किसानों के लिए योजनाएं कितनी सार्थक
19-20 सितम्बर को नई दिल्ली में राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन का आयोजन रबी अभियान के रूप में आयोजित किया जा रहा है, इसमें मृदा स्वास्थ योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, राष्ट्रीय कृषि मंडी, टिकाऊ खेती के लिए- एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन, सूखे का प्रबंधन, फसल कटाई के बाद का प्रबंधन व बागवानी फसलों में मूल्य वृद्धि, सूखा ग्रसित का प्रमाणीकरण तथा किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए चर्चा होगी। इस सम्मेलन में सभी प्रदेशों के कृषि मंत्रियों तथा कृषि से सम्बन्धित उच्च अधिकारियों के सम्मिलित होने की आशा है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का आरम्भ प्रधानमंत्री जी ने 19 फरवरी 2015 को आरम्भ किया था, इस योजना के अन्तर्गत 2 वर्ष में 253 लाख मृदा के नमूने लेकर व उनका परीक्षण कर 12 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों तक पहुंचाने का लक्ष्य बनाया गया। देश के कई प्रान्तों जिसमें मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ भी सम्मिलित है ने मृदा स्वास्थ कार्डों के प्रथम चक्र का शत-प्रतिशत ध्येय प्राप्त कर लिया है। परन्तु कितने किसान इन मृदा स्वास्थ्य कार्डों में दी गई जानकारी के अनुसार उर्वरकों का उपयोग कर रहे हैं इसके आंकड़े सामने नहीं आये हैं न ही ये धरातल पर दिखते हैं। जब तक किसान इन मृदा स्वास्थ्य कार्डों के अनुसार उर्वरकों का उपयोग नहीं करता है तब तक इस योजना का भी उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इसको कार्यान्वित करने के लिए भी इस सम्मेलन में विचार होना चाहिए।
फसल बीमा योजना के अन्तर्गत प्रथम वर्ष 2016 में कुल फसल रकबे का 30 प्रतिशत इस योजना के अन्तर्गत रखा गया था जिसे प्राप्त कर लिया गया। वर्ष 2017-18 में इसे बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर लिया गया है। मध्य प्रदेश में वर्ष 2016-17 में कुल 231.3 लाख हेक्टेयर में से 123.08 लाख हेक्टेयर बीमा योजनाओं के अन्तर्गत आ गया था जो एक शुभ संकेत है व देश सबसे अग्रणीय है। राजस्थान में भी 239.54 लाख हेक्टर सफल क्षेत्र में से 101.68 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बीमा के अन्तर्गत आ गया, जबकि छत्तीसगढ़ में 56.91 लाख हेक्टर में से 24.33 लाख हेक्टेयर इस योजनाओं में प्रथम वर्ष ही आ गये। इन बीमा योजनाओं में अभी तक सम्पन्न तथा प्रगतिशील किसान ही आगे आये हैं। गांव को इकाई मानकर उनके सभी किसानों को इसमें सम्मिलित करने के प्रयास होने चाहिए।
राष्ट्रीय कृषि मंडी के अन्तर्गत अभी तक देश की 455 मंडियों को इससे जोड़ा गया है, जिसमें से क्रमश: 58, 25 तथा 14 (कुल 97) मंडियों मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ की है, अभी तेलंगाना तथा छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त अन्य राज्यों में मंडियों के बीच तथा अन्य प्रदेशों के मंडियों के बीच व्यापार आरंभ नहीं हो पाया है जब तक यह आरंभ नहीं हो पाता तब तक किसान को उसकी फसल की अच्छी कीमत मिलने की सम्भावना भी कम है।
एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन के लिए किसानों को पहले से ही कोई अनुशंसा नहीं की जा सकती है। कीटों के सही पहचान तथा उनके प्राकृतिक शत्रुओं की पहचान व गणना के लिए किसानों को प्रशिक्षण देना आवश्यक है, इसके लिए योजना की आवश्यकता है। इसी प्रकार बागवानी फसलों में मूल्य वृद्धि, सूखा प्रबंधन तथा किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए हर किसान की परिस्थिति को जानना आवश्यक है। इन परिस्थितियों के आधार पर ही उनके लिए योजनाएं बनाई जा सकती है। तभी किसान का उद्धार हो पायेगा।