मत्स्य पालन की आधुनिक तकनीक बायोफ्लॉक
मत्स्य पालन की आधुनिक तकनीक बायोफ्लॉक – मछली की बढ़ती खपत को देखते हुए मत्स्य पालक द्वारा मत्स्य उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नीली क्रांति में एक महत्वपूर्ण कदम है जिसमें अगर हमारे पास तालाब नहीं है, और हम मछली पालन करना चाहते हैं तो हम बायोफ्लॉक विधि को अपना सकते हैं। इस विधि के जरिए हम मछली पालन करके कम खर्च, कम पानी और कम समय में ज्यादा पैसा कमा सकते हैं। जिसे वर्तमान में बायोफ्लॉक तकनीक के नाम से जाना जा रहा है। मत्स्य पालन के लिए बायोफ्लॉक तकनीक एक आधुनिक एवं वैज्ञानिक तरीका है। इस विधि से मछली पालने के लिए किसी तालाब या पोखर की जरुरत नहीं होती हैै। इस तकनीक में टैंकों में मछली पाली जाती है।
बायोफ्लॉक तकनीक में एक टैंक को बनाने में कितनी लागत आएगी वो टैंक के साइज अथवा आकार के ऊपर होता है। टैंक का साइज जितना बड़ा होगा मछली की वृद्धि उतनी ही अच्छी होगी और आमदनी भी उतनी अच्छी होगी। बायोफ्लॉक मछली पालन भारत में काफी लाभदायक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि तकरीबन 60 प्रतिशत आबादी मछली खाना पसंद करती है। मछली प्रोटीन व विटामिन का प्रचुर स्रोत है। आज के युग में लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति काफी जागरूक हैं। इसलिए अपने रूचि व स्वास्थ्य सम्बंधित जरूरतों के लिए मछली का सेवन करना पसंद करते हैं। बायोफ्लॉक मछली पालन व्यवसाय तेजी से पनप रहा है और भारतीय अर्थव्यवस्था में मछली पालन व्यापार की हिस्सेदारी तकरीबन 4.6 प्रतिशत से ज्यादा है।
तालाब में सघन मत्स्य पालन नहीं हो सकता है, क्योंकि अगर ज्यादा संख्या में मछली डाली जाए तो तालाब का अमोनिया स्तर काफी बढ़़ जाएगा एवं तालाब गंदा हो जाएगा और मछलियां मरने लगेंगी। मत्स्य पालकों को नियमित रूप से तालाब की निगरानी रखनी पड़ती है, क्योंकि मछलियों को सांप और बगुला खा जाते हैं। जबकि बायोफ्लॉक वाले टैंक अथवा जार के ऊपर शेड लगाया जाता है। इससे मछलियां मरती भी नहीं हैं और किसान को उससे होने वाला नुकसान भी नहीं होता है। एक हेक्टेयर के मछली पालन तालाब में हर समय बोरिंग से पानी दिया जाता है जबकि बायोफ्लॉक विधि में लगभग चार महीने में केवल एक ही बार पानी भरा जाता है। गंदगी जमा होने पर केवल दस प्रतिशत (10 प्रतिशत) पानी निकालकर इसे साफ रखा जा सकता है। बायोफ्लॉक टैंक से निकले हुए पानी को खेतों में भी छोड़ा जा सकता है। खेत या घर के आसपास 250 स्क्वायर फीट के सीमेंट टैंक में मछली पालन कर सकते हैं।
इस तकनीक में पानी की बचत तो है ही साथ ही मछलियों के फीड की भी बचत होती है। बायोफ्लॉक तकनीक में जो मछलियां टैंकों में पाली जाती हैं वे मछलियां जो भी खाती हैं उसका 75 फीसदी वेस्ट (मल) निकालती हैं वो वेस्ट (मल) उसी पानी के अंदर रहता है और उसी वेस्ट को और अतिरिक्त भोजन को शुद्ध करने के लिए बायोफ्लॉक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक में 24 घंटे बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए। क्योंकि इसमें जो बैक्टीरिया पलता है वो ऐरोबिक (वायुजीवी) बैक्टीरिया है जिसको 24 घंटे हवा की जरुरत होती है तभी वो जीवित रहता है। इस बैक्टीरिया के द्वारा मछलियों की उत्सर्जित वेस्ट (मल) और अतिरिक्त भोजन को प्रोटीन में परिवर्तित कर मछलियों के भोज्य पदार्थ के रूप में रूपांतरित कर दिया जाता है।
बायोफ्लॉक द्वारा अतिरिक्त भोजन के अपशिष्टों का उपचार और पोषण प्रदान करना जैसे लाभ होते हैं। बायोफ्लॉक बैक्टीरिया, शैवाल, प्रोटोजोअन और कार्बनिक पदार्थों जैसे- मछली की विष्ठा (मल) और अतिरिक्त भोजन के समुच्चय होते हैं। इसमें 25 से 50 प्रतिशत प्रोटीन तथा 5 से 15 प्रतिशत वसा होती है। बायोफ्लॉक विटामिन और खनिजों का भी एक बहुत अच्छा स्रोत हैं जिसमें विशेषकर फास्फोरस बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। इस तरह से मछली के आधे चारे की बचत हो जाती है। यानि तालाब में अगर चार बोरी चारा देना पड़ता है तो बायोफ्लॉक विधि में दो ही बोरा चारा देना पड़ेगा। इस तरह से लगभग 1/3 फीड की बचत होती है। ऐसे में बिजली की व्यवस्था हेतु इनवर्टर के जरिए भी टैंकों में बिजली की सप्लाई की जा सकती है। बायोफ्लॉक सिस्टम कम पानी के आदान-प्रदान के साथ काम करता हैं (प्रतिदिन केवल 5 से 1 प्रतिशत पानी बदलना पड़ता है)। बायोफ्लॉक तकनीक दो महत्वपूर्ण बिंदुओं पर कार्य करता है – अतिरिक्त भोजन के अपशिष्ठों का उपचार और पोषण प्रदान करना। बायोफ्लॉक पर प्रोबायोटिक का भी अच्छा प्रभाव हो सकता है।
बायोफ्लॉक तकनीक में पानी के तापमान को नियंत्रित करने में ज्यादा कठिनाई होती है, क्योंकि हर मछली अलग-अलग तापमान में रहती है। जैसे पंगेशियस, मछली ठंडे पानी में नहीं रह पाती है तो उसके लिए पॉलीशेड और तापमान को नियंत्रित करने की व्यवस्था करनी पड़ती है। इस वजह से थोड़ी समस्या आती है।
आवश्यक संसाधन
- सीमेंट टैंक/तारपोलिन टैंक
- एयरेशन (ऑसीजन) सिस्टम
- विद्युत की उपलब्धता
- प्रोबायोटिक्स
- मत्स्य बीज
पालन योग्य मछली प्रजातियां
पंगेसियस, तिलापिया, देशी मांगुर, सिंघी, कोई कार्प, पाब्दा, कॉमन कार्प एवं गोल्ड फिश इत्यादि।
आर्थिक लाभ
इस तकनीकी से 10 हजार लीटर क्षमता के टैंक (एक बार की लागत, 5 वर्ष हेतु) से लगभग छ: माह पालन कर विक्रय योग्य 3-4 क्विंटल मछली का उत्पादन कर अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। यदि महंगी मछलियों का उत्पादन किया जाये तो यह लाभ अधिक हो सकता है।
बायोफ्लॉक तकनीक के फायदे
- कम लागत एवं सीमित जगह में अधिक मत्स्य उत्पादन।
- जल प्रदूषण में कमी।
- कम लागत में अधिक मत्स्य भोजन का उत्पादन।
- अन-उपयोगी जमीन एवं अति सीमित पानी का उपयोग।
- बहुत कम श्रमिक लागत एवं चोरी के भय से मुक्ति।
- इस तकनीक से कम पानी, कम दाने में निश्चित समय में अच्छी वृद्धि प्राप्त होती है।