के लिए एक आदर्श आवरण फसल है। यह गर्म, शुष्क स्थितियों के लिए बहुत सहनीय है। यह रेतीले दोमट मिट्टी में सबसे अच्छा प्रदर्शन करता है लेकिन पोषक तत्वों को रेतीली मिट्टी में जोड़ने के लिए महान हो सकता है, जो पोषक तत्वों की कमी है। बाजरा की फसल जो गरीबो का मुख्य श्रोत है- उर्जा, प्रोट्रीन विटामिन, एवं मिनरल का । बाजरा के दानो मे, ज्वार से अच्छी गुणवत्ता के पोषक तत्व पाये जाते है। दानो मे 12.4 प्रतिशत नमी, 11.6 प्रतिषत प्रोटीन, 5 प्रतिषत वसा, 76 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेटस तथा 2.7 प्रतिशत मिनरल पाये जाते हैं।

बुआई की विधि :-

बाजरा की फसल की बुआई 25 सें.मी. की दूरी में पंक्तियों में तथा सीडड्रिल से 1.5-2 सें.मी. दूरी पर करनी चाहिए। इसके लिए 6-8 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त है। बीज को बुवाई से पहले एग्रोसान जीएन अथवा थीरम (3 ग्राम / किग्रा बीज) से उपचारित करना चाहिए। इस खेती के लिए जुलाई का पहला सप्ताह अच्छा होता है। जुलाई के अंत में बुआई करने से 40 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर फसल का नुक़सान होता है। बुआई में 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज का इस्तेमाल करें।

भूमि की तैयारी :-

बाजरा के लिए हल्की या दोमट बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है। भूमि का जल निकास उत्तम होना आवश्यक हैं। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य 2-3 जुताइयां देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करके खेत तैयार कर लेना चाहिए।  बाजरा को कई प्रकार की भूमियो काली मिट्टी,दोमट, एवं लाल मृदाओ मे सफलता से उगाया जा सकता है लेकिन पानी भरने की समस्या के लिए बहुत ही सहनशील है।

बुवाई का समय :-

बाजरा की फसल तेजी से बढने वाली गर्म जलवायु की फसल है जो कि 40-75 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रो के लिए उपयुक्त होती है। इसमे सूखा सहन करने की अदभुत शक्ति होती है। सिंचिंत क्षेत्रों में गर्मियों में बुवाई के लिए मार्च से मध्य अप्रैल उपयुक्त समय है। जुलाई का पहला पखवाड़ा खरीफ की फसल के लिए उपयुक्त है। दक्षिण भारत में, रबी मौसम के दौरान अक्टूबर से नवंबर तक बुवाई की जाती है।

बाजरे की उन्नत किस्में

अच्छी पैदावार के लिए जरूरी है की आप बाजरे की उन्नतशील किस्मों का ही चुनाव करें।  बाजरे की उन्नत किस्मों में आई.सी. एम.बी 155, डब्लू.सी.सी.75, आई.सी. टी.बी.8203 और राज-171 प्रमुख हैं।

तापमान :-

बाजरे के पौधे को अंकुरित होने के लिए 25 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। जबकि बड़ा होने के लिए 30 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है. लेकिन 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी इसका पौधा अच्छी पैदावार दे सकता है।

फसल चक्र :-

बाजरे की फसल से अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए उचित फसल चक्र आवश्यक है। असिंचित क्षेत्रों में बाजरे के बाद अगले वर्ष दलहन फसल जैसे ग्वार, मुंग, मोठ लेनी चाहिए। सिंचित क्षेत्रों में बाजरा – सरसों, बाजरा – जीरा, बाजरा – गेहूँ फसल चक्र प्रयोग में लेना चाहिए।

खाद एवं रासायनिक उर्वरक :-

फसल के पौधों की उचित बढ़वार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। अत: भूमि को तैयार करते समय बाजरे की फसल के लिए 5 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। इसके पश्चात बाजरे की वर्षा पर आधारित फसल में 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन और 40 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। ध्यान रहे उर्वरकों का उपयोग मिट्टी की जांच के आधार पर ही करना चाहिए                                                                                                                            

हानिकारक कीट एवं रोग और उनके रोकथाम :-

दीमक – दीमक बाजरे के पौधे की जड़े खाकर नुकसान पहुँचाती है, इसकी रोकथाम के लिए खेत तैयार करते समय क्यूनालफास या क्लोरपायरीफास 1.5  प्रतिशत पॉउडर 25-30 किलो/हेक्टेयर की दर से जमीन में मिला देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त बीज को क्लोरपायरीफास 4 मि.ली. /किलो बीज की दर से बीज उपचार करना चाहिए।

कातरा – बाजरे की फसल को कातरा की लट प्रारम्भिक अवस्था में काटकर नुकसान पहुंचाता है इसकी रोकथाम के लिए क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत पाउडर की 20-25 किलो/हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए।

सफ़ेद लट – बाजरे में सफेद लट के नियंत्रण के लिए एक किलो बीज में 3 किलो कारबोफ्यूरान 3 प्रतिशत या क्यूनॉलफास 5 प्रतिशत कण 15 किलो डीएपी मिलाकर बोआई करें।

रूट बग – बाजरे में रूट बग के नियंत्रण के लिए क्यूनॉलफॉस डेढ़ प्रतिशत या मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत चूर्ण का 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें।

जोगिया – जोगिया के नियंत्रण के लिए बुवाई के 21 बाद मैंकोजेब 1 किलो/एकड़  का छिड़काव करे।

अरगट या चेपा – इसकी रोकथाम के लिए बीज को थिरम 75 प्रतिशत डब्लूएस 2.5 ग्राम और कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लूपीकी 2.0 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए। रोग के लक्षण दिखने पर कार्बेन्डाजिम+मैंकोजेब 40 ग्रा/15 लीटर पानी के साथ मिलकर छिड़काव करना चाहिए।

स्मट – स्मट की रोकथाम के लिए बीज को थिरम 75 प्रतिशत डब्लूएस 2.5 ग्राम और कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लूपीकी 2.0 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।तथा रोग के लक्षण दिखने पर मेटलैक्सिल+मैंकोजेब के मिश्रित रसायन को 40 ग्रा/15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे।

बाजरे के पौधों की निराई-गुड़ाई

बाजरे की फसल को खास निराई-गुड़ाई की जरूरत नहीं होती है, लेकिन फिर भी यदि गुड़ाई की जाए तो पौधों की वृद्धि काफी अच्छी होगी | जिसका असर पैदावार पर देखने को मिलेगा | यदि खेत में अधिक खरपतवार दिखाई दें तो खरपतवार नाशक दवाइयों का छिड़काव करे | इसके लिए एट्राजिन का इस्तेमाल करना बेहतर होता है |

खरपतवार नियंत्रण :-

25-30 दिनों की अवस्था पर वीडर कम कल्चर से निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। एट्रोजीन (0.5-0.75 कि.ग्रा./हैक्टर 600 लीटर पानी) का जमाव से पूर्व छिड़काव फसल के लिए प्रभावी होता है, लेकिन बाजरे के लोबिया, 1 कि.ग्रा. बुवाई से पहले एलाक्लोर का उपयोग करना चाहिए।

सिंचाई :-

बाजरा सामान्य तौर पर वर्षा पर आधारित फसल हैं। बाजरे के पौधों की उचित बढ़वार के लिए नमी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। सिंचित क्षेत्रो के लिए जब वर्षा द्वारा पर्याप्त नमी न प्राप्त हो तो समय समय पर सिंचाई करनी चाहिए। बाजरे की फसल के लिए 3 – 4 सिंचाई पर्याप्त होती है। ध्यान रहे दाना बनते समय खेत में नमी रहनी चाहिए। इससे दाने का विकास अच्छा होते है एवं दाने व चारे की उपज में बढ़ोतरी होती हैं।

कटाई :-

कटाई वाली प्रजातियों में, बुवाई के 69-75 दिन बाद (50% पूर्ण अवस्था) के बाद कटाई करें। बहुकटाई वाली प्रजातियों में पहली कटाई 40-45 दिन और फिर 30 दिनों के अंतराल पर काटते हैं। इस प्रकार, वैज्ञानिक रूप से उगाई जाने वाली फसलों से 450-950 क्विंटल चारा प्राप्त होता है।

भण्डारण :-

बाजरे की खेती से बाजरे का उत्पादन लगभग 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो जाता है। जबकि 70 क्विंटल तक सुखा चारा मिल जाता है। अनाज के भण्डारण के लिए नमी रहित स्थान पर बोरे भरकर रखना चाहिए।

पैदावार

यदि उपरोक्त आधुनिक विधि से बाजरे की फसल ली जाए तो सिंचित अवस्था में इसकी उपज 3 से 4.5 टन दाना और 9 से 10 टन सूखा चारा प्रति हेक्टेयर और असिंचित अवस्था में 2 से 3 टन प्रति हेक्टेयर दाना एवं 6 से 7 टन सूखा चारा मिल जाता है.

भंडारण

बाजरे के दानों को अच्छी तरह धूप में सुखाएं और दानों में नमी की मात्रा 8 से 10 प्रतिशत होने पर उपयुक्त स्थान पर भंडारण करें.

बाजरा खाने के फायदे

बाजरे में काफी एनर्जी होती है, जिस वजह से यह ऊर्जा का एक अच्छा स्त्रोत भी है | बाजरा शरीर में एनर्जी को उत्पन्न करता है | यदि आप अपने वजन को घटाना चाहते है, तो बाजरा खाना आपके लिए काफी फायदेमंद हो सकता है | क्योकि बाजरा खाने के बाद देर तक पेट भरा हुआ महसूस होता है, जिस वजह से बार-बार भूख नहीं लगती है, और इस वजह से भूख कंट्रोल में रहता है |बाजरा कोलेस्ट्रॉल के लेवेल को भी नियंत्रित करता है, जिससे दिल से जुड़ी बीमारी होने का खतरा काफी हो जाता है | बाजरा मैग्नीशियम और पोटैशियम का काफी अच्छा स्त्रोत है, जिस वजह से ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने में सहायता मिलती है | बाजरे में फाइबर की मात्रा काफी अच्छी होती है, जो पाचन क्रिया को दुरुस्त रखने में सहायता करता है | बाजरे का सेवन करने से कब्ज की समस्या नहीं होती है, और भोजन भी ठीक तरह से पचता है | यदि आप पाचन की समस्या से जूझ रहे है, तो बाजरे का सेवन करना आपके लिए लाभकारी साबित हो सकता है | न्यूटिषियन जरनल के अध्ययन के अनुसार भारत वर्ष के 3 साल तक के बच्चे यदि 100 ग्राम बाजरा के आटे का सेवन करते है तो वह अपनी प्रतिदिन की आयरन (लौह) की आवष्यकता की पूर्ति कर सकते है तथा जो 2 साल के बच्चे इसमे कम मात्रा का सेवन करे । बाजरा का आटा विशेषकर भारतीय महिलाओ के लिए खून की कमी को पूरा करने का एक सुलभ साधन है। भारतवर्ष मे ही नही अपितु संसार मे महिलाये एवं बच्चे मे लौहतत्व (आयरन) एवं मिनरल(खनिज लवण) की कमी पायी जाती है – डा. एरिक बोई, विभागाध्यक्ष न्यूटिषियन हारवेस्टप्लस के अनुसार गेहूँ एवं चावल से, बाजरा आयरन एवं जिंक का एक बेहतर श्रोत है |

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्राम )

Share
Advertisements