बेमानी हुआ किसान का बेटा कहलाना ?
विनोद के. शाह
देश में महंगाई की चिंता से सरकार ने केन्द्रीय कर्मचारियों का भत्ता बड़ा दिया है। इस बहाने म.प्र. में विधायकों के वेतन -भत्ते भी बढ़ गये हैं। कितनी अजीब बात है कि प्रदेश की अधिकांश विकास योजनाओं पर अघोषित रोक इसलिये लगी है कि राज्य सरकार का खजाना खाली है। आपदाओं से पीडि़त प्रदेश का किसान विगत दो बरसों से गेहूं का समर्थन मूल्य बढ़ाने की मांग कर रहा है। लेकिन प्रदेश सरकार ने मूल्य बढ़ाने के बजाये, गेहूं के समर्थन मूल्य से सौ रुपये वाला राज्य बोनस गत वर्ष समाप्त कर दिया है। बड़ी हुई महंगाई से राज्य के विधायक इतने अधिक आहत है कि विधायक वेतन -भत्ता संशोधन विधेयक को राज्य विधानसभा में पास कराने में मात्र तीन मिनट का वक्ता लगा।
राज्य में काश्तकारों की औसत मासिक आय 2000 रुपये भी नहीं है। जिसके कारण उसे जिंदा रहने के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है। किसान आत्महत्या के मामले में प्रदेश तीसरे स्थान पर है। लेकिन हैरान करने वाली खबर यह है कि जिस विधानसभा में 80 फीसदी विधायक कृषि व्यवसाय से जुड़े हो, जहां राज्य का मुखिया स्वयं को किसान का बेटा कहलाने का मादा रखता है। वहां इतनी बड़ी विसंगति कि बेटा बनकर राज करने वाले को राजकोष से 2 लाख का वेतन, लेकिन खेतों पसीना बहाकर अन्नदाता को 2 हजार की मासिक आमदानी भी नहीं।
काश राज्य के विधाता प्रदेश के अन्नदाता के मर्म को समझ पाते। पिछले दस वर्ष के शासन में राज्य के विधायकों के वेतन चारबार बढ़ाया गया है। जो कि 05 गुना से अधिक की बढ़ोत्तरी है। लेकिन इस अंतराल में गेहूं का समर्थन मूल्य दस फीसदी भी नहीं बढ़ पाया है। ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाली मौतों में 15 फीसदी असमय खेतों में काम के दौरान, आसमानी बिजली के गिरने से जहरीले जीव जन्तुओं के काटने से, कीटनाशकों के प्रयोग एवं यांत्रिक दुर्घटनाओं की वजह से हुआ करती है। लेकिन स्थिति में शासन द्वारा गमगीन परिवार को मिलने वाली आर्थिक सहायता इतनी भी नहीं है कि मरने वाले का क्रियाकर्म भी ठीक से हो पाये। लेकिन राज्य सरकार ने संशोधन के माध्यम से विधायकों की मौत पर 5 लाख की अनुग्रह राशि देने का प्रावधान किया है। भारत के संविधान में उल्लेखित कानून के विरोध में जेल जाने वाले मीसाबंधियों की पेंशन भी राज्य सरकार ने 6 हजार मासिक से बढ़ाकर 25 हजार मासिक कर दी है। समझ नहीं आता है कि राज्य की जनता के इस खजाने को मात्र अपनों के लिये सरकार खैरात के रूप में कैसे बांट रही है। इस फैसले की पूर्व राज्य की जनता जर्नादन का कम से कम एक बार मत तो जाना होता। पिछले तीन बरसों के लेखा-जोखा में पहले साल ओलावृष्टि से प्रदेश का किसान तबाह हुआ, दूसरे वर्ष अतिवृष्टि ने मारा, और तीसरे वर्ष वह सूखे की मार झेल रहा है। लेकिन शासन मात्र घडिय़ाली आंसू के सिवाय उसकी झोली खाली ही है। प्रदेश के किसानों के पास रोने के लिये आंखों के आंसू भी सूख चुके है। फसल पैदा करने का उत्साहअब उसके पास नहीं है। उसके बच्चों को शिक्षा या नौकारियों में आरक्षण भी नहीं है। बीमारी या मौत में उसका कोई मददगार भी नहीं है। सूदखोर उसकी जान के दुश्मन बन चुके है। ऐसे में वह खेती किस आस से कर पायेगा? मात्र स्वहित से पूर्व, राज्य के जनप्रतिनिधियों को इन हालातों का मनन अवश्य करना था कि कैसे उनकी आत्मा इस बेहताशा वेतनवृद्धि को स्वीकार कर पायेगी, जब राज्य का किसान बद्दतर आर्थिक हालातों के कारण मौत को गले लगा रहा है।
shahvinod69 @gmail.com
मो. 9425640778