State News (राज्य कृषि समाचार)

सोयाबीन कृषकों के लिए उपयोगी सलाह (24-30 जुलाई)

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24 जुलाई 2023, इंदौर: सोयाबीन कृषकों के लिए उपयोगी सलाह (24-30 जुलाई) – भा.कृ.अनु.प.-भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान , इंदौर द्वारा 24-30 जुलाई की अवधि के लिए सोयाबीन कृषकों के लिए उपयोगी सलाह दी गई है।  जो इस प्रकार हैं –

अ –  कीट/रोग/खरपतवार नियंत्रण हेतु सलाह

1 – मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में एन्थ्राक्नोज नामक फफूंदजनित रोग के प्रारंभिक लक्षण देखे गए हैं।  ऐसे क्षेत्र जहाँ लगातार बारिश हो रही हैं, कृषकों को सलाह है कि अपनी फसल की नियमित निगरानी करें एवं लक्षण दिखाई देने पर इसके नियंत्रण हेतु शीघ्रातिशीघ्र टेबूकोनाजोल 25.9 ई.सी. (625 मिली/हे) या टेबूकोनाझोल 10%+सल्फर 65%WG (1250 ग्राम/हे) से फसल पर छिडकाव करें।

2 – कुछ क्षेत्रों में पीला मोज़ेक रोग का प्रारंभ होने की सूचना है, अतः इस रोग के नियंत्रण हेतु सलाह है कि तत्काल रोगग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर निष्कासित करें तथा इन रोगों को फ़ैलाने वाले वाहक सफ़ेद मक्खी की रोकथाम हेतु पूर्वमिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्सम + लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन (125मिली/हे) या बीटासायफ्लुथ्रिन+इमिडाक्लोप्रिड (350 मिली/हे) का छिड़काव करें. इनके छिड़काव से तना मक्खीका भी नियंत्रण किया जा सकता है. यह भी सलाह है कि सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण हेतु कृषकगण अपने खेत में विभिन्न स्थानों पर पीला स्टिकी ट्रैप लगाएं।

3 –  जहाँ  पर केवल चक्र भृंग का प्रकोप हों, इसके नियंत्रण हेतु प्रारंभिक अवस्था में ही टेट्रानिलिप्रोल 18.18  एस.सी. (250-300 मिली/हे) या थायक्लोप्रिड 21.7 एस.सी. (750 मिली/हे) या प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी (1 ली./है) या इमामेक्टीन बेन्जोएट ((425 मिली/ है ) का छिड़काव करें। यह भी सलाह दी जाती है कि इसके फैलाव की रोकथाम हेतु प्रारंभिक अवस्था में ही पौधे के ग्रसित भाग को तोड़कर नष्ट कर दें।

4 – मध्य प्रदेश एवं राजस्थान के कुछ जिलों में बिहार हेयरी कैटरपिलर का प्रकोप होने की  सूचनाएं  प्राप्त हुई  है।  इसके नियंत्रण हेतु सलाह है कि प्रारंभिक अवस्था में ही झुण्ड में रहने वाली इन इल्लियों को पौधे सहित खेत से निष्कासित करें एवं फसल पर लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 04.90 % CS (300 मिली/हे.) या इंडोक्साकार्ब 15.80 % EC (333 मिली/हे.) छिडकाव करें।

5 – जहाँ पर फसल 15-20 दिन की हो गई हो, पत्ती खाने वाले कीटों से सुरक्षा हेतु फूल आने से पहले ही सोयाबीन फसल में क्लोरइंट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी. (150 मिली/हे) का छिडकाव करें। इससे अगले 30 दिनों तक पर्णभक्षी कीटों से सुरक्षा मिलेगी।

6 – तना मक्खी के नियंत्रण हेतु सलाह है कि पूर्वमिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्सम 12.60%+लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 09.50% जेड.सी. (125 मिली./हे.) या बीटासायफ्लुथ्रिन+इमिडाक्लोप्रिड (350मिली./हे.) या आइसोसायक्लोसरम 9.2 WW.DC (10% W/V) DC (600 मिली/हे.) का छिड़काव करें।

7 – जहाँ पर एक साथ पत्ती खाने वाली इल्लियों (सेमीलूपर/तम्बाकू/चने की इल्ली) तथा रस चूसने वाले कीट जैसे सफ़ेद मक्खी/जसीड एवं ताना छेदक कीट (तना मक्खी/चक्र भृंग) प्रकोप हो, इनके नियंत्रण हेतु पूर्व मिश्रित कीटनाशक जैसे क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 09.30 + लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 09.50% जेड.सी. या थायोमिथोक्सम 12.60%+लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 09.50% जेड.सी. (125 मिली./हे.) या बीटासायफ्लुथ्रिन+इमिडाक्लोप्रिड (350 मिली./हे.) का छिडकाव करें।

8 – सोयाबीन फसल को 50-60 दिन तक खरपतवार मुक्त रखना आवश्यक होता हैं. इसके लिए सुविधानुसार विभिन्न पद्धतियों (हाथ से निंदाई, डोरा/कुल्पा का प्रयोग/खड़ी फसल में उपयोगी खरपतवारनाशकों (तालिका 1 ) का प्रयोग किया जा सकता हैं. इसके लिए दो बार हाथ से निंदाई (२० एवं 40 दिन की फसल में) या सुविधानुसार 25 दिन तक डोरा/कुलपा या अनुशंसित खरपतवारनाशकों का छिडकाव  करें ।  लगातार बारिश होने की स्थिति में अगर खेत में डोरा/कुलपा/ट्रेक्टर चालित डोरा या बूम स्प्रे का प्रयोग संभव नहीं हो, जेट  ट्रैक्टर को मेड/सड़क पर खड़ा कर इससे जुड़े लम्बे पाइप वाले से छिडकाव किया जा सकता है।

9 – ऐसे कृषक जिन्होंने अपनी फसल में बोवनी पूर्व या बोवनी के तुरंत बाद उपयोगी खरपतवारनाशकों का प्रयोग किया है, सलाह हैकि खरपतवारों के नियंत्रण हेतु सुविधाजनक मौसम होने पर डोरा/कुलपा  चलाएं ।

10  –  जहाँ फसल 15-20 दिन की हो गई है, और अभी तक किसी भी प्रकार के  खरपतवारनाशक का प्रयोग नहीं किया है, सलाह है किसोयाबीन फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए अनुशंसित खड़ी फसल में उपयोगी किसी एक रासायनिक खरपतवारनाशक काछिडकाव करें ( तालिका 1 देखे)।

11 – भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संसथान द्वारा खरपतवारनाशकों एवं कीटनाशकों की सांगतता बाबत अभी तक  किए  गए अनुसन्धान परीक्षणों के अनुसार निम्न खरपतवारनाशक एवं कीटनाशकों की संगतता पाई गई है. अतः सलाह है कि जिन्होंने बोवनी पूर्व या बोवनी के तुरंत बाद उपयोगी खरपतवारनाशकों का अभी तक प्रयोग नहीं किया है, निम्न  सूची  में से कोई एक कीटनाशक एवं खरपतवार नाशक का मिलाकर छिडकाव किया जा सकता है।

(1)कीटनाशक: क्लोरइंट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी. (150 मिली/हे) या क्विनाल्फोस 25 ई.सी (1 ली/हे) या इन्डोक्साकर्ब 15.8  एस.सी (333 मि.ली./हे)
(2) खरपतवारनाशक: इमाज़ेथापायर 10 एस.एल (1 ली/हे) या क्विजालोफोप इथाइल 5 ई.सी (1 ली/हे)

ब. सामान्य सलाह क्या करें?

1 – कई क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा होने की  सूचनाएं प्राप्त हुई हैं, कृषकों को सलाह है कि जलभराव से होने वाले नुकसान से सोयाबीन फसल को बचाने हेतु अतिरिक्त जल-निकासी सुनिश्चित करें।

2 -वर्तमान में हो रही बारिश की स्थिति को देखते हुए कृषकों को सलाह है कि अपने खेत की नियमित निगरानी करें एवं खेत में जाकर 3-4 स्थानों के पौधों को हिलाकर सुनिश्चित करें कि क्या आपके खेत में किसी इल्ली/कीट का प्रकोप हुआ है या नहीं और यदि हैं, तो कीड़ों की अवस्था क्या है? तदनुसार उनके नियंत्रण के उपाय  अपनाएं।

3 – सोयाबीन की फसल घनी होने पर चक्र भृंग का प्रकोप अधिक होने की सम्भावना होती है. इसके लिए प्रारंभिक अवस्था में ही (एक सप्ताह के अन्दर) दो रिंग दिखाई देने वाली ऐसी मुरझाई/लटकी हुई ग्रसित पत्तियों को तने से तोड़कर जला दे या खेत से बाहर करें।

4 -सोयाबीन फसल पर पौध संरक्षण के लिए अनुशंसित रसायनों (खरपतवारनाशक/कीटनाशक/फफूंद नाशक) के छिडकाव में पर्याप्त पानी की मात्रा (नेप्सेक स्प्रयेर या ट्रेक्टर चालित स्प्रयेर से 450 लीटर/हे पॉवर स्प्रेयर से 125 लीटर/हे न्यूनतम) का उपयोग करें।

5 -कीटनाशक के छिडकाव हेतु कोन नोजल जबकि खरपतवारनाशक के छिडकाव हेतु फ्लड जेट/फ्लैट फेन नोजल का उपयोग करें।  

6  – कीट एवं रोगों से फसल सुरक्षा हेतु उपयुक्त रसायनों का छिडकाव किया जाना चाहिए, भले ही सोयाबीन फसल  फूल आने कीअवस्था में हो।

 7 – किसी भी प्रकार का कृषि-आदान क्रय करते समय दुकानदार  से हमेशा पक्का बिल लें, जिस पर बैच नंबर एवं एक्सपायरी दिनांक स्पष्ट लिखा हो।

क्या नहीं करें? 

1 -ऐसे रसायन (कीटनाशक/खरपतवारनाशक/फफूंदनाशक) जो सोयाबीन फसल में उपयोग हेतु भारत सरकार के केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड द्वारा जारी सूची में शामिल नहीं, उपयोग नहीं करें।

 2  -जिन रसायनों (कीटनाशक/खरपतवारनाशक/फफूंदनाशक) के मिश्रित उपयोग की वैज्ञानिक अनुशंसा या पूर्व अनुभव नहींहै, ऐसे मिश्रण का उपयोग कदापि नहीं करें।  इससे फ़सल को नुकसान हो सकता है।

अन्य सुरक्षात्मक उपाय अपनाएं

1 – पीला मोज़ेक रोग से सुरक्षा हेतु रोगवाहक कीट सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए अपने खेत में विभिन्न स्थानों पर पीला स्टिकी ट्रैप लगाएं।

2 -सोयाबीन की फसल में पक्षियों की बैठने हेतु “T” आकार के बर्ड-पर्चेस  लगाएं . इससे कीट-भक्षी पक्षियों द्वारा भी इल्लियों की संख्या कम करने में सहायता मिलती है।

3 -सोयाबीन फसल में तम्बाकू की इल्ली एवं चने की इल्लियों के प्रबंधन हेतु बाजार में उपलब्ध किट  विशेष फेरोमोन ट्रैप या प्रकाश प्रपंच  लगाएं।

 4 -सोयाबीन का जैविक उत्पादन लेने वाले किसान कृपया पत्ती खाने वाली इल्लियों (सेमीलूपर, तम्बाकू की इल्ली ) से फसल की सुरक्षा एवं प्रारंभिक अवस्था में रोकथाम हेतु बेसिलस थुरिन्जिएन्सिस अथवा ब्युवेरिया बेसिआना या नोमुरिया रिलेयी (1.0ली./हेक्टे) का प्रयोग करें।

(तालिका 1: केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड द्वारा दिनांक 1 जून 2023 को जारी सोयाबीन फसल में अनुशंसित खरपतवारनाशकों की सूची )

बोवनी के 10-12 दिन  –क्लोरीम्यूरान इथाईल 25 डब्ल्यू.पी. +सर्फेक्टेन्ट 36 ग्राम ( चौड़ी पत्ती वाले )

बोनी के 15-20 दिन बाद उपयोगी – इमेझेथापायर 10 एस.एल.(1.00 ली.), ( चौड़ी पत्ती एवं घासवर्गीय  ) ,इमेझेथापायर 70% डब्ल्यू. जी + सर्फेक्टेन्ट (100ग्रा.) ( चौड़ी पत्ती एवं घासवर्गीय ) ,क्विजालोफाप इथाईल 5 ई.सी.(0.75-1.00 ली.), क्विजालोफाप-पी-इथाईल 10 ई.सी.(375-450 मि.ली.),फेनाक्सीफाप-पी-इथाईल 9 ई.सी.(1.11 ली.), क्विजालोफाप-पी-टेफ्युरिल 4.41 ई.सी.(0.75- 1.00 ली.) ,फ्ल्यूआजीफॉप-पी-ब्युटाईल 13.4 ई.सी.(1-2 ली.), हेलाक्सिफॉप आर मिथाईल 10.5 ई.सी.( 1-1.25 ली.),  प्रोपाक्विजाफॉप 10 ई.सी.(0.5-0.75 ली.), ( सभी घासवर्गीय ) फ्लमूथियासेट मिथाईल 10.3 ई.सी. (125 मि.ली.),( चौड़ी पत्ती वाले ) क्लेथोडियम 25 ई.सी.(0.5 -0.70 ली. ) ( घासवर्गीय )  ।

पूर्व मिश्रित  खरपतवारनाशक  ( बोवनी के 15 -20  दिन बाद उपयोगी )- फ्ल्यूआजीफॉप-पी- ब्यूटाइल + फोमेसाफेन (1.0 ली.), इमेझेथापायर+ इमेजामॉक्स (100 ग्रा.),    प्रोपाक्विजाफॉप+  इमेझेथापायर (2.0 ली.), सोडियम  एसीफ्लोरफेन+ क्लोडिनाफाप प्रोपारगील ( 1 ली ),  फोमेसाफेन + क्विजालोफाप इथाईल  ( 1.5 ली.), क्विजालोफाप इथाईल + क्लोरी मयूरान  इथाईल + सरफेक्टेंट ( 375 मिली+36 ग्रा.) ( सभी चौड़ी पत्ती एवं घासवर्गीय )।

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