राज्य कृषि समाचार (State News)फसल की खेती (Crop Cultivation)

मटर की वैज्ञानिक खेती

लेखक: अंजली द्विवेदी, परास्नातक छात्रा (उद्यानिकी), सीबीएसएमएसएस, झींझक, सीएसजेएमयू, कानपुर (उप्र), डॉ. प्रदीप कुमार द्विवेदी, वैज्ञानिक (पौध संरक्षण), कृषि विज्ञान केन्द्र, रायसेन, dwivedi_pradip@rediffmail.com

29 अक्टूबर 2024, भोपाल: मटर की वैज्ञानिक खेती – मटर का हमारे भोजन में एक महत्वपूर्ण स्थान है। प्रोटीन पूरक के रूप में इसका प्रयोग मौसम एवं बेमौसम दोनों समय में किया जाता है। हरी मटर शरदकालीन मौसम में हमारे दैनिक आहार की एक महत्वपूर्ण सब्जी है इसकी खेती प्रमुख रूप से हरी फलियों के लिये की जाती है। आजकल कच्ची हरी मटर के दानों की भी डिब्बा बंदी की जा रही है।

Advertisement
Advertisement

जलवायु: वह क्षेत्र जहाँ चार महीने तक ठण्ड का मौसम हो तथा साथ ही साथ धीमी गति से मौसम गर्मी की ओर अग्रसर होता हो, मटर उत्पादन के लिए अच्छा माना जाता है। बीज जमाव के लिए आदर्श तापमान 13-18 डिग्री सेंटीग्रेड होता है। किन्तु यह अधिकतम 22 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तक भी बीज जमाव हो सकता है। यदि बीज का जमाव कम तापमान पर होता है तो पौधा शाखायुक्त एवं धीमी बढ़वार वाला होता है। लेकिन अधिक तापमान होने पर पौधा लम्बी बढ़वार वाला हो जाता है। छोटे पौधों में पाला सहन करने की विशेष क्षमता होती है परंतु फूल एवं फलियों के बनने के समय शुष्क तथा थोड़ा गर्म मौसम उसके गुणों एवं उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। तापमान जब 30 डिग्री सेन्टीग्रेड से ऊपर हो जाता है तो इन फलियों की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

मृदा: मटर की खेती सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। परन्तु उत्तम जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में हो सबसे अच्छी मानी जाती है। वह मिट्टी जिसमें पानी न ठहरता हो तथा पानी सोखने की क्षमता अधिक हो, हरे फल तथा बीजों के उत्पादन को बढ़ा देता है। आदर्श पीएच मान 6-7.5 माना जाता है। अत्यधिक अम्लीय तथा क्षारीय मिट्टी इसके उत्पादन को प्रभावित करती है।

Advertisement8
Advertisement

बुवाई तकनीक: मैदानी भागों में मटर की बुवाई अक्टबूर के प्रथम सप्ताह से लेकर नवम्बर के अंत तक करते हैं। जबकि पहाड़ी भागों में मध्य फरवरी से लेकर अप्रैल के अंत तक करते हैं। समय से पहले तथा समय के बाद बुवाई करने पर उत्पादन एवं गुणवत्ता दोनों पर प्रभाव डालता है। अत: मुख्य मौसम में अच्छे उत्पादन हेतु बुवाई लाभप्रद होती है। अगेती प्रजातियाँ के लिए 125-150 किग्रा तथा मध्यम पकने प्रजातियों के 100-120 किग्रा बीजों की प्रति हेक्टेयर बुवाई की जरूरत पड़ती है। अगेती बुवाई में बीज की मात्रा बढ़ाकर प्रयोग करें क्योंकि पौधे की बढ़वार कम होती है।

Advertisement8
Advertisement

बीज शोधन: बुवाई से पहले बीज शोधन केवल जमाव प्रतिशत ही नहीं बल्कि उत्पादन में भी लाभ पहुँचाता है। राइजोबिजम कल्चर को 10 प्रतिशत गुड़ के जलीय घोल से बीज को अच्छी तरह उपचारित कर छाया में सुखा लें। उकठा रोग से बचने के लिए बीज को कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्रा./किग्रा से उपचारित कर लें। उपचारित बीज को 5-8 सेमी गहराई पर बुवाई करते हैं। अगेती किस्मों का बीज से बीज की दूरी 4-5 सेमी तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25-30 सेमी तथा मध्य पकने वाली प्रजातियों को बीज से बीज की दूरी 5-8 सेमी तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-40 सेमी रखें।

पोषक तत्वों की आवश्यकता एवं प्रबंधन: मटर की जड़ों में राइजोबियम नामक जीवाणु रहता जो वायुमण्डल की नत्रजन को पौधों की जड़ों तक पहुँचाता है। अत: नत्रजन की आवश्यकता को लगभग जीवाणु ही पूर्ण करने में सक्षम होते हैं। परंतु यह जीवाणु अपना कार्य पौधे के एक निश्चित आयु में आरंभ करते हैं। जिससे बुवाई करने से पहले नाइट्रोजन की थोड़ी मात्रा मिट्टी में मिलाई जाती है। बुवाई से पहले 100-150 क्विंटल/ हेक्टेयर गोबर की पूर्णरूप से सड़ी हुई खाद 8 सप्ताह पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। अधिक उपज प्राप्त करने के लिए 50-70 किग्रा नत्रजन, 40-50 किग्रा फास्फोरस और 40-60 किग्रा पोटाश की प्रति हेक्टेयर मटर के लिए प्रयोग की जाती है। फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा एवं नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय देते हैं एवं आधी बची नत्रजन की मात्रा बुवाई के 30-40 दिनों बाद प्रथम सिंचाई के बाद प्रयोग की जाती है।

शस्य क्रियायें एवं खरपतवार नियंत्रण: अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खरपतवार नियंत्रण आवश्यक होता है जो बुवाई के सामान्यत: 25-30 दिन तक खुर्पी की सहायता से निराई की जा सकती है। रसायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के दो दिनों के अन्दर एलाक्लोर अथवा पेन्डीमिथालीन का छिड़काव खरपतवार को उगने नहीं देता है। जिससे फसल खरपतवार मुक्त रहती है।

सिंचाई एवं जल प्रबंधन: बुवाई के समय खेत की नमी के आधार पर सिंचाई निश्चित करें। यदि खेत में नमी बिल्कुल ही नहीं हो तब खेत को पलेवा करना जरूरी हो जाता है तथा खेत जुताई योग्य तैयार हो जाए उसे अच्छी प्रकार से जुताई करके ही बीज बोने का कार्य करें। मिट्टी यदि काफी हल्की हो तो कम नमी होने पर बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई की जा सकती है। मटर को कम से कम एक बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। जिसके लिए फुहारे वाली विधि सबसे अच्छी होती है। इस विधि में पानी आवश्यकतानुसार ही पौधों को दिया जाता है। जिससे पौधे अच्छी बढ़वार प्राप्त कर लेते हैं जो उसके उपज पर काफी अच्छा प्रभाव डालता है। फूल आने के पहले तथा बाद में सिंचाई आवश्यकतानुसार करें।

तुड़ाई, उपज एवं भण्डारण: फलियों की समय से तुड़ाई, पौधों का जीवन अवधि के बढ़ाने के साथ-साथ उत्पादन में भी वृद्धि करता है। फलियाँ दानों से भर गई हो उसी समय तुड़ाई करें। समान्यत: जब 25 प्रतिशत से अधिक फलियां परिपक्व हो गई हो तभी तुड़ाई करें। अत: लाभ के लिए जल्दी परिपक्व होने वाली तथा अधिक तुड़ाई देने वाली किस्मों का चयन करें। तीन से चार तुड़ाई सामान्यत: अच्छे किस्मों द्वारा मिल जाती है।वटामिन्स, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं खनिज लवणों का अच्छा स्रोत है। सब्जी मटर में मिठास की मात्रा अधिक होने से इसके ताजे बीज को सब्जी, छोला, चाट, अचार तथा विभिन्न प्रकार के सलाद में प्रयोग किया जाता है। इसके पूरे पौधे को पशुओं के लिए हरे चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है।

Advertisement8
Advertisement

किस्में

वी.एल.-मटर-3: यह मध्य परिपक्व होने वाली किस्म है। इस किस्म के पौधे सीमित बढ़वार वाले जिनकी पत्तियाँ हल्की हरी होती हैं। फली हल्की हरी तथा सीधी होती है। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 100-105 क्विं. प्रति हे. होती है।
वी.एल.-मटर-7: यह मध्य परिपक्व होने वाली किस्म है। इस किस्म के पौधे सीमित बढ़वार वाले तथा बौने होते हैं जिनकी पत्तियाँ गाढ़ी हरी होती हैं। यह किस्म अगेती झुलसा के प्रति सहनशील है। इस किस्म की उपज क्षमता 230-250 क्विंटल/ हे. है।
नरेन्द्र सब्जी मटर-6: यह मध्य परिपक्व होने वाली किस्म है। इस किस्म के पौधे 45-55 सेंमी लम्बे जिनमें प्रथम पुष्पन 30-35 दिनों बाद होता है। इस किस्म की फलियों की तुड़ाई बुवाई के 60-70 दिनों के बाद की जा सकती है। फलियाँ 8 सेमी लम्बी जिसमें 7-8 हरे मीठे बीज होते हैं। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 85-95 क्विंटल/हे. है।
नरेन्द्र सब्जी मटर-4: यह मध्य परिपक्व होने वाली किस्म है। इस किस्म के पौधे 70-75 सेमी लम्बे होते हैं। 8-9 सेमी लम्बी जिसमें 7-8 हरे मीठे बीज होते हैं। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 100-110 क्विंटल/हे. है।
नरेन्द्र सब्जी मटर-5: यह मध्य परिपक्व होने वाली किस्म है। इस किस्म के पौधे 70-75 सेमी लम्बे होते हैं। फलियाँ 8-9 सेमी लम्बी जिसमें 7-8 हरे मीठे बीज होते हैं। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 80-110 क्ंिवटल/हे. है।
आजाद पी.-5: इस किस्म के पौधे मध्यम लम्बाई जिनकी फलियाँ सीधी तथा मध्यम लम्बाई की होती हैं। पौधे चूर्णिल आसिता रोग के प्रति प्रतिरोधी होते हैं। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 95-105 क्विंटल/हे. है।
जवाहर मटर-1: इस किस्म के पौधे बौने जिन पर बड़ी तथा अकर्षक हरे रंग की फलियाँ लगती हंै। फलियों की लम्बाई 8-9 सेमी, जिनमें 8-10 हरे मीठे बीज होते हैं। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 120-125 क्विंटल/हे. है।
जवाहर मटर-4: इस किस्म के पौधे मध्यम ऊँचाई वाले 50-60 सेमी जिनकी फलियाँ 7 सेमी लम्बी तथा जिनमें 5-6 हरे मीठे बीज लगते हैं। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 90-110 क्विंटल/ हे. है।
पंत उपहार: इस किस्म के पौधे मध्यम ऊँचाई वाले 70 सेमी होते हैं। फलों की प्रथम तुड़ाई-बुवाई के 70-80 दिनों बाद की जा सकती है। यह किस्म मटर फल मक्खी के प्रति प्रतिरोधी है। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 100-105 क्विंटल/हे. है।
काशी नन्दिनी: इसके पौधे मध्यम बढ़वार वाले होते हैं। प्रथम पुष्पन बुवाई के लगभग 34 दिनों बाद दिखाई देता है। पहली तुड़ाई बुवाई के 50-50 दिनों बाद की जाती है। फलियाँ 6-9 सेमी लम्बी तथा प्रत्येक फली में औसत दानों की संख्या 6-8 होती है। अगेती बुवाई के लिए उत्तम किस्म है। औसत पैदावार हरे फलियों की 50-60 क्विंटल/हे. तथा बीज उत्पादन 13-14 क्विंटल/हे. मिल जाता है।
अर्किल: इसके पौधे छोटे 35-40 सेमी ऊँचाई के होते हैं। प्रथम पुष्पन बुवाई के लगभग 35-40 सेमी ऊँचाई के होते है। प्रथम पुष्पन बुवाई के लगभग 30-35 दिनों बाद निकलते हैं। फलियाँ गहरे हरे रंग की तथा औसतन 8.5 सेमी लम्बी तथा नीचे की ओर मुड़ी रहती हैं। प्रत्येक फली में बीजों की संख्या 6-8 तक होती है। पहली तुड़ाई बुवाई के 50-55 दिनों बाद की जाती है। सूखने के बाद बीज झुर्रीदार हो जाते हैं। औसत हरे फलियों का उत्पादन 50 क्विंटल/ हे. और औसत बीज उत्पादन13-14 क्विंटल/हे. तक होती है।
काशी शक्ति: यह किस्म मध्य अवधि में परिपक्व होने वाली है। पौधा 90-100 सेमी लम्बा तथा 50 प्रतिशत पुष्पन बुवाई के 45-50 दिनों बाद होती है। पौधा गहरा हरा तथा प्रति पौधा 10-12 फलियाँ लगी रहती है। फलियाँ 10-10.5 सेमी लम्बी आकर्षक तथा प्रत्येक फलियों में 7-8 बीज होते हैं। फलियों का औसत उत्पादन 40-60 क्विंटल/हे. है तथा सूखे बीजों का औसत उत्पादन 10 क्विंटल/हे. होता है।

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्रामव्हाट्सएप्प)

(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)

कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.krishakjagat.org/kj_epaper/

कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.en.krishakjagat.org

Advertisements
Advertisement5
Advertisement