झाबुआ में मिलेट मेले का हुआ आयोजन
15 जून 2023, झाबुआ: झाबुआ में मिलेट मेले का हुआ आयोजन – गत दिनों नेहरू युवा केंद्र झाबुआ के तत्वावधान मोटे अनाज के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से ग्राम पंचायत बनी में मिलेट मेला का आयोजन किया गया। जिसमें मिलेट के व्यंजनों की प्रदर्शनी भी लगाई गई।
राष्ट्रीय युवा स्वयंसेविका दीपिका गवली द्वारा बताया गया कि मिशन लाइफ के अन्तर्गत मिलेट मेला आयोजित किया गया। जिसका उद्देश्य मोटे अनाज के प्रयोग के प्रति ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता फैलाना है। मिलेट मेला के जरिए बाजरा से बने भोजन को बढ़ावा दिया जा रहा है। मैदा से बने भोजन लोगों की पाचन शक्ति को कमजोर करते हैं। इससे बहुत नुकसान होता है। इसीलिए मक्का, बाजरा, जौ से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। मेले में महिला समूह द्वारा बाजरे के आटे की रोटी, बाजरे की खिचड़ी, बाजरे का मीठा सत्तू आदि व्यंजन बना कर प्रदशनी लगाई गई एवं साथ ही मेले में रागी, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग, जौ, सोयाबीन, चना आदि मोटे अनाजों की प्रदर्शनी लगाई गई। युवा मंडल से नितिका और विनीता मेघसिंह पचाया द्वारा भीली भाषा में गीत के माध्यम से लोगो संदेश दिया गया।
कृषि अधिकारी श्री गोपाल मुलेवा ने बताया कि बाजरा के उत्पादन और खपत को प्रोत्साहित करने के लिए, भारत सरकार ने अप्रैल, 2018 में बाजरा को पोषक-अनाज के रूप में अधिसूचित किया, जिसमें पुनर्वा बाजरा,ज्वार, रागी,सांवा या सनवा बाजरा, कोदो बाजरा, छोटी कंगनी/हरी कंगनी बाजरा, कंगनी बाजरा, अनाज को शामिल किया गया। मोटा अनाज कम पानी और कम खर्चे में उगता मोटे अनाज की फसल को उगाने के फायदा यह है कि इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। यह पानी की कमी होने पर खराब भी नहीं होती है और ज्यादा बारिश होने पर भी इसे ज्यादा नुकसान नहीं होता है। मोटा अनाज की फसल खराब होने की स्थिति में भी पशुओं के चारे के काम आ सकती हैं। बाजरा और ज्वार जैसी फसलें बहुत कम मेहनत में तैयार हो जाती है।
जन अभियान परिषद् के ब्लॉक समन्वयक श्री प्रवीण पंवार ने बताया कि वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के तौर पर मनाया जा रहा है। मोटे अनाज के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाई जा रही है, ताकि इसे अपनी डाइट में जोड़कर सेहत को बेहतर बनाया जा सके। गेहूं चावल के मुकाबले मोटा अनाज उगाना और खाना दोनों ही ज्यादा सुविधाजनक है। इसके साथ ही मोटे अनाज वाली फसलों में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग करने की जरूत भी नहीं होती है। इसी के साथ ही इन फसलों के अवशेष पशुओं के चारे के काम आते हैं इसलिए इनको धान की पराली की तरह जलाना नहीं पड़ता। महिला बाल विकास विभाग से सुपरवाइजर धर्मा सारेल ने ग्रामीणों से दैनिक जीवन में मोटे अनाज को शामिल करने का आह्वान किया ,ताकि उन्हें कुपोषण का सामना न करना पड़े।
(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़, टेलीग्राम )