State News (राज्य कृषि समाचार)

मटर की वैज्ञानिक खेती

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क्षेत्रफल एवं उत्पादन: उत्तर प्रदेश में मटर की खेती बड़े क्षेत्रफल में होती है। आगरा मण्डल में इसकी खेती सर्वाधिक क्षेत्र में की जाती है।

जलवायु: मटर की अच्छी फसल लेने के लिए शुष्क एवं ठण्डी जलवायु अधिक उपयुक्त होती है किंतु पाले से इस फसल को अधिक नुकसान होता है।

मिट्टी: मटर की अच्छी फसल लेने हेतु उचित जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है।

खेत की तैयारी: अच्छी फसल लेने के लिए एक जुताई मिट्टी पलट हल से तथा दो से तीन जुताईयां कल्टीवेटर या हैरो से करके खेत में पाटा लगाकर समतल एवं ढेले रहित कर लें।

खाद एवं उर्वरक: संतुलित पोषक तत्वों को प्रदान करने के लिए खेत का मृदा परीक्षण करना आवश्यक है। मृदा परीक्षण न करा पाने की दशा में खेत में बुवाई से पहले 60-80 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से मिला दें। बुवाई के समय ही खेत में 20 किग्रा. नाइट्रोजन, 60 किग्रा. फास्फोरस तथा 40 किग्रा. पोटाश एवं 20 किग्रा. गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से बीज के नीचे कूंड़ में डालें। अधिक उपज वाली बौनी प्रजातियों में बोने के समय 20 किग्रा. नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर अतिरिक्त दें।

मटर एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। इसका प्रयोग सब्जी एवं दाल के रूप में किया जाता है। सब्जी वाली मटर के ताजे हरे दानों से अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं और इन ताजे हरे दानों का प्रयोग डिब्बा बन्दी करके उस समय भी किया जाता है, जब बाजार में ताजी मटर उपलब्ध नहीं हो पाती है। मटर के दानों को सुखाकर चाट के रूप में प्रयोग किया जाता है। मटर के सूखे दानों में औसतन 22 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है। दाल वाली फसल होने के कारण इसकी जडं़े मृदा में नाइट्रोजन एकत्रित करती है।

उन्नतशील प्रजातियां: मटर की उन्नत प्रजातियों में रचना, इन्द्रा, अपर्णा, शिखा, जय, अमन, सपना, प्रकाश, पूसा, प्रभात, पंतमटर 5, मालवीय मटर 2 एवं मालवीय मटर 15 तथा विकास आदि प्रमुख हैं।

बुवाई का समय: मटर की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर का दूसरा पखवाड़ा होता है। किन्तु इसे 15 नवम्बर तक बोया जा सकता है।

बीज की मात्रा: लम्बे पौधों वाली प्रजातियों की 80-100 किग्रा. तथा बौनी प्रजातियों की 125 किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यक होता है।

बीज उपचार: बीज जनित रोगों से बचाव के लिए 2 ग्राम थीरम एवं 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा. बीज अथवा 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किग्रा बीज की दर से शोधित करते हैं। तत्पश्चात बीज को मटर के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से एक पैकेट (200 ग्राम) प्रति 10 किग्रा. बीथ की दर से उपचारित कर छाया में सुखाने के बाद बोया जाता है।

फसल सुरक्षा:

कीट नियंत्रण: 

तने की मक्खी, पत्ती सुरंगक तथा फलीबेधक मटर के मुख्य कीट हैं। फलीबेधक कीट की हरी सुंडियां मटर की फलियों में छेदकर के अंदर ही अंदर फली के दानों को खा जाती है।

उपरोक्त कीटों के प्रभावी नियंत्रण के लिए फसल की समय से बुवाई करें। फलीबेधक कीट को नियंत्रित करने के लिए क्विनालफास 25 ई.सी. की 2 लीटर मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।

रोग नियंत्रण:

मटर की फसल में मुख्य रूप से बुकनी या चूर्णिल आसिता रोग तथा मृदुरोमिल आसिता रोग लगते हैं। बुकनी या चूर्णिल आसिता रोग लगने पर पत्तियों पर सफेद रंग के फफूंद का चूर्ण या पाउडर जमा हो जाता है। जो बाद में भूरे रंग का हो जाता है। मृदुरोमिल आसिता में पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले धब्बे तथा निचली सतह पर रुई जैसे सफेद रंग की फफूंद दिखाई देती है जिससे बाद में पत्तियां सूख जाती है।

उपरोक्त रोगों के नियंत्रण के लिए रोग रोधी प्रजातियों, समय से बुवाई करें तथा उस खेत में 2-3 वर्षों तक मटर की बुवाई नहीं करें। बुकनी या चूर्णिल आसिता रोग लगने पर गंधक 80 का घुलनशील चूर्ण की 2 किग्रा. तथा मृदुरोमिल आसिता रोग लगने पर मैंकोजेब-75 डब्ल्यू. पी. की 2 किग्रा. मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

बोने की विधि: उपचारित बीज को हल के पीछे कूड़ में या पंतनगर जीरोटिल ड्रिल द्वारा बुवाई की जाती है। लम्बी प्रजातियों की पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी. तथा बौनी प्रजातियों की 20 सेमी एवं गहराई 5 सेमी रखते हैं।

सिंचाई एवं जल निकास: फसल में फूल आने के समय खेत में उचित नमी होना अनिवार्य है। इस समय यदि खेत में नमी की कमी हो तो सिंचाई करना आवश्यक होता है। दूसरी सिंचाई फलियों में दाना बनते समय करें। मटर खेत में अधिक नमी को सहन नहीं कर पाती इसीलिए खेत में आवश्यकता से अधिक पानी को जल निकास नाली द्वारा बाहर निकाल देना चाहिए।

निराई-गुड़ई: फसल के प्रारंभ में बुवाईके 40-45 दिनों तक खेत में खर-पतवार नहीं होना चाहिए अन्यथा फसल की पैदावार घट जाती है। इसके लिए बीज बोने के 30-35 दिन पर खुरपी द्वारा एक निराई कर खरपतवारों तथा अवांछित पौधों को खेत से निकाल दें।

कटाई, मड़ाई तथा भण्डारण: हरी मटर की फली की तुड़ाई 10-12 दिनों के अंतर पर 3-4 बार करते है। जबकि दाल वाली फसल मार्च के अंत में पककर तैयार हो जाती है, जिसकी कटाई एक बार में कर ली जाती है, मड़ाई बैलों या थ्रेसर द्वारा की जा सकती है। हरी मटर के दानों का भण्डारण डिब्बा बंदी के रूप में शीतग्रह में तथा सूखे दानों को भण्डार गृह में रखा जाता है।

उपज: उन्नत विधि से खेती करने पर हरी फलियों की उपज औसतन 60-70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा दानों की उपज 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।

 

  • राघवेंद्र सिंह
  • सुधाकर सिंह

आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज, अयोध्या 

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