Agriculture Machinery (एग्रीकल्चर मशीन)

खरीफ में उपयोगी कृषि यंत्र

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देश की बढ़ती जनसंख्या की खाद्य समस्या को हल करने के लिए सघन खेती की आवश्यकता है। इस समय में एक ही खेत से एक वर्ष में कई फसलें ली जाती है, इसके लिए उन्नत बीज, खाद तथा पानी की समुचित वयवस्था के साथ-साथ कृषि कार्य जैसे भूमि की तैयारी, बीजों की  बुवाई, फसलों की सिंचाई, कटाई तथा भण्डारण आदि कार्य समय पर न होने से फसल के उत्पादन में काफी कमी हो जाती है। आज के समय में किसान भी कृषि यंत्रों के उपयोग के महत्व को समझने लगे है और अधिक से अधिक यंत्रों का प्रयोग करने लगे है। किसी भी यंत्र को खरीदने से पहले यह आवश्यक है कि हम अपने आस-पास के क्षेत्र का पूरा सर्वेक्षण भी कर लें, इस सर्वेक्षण से यंत्रों के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त करने के बाद जो यंत्र खरीदेंगे वह अच्छी तरह हमारे काम आएगा। यंत्रों के चुनाव में उपलब्ध शक्ति एवं पूंजी की मुख्य भूमिका है अत: इन दोनों के विषयों में पहले से ही निर्णय कर लेना जरुरी है।

(अ) खेतों की तैयारी के लिए कृषि यंत्र मिट्टी पलटने वाला हल (एमबी प्लाऊ) 

यह पूर्णत: लोहे का बना होता है इसमें नीचे लगा फाल मिट्टी को काटता है एवं फाल से लगाा हुआ लोहे के मुड़े हुए प्लेट से मिट्टी पलटती जाती है। यह एक प्रकार से जुताई के दौरान एल आकार का कुंड बनाता है जिससे दो कुंड के बीच जगह नहीं छूटती है। यह विभिन्न मापों एवं आकार में भूमि के प्रकार, पशु शक्ति के अनुसार उपलब्ध है। यह यंत्र गहरी जुताई के लिए बहुत उपयोगी है।

तवेदार हल (डिस्क प्लाऊ) 

इस हल द्वारा पुरवी, कड़ी एवं घास तथा जड़ों से भरी हुई जमीन को जुताई करने में आसानी होती है, तवों के कारण यह इन अवरोधकों को काटता हुआ चलता है। चिकनी नमीयुक्त मिट्टी में भी यह आसानी से प्रयोग में लाया जाता है, तवो में लगे हुए स्केपर की वजह से गीली मिट्टी इनमें चिपक नहीं पाती है।

कल्टीवेटर 

इस यंत्र का प्रयोग जुताई के बाद खेत में ढेलों के तोडऩे, मिट्टी भुरभुरी करने एवं खेत में सूखी घास, जड़ों के ऊपर लाने के लिए करते है। इस यंत्र का प्रयोग कतार युक्त फसलों में निराई हेतु भी किया जाता है। स्प्रिंग टाइन कल्टीवेटर, रिजिड टाइन कल्टीवेटर।

हैरो 

जुताई के बाद मिट्टी को भुरभुरी एवं नमी सुरक्षित रखने हेतु उथली जुताई की आवश्यकता होती है, इस हेतु यह उपकरण अत्यंत उपयोगी है। घास फूस जड़ों इत्यादि को भी खेत से साफ करने में यह यंत्र प्रयुक्त होता है। इस यंत्र के दो प्रकार हैं- तवेदार हैरो, ब्लैड हैरो।

पडलर 

इस यंत्र द्वारा जुताई के बाद खेत में 5-10 सेमी पानी भर कर मचाई कार्य किया जाता है, जो कि धान की फसल में रोपा पद्धति के लिए आवश्यक होता हैं। उन्नत पडलर का उपयोग खरपतवारों को नष्ट करने, पानी का जमीन के अंदर ज्यादा रिसने को कम करने एवं धान के पौधों की रोपाई हेतु उपयुक्त परिस्थिति बनाने के लिए किया जाता है।

रोटावेटर 

यह एक विशेष प्रकार का टै्रक्टर से चलने वाला भारी एवं बड़ा यंत्र होता है। इस यंत्र में विशेष तरह के कई ब्लैड लगे होते हैं, जो मिट्टी को काटकर, ऊपर उठाकर एवं घुसकर पलटते हुए आगे चलते जाते हैं, जिससे मिट्टी की जुताई एवे भुरभुरी एक साथ हो जाती है। इस यंत्र के प्रयोग पश्चात खेत बुआई हेतु तैयार हो जाता है।

(ब) खेतों की बुआई हेतु प्रयुक्त कृषि यंत्र 

पशु चालित बीज उर्वरक बुआई यंत्र (ड्रिल) 

इस यंत्र द्वारा 3-4 कतारों में एक साथ बुआई की जा सकती है। कतारों के मध्य की दूरी को आवश्यकतानुसार बदला जा सकता है। इस यंत्र द्वारा खाद एवं बीज दोनों ही निर्धारित मात्रा में आवश्यकतानुसार गिराये जा सकते है।

टै्रक्टर चालित बीज एवं उर्वरक बुआई यंत्र 

इस यंत्र द्वारा 7-13 कतारों में बुआई की जा सकती है। इस यंत्र के प्रयोग से बीज एवं खाद भूमि में उचित गहराई पर बोये जा सकते हैं। यह टै्रक्टर की 3 प्वांइट लिंक के साथ जुड़ा होता है जिससे लाने ले जाने तथा खेत में चलाने के लिए बहुत सुविधाजनक होता है।

प्लांटर 

इस यंत्र का प्रयोग बीजों को प्राय: एक निश्चित बीज की दूरी पर पंक्तियों में बुआई हेतु किया जाता है। इसमें अलग-अलग फसल के बीजों के लिए अलग-अलग प्लेटों तथा स्प्रोकिटों का प्रयोग किया जाता है।

रिज फरो सीड कम फर्टिलाईजर ड्रिल 

रिज फरो सीड कम फर्टिलाईजर ड्रिल सामान्य रूप से वही सीड-फर्टिलाईजर ड्रिल होती है, जिसका किसान आमतौर पर उपयोग करते हंै। इसी ड्रिल में कथित परिवर्तन करके उसे रिजफरो पद्धति हेतु बदल दिया जाता है। रिजफरो पद्धति से बोनी करने पर अनेक लाभ प्राप्त होते हंै। प्राकृतिक अनिश्चिताओं के कारण फसल पर पडऩे वाले प्रतिकूल प्रभावों का असर रिज फरो पद्धति से बोवनी करने पर घट जाता है। सीड कम फर्टिलाईजर ड्रिल में सिर्फ सामने की टाईन्स (कुर्सियां) ही बीज बोने के लिए प्रयुक्त करके उनमें फरो ओपनर (पंजे) लगा देने पर सामान्य सीड कम फर्टिलाईजर ड्रिल को रिजफरो पद्धति हेतु तैयार किया जाता है। इस प्रकार लगाए गए पंजे बोवनी की कतारों के मध्य लगभग 9 इंच चौड़ी नालियां निर्मित करते हैं जो फरो कहलाती है। इस प्रकार बनी नालियों के दोनो किनारों पर स्वयं निर्मित मेड़ (रिज) पर बीज बोया जाता है। बोनी के तत्काल बाद वर्षा होने पर पानी नालियों में भरता-बहता है बीज की मेड़ों की परत सख्त नहीं होती है। फलस्वरूप अच्छा अंकुरण प्रतिशत प्राप्त होता हैं। बोये गए बीज से लगभग 2 से.मी. नीचे उर्वरक गिरता है और अंकुरण के पश्चात यदि अल्प वर्षा होती है तो नालियों में सिंचित पानी सोयाबीन को पर्याप्त नमी प्रदान करता है। परन्तु यदि अंकुरण के पश्चात अधिक वर्षा होती है तीन कतारों के मध्य नालियां वर्षा जल को यथाशीघ्र खेत से बाहर प्रवाहित करने में भी सहायता करती है और जल प्लावन की स्थिति निर्मित नहीं होने देती है। इस प्रकार प्राकृतिक अनिश्चिताओं की आशंका से फसल पर पडऩे वाले दुष्प्रभावों को नियंत्रित किया जा सकता है।

टै्रक्टर चालित रेज्ड बेड सीडड्रिल और इस विधि से लाभ 

टै्रक्टर चालित रेज्ड बेड सीडड्रिल द्वारा क्रमबद्ध रेज्ड बेड एवं फरो का निर्माण किया जाता है। इसमें रेज्ड बेड की चौड़ाई 45 सेमी. तथा ऊंचाई लगभग 15-20 सेमी. होती है साथ ही रेज्ड बेड के साथ निर्मित फरो की चौड़ाई भी 45 सेमी. तथा गहराई 15-20 सेमी. होती है। प्रत्येक रेज्ड बेड में सोयाबीन की दो कतारों में बुआई की जाती है कतार की दूरी 45 सेमी. रखी जाती है। अधिक वर्षा की स्थिति में अतिरिक्त वर्षा जल को सुगमतापूर्वक खेत से निकालने में यह पद्धति अति उपयोगी है। इस विधि से बुआई करने से फसल में वायु का संचार अच्छा होने के कारण फसल की बढ़वार एवं उत्पादकता अधिक होती है। साथ ही इस विधि द्वारा मृदा नमी का संरक्षण भी होता है। उर्वरक के सही व्यवस्थापन के कारण उर्वरक उपयोग क्षमता भी बढ़ती है। बीज दर कम लगती है जिसमें पौधों की संख्या नियंत्रित की जा सकती है। मेड़ के बीच के खरपतवार यंत्रों के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है। मेड़ से मेड़ की दूरी पर्याप्त होने से पौधों की कैनोपी को सूर्य की किरणें अधिक से अधिक मिलती हैं जिससे पौधें की शक्ति बढ़ती है तथा आस-पास की मिट्टी भी सूखी रहती है जिससे पौधों के झुकने की समस्या नहीं रहती है। समतल बुआई विधि की अपेक्षा इसमें अंकुरण क्षमता अधिक होती है।

  • दीपक चौहान
  • डॉ. मृगेन्द्र सिंह  
  • पी. एन. त्रिपाठी
  • अल्पना शर्मा 
  • भागवत प्रसाद पंद्रे

    कृषि विज्ञान केन्द्र शहडोल,जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय, जबलपुर 
    deepakchouhan22@gmail.com

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