State News (राज्य कृषि समाचार)

राजस्थान कृषि विभाग ने जारी किया परामर्श; कृषक गेहूं की फसल में पीली रोली रोग का ऐसे करे प्रबन्धन

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03 फरवरी 2024, जयपुर: राजस्थान कृषि विभाग ने जारी किया परामर्श; कृषक गेहूं की फसल में पीली रोली रोग का ऐसे करे प्रबन्धन – राजस्थान में श्रीगंगानगर जिले के सिंचित क्षेत्र की  गेंहू प्रमुख रबी फसल है। यहा मुख्यतः गेहुं किस्मों में एचडी 3086, एचडी 2851, डीबीडब्ल्यू 187, डीबीडब्ल्यू 222, आरएजे 3077 आदि की बुवाई की जाती है एवं गेंहू का कुल बुवाई क्षेत्रफल 1 लाख 88 हजार 183 हैक्टयर है। गेंहू में इस समय पीली रोली रोग का प्रकोप होने की सम्भावना रहती है। कृषि विभाग ने किसानों के लिए इससे बचाव का परामर्श जारी किया है।

कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. जीआर मटोरिया ने बताया कि इस रोग का प्रकोप अधिक होने से उपज में भारी गिरावट होती है। अतः इसके बचाव हेतु कृषक गेंहू फसल का नियमित रूप से निरीक्षण कर इस रोग के लक्षणो की पहचान कर इसका उपचार करें ताकि फसल का उत्पादन प्रभावित न हो। 

गेंहू में पीली रोली रोग के लक्षण

पीला रतुआ उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र और उत्तरी पष्चिमी मैदानी क्षेत्र का मुख्य रोग है। रोग का प्रकोप होने पर पत्तियों का रंग फीका पड़ जाता है व उन पर बहुत छोटे पीले बिन्दु नुमा फफोले उभरते है पूरी पत्ती रंग के पाउडरनुमा बिन्दुओ से ढक जाती है। पत्तियों पर पीले से नारंगी रंग की धारियों आमतौर पर नसों के बीच के रूप में दिखाई देती है। सक्रंमित पत्तियों का छूने पर उँगलियों और कपड़ो पर पीला पाउडर या धूल लग जाती है। पहले यह रोग खेत  में 10-15 पौधे पर एक गोल दायरे के रूप में हो कर बाद में पूरे खेत में फैलता है।

प्रबंधन के उपाय

ठंण्डा और आद्र मौसम परिस्थिति, जैसे 6 डिग्री से 18 डिग्री सेल्सीयस तापमान, वर्षा, उच्च आद्रता, ओस, कोहरा इत्यादि इस रोग को बढावा देते हैं। डॉ. जी.आर. मटोरिया द्वारा इसके प्रबंधन हेतु विभिन्न उपायों जनकारी दी है। उन्होंने बताया कि खेत मे जल जमाव न होने पर नाईट्रोजन युक्त के अधिक उर्वरको के अधिक प्रयोग से बचने एवं विभागीय/खण्डीय सिफारिशानुसार की उर्वरक एवं कीटनाशक की मात्रा का उपयोग करें, फसल का नियमित रूप से निरीक्षण करें एवं किसी भी लक्ष्ण के संदेह में आने पर कृषि विभाग/कृषि विज्ञान केन्द्र/कृषि विश्वविद्यालय से संपर्क कर रोग कर पुष्टी करावें क्योकि कभी.कभी पत्तियों का पीलापन रोग के अन्य कारण भी हो सकते है।

रोग की पुष्टी होने पर सक्रंमित पौधो क समूह को एकत्र करके नष्ट करें एवं अविलम्ब सक्रंमित क्षेत्र में विभागीय/खण्डीय सिफारिशानुसार कवक नाषी रसायनों का मौसम साफ होने पर खड़ी फसल में छिड़काव/भूरकाव कर नियंत्रण करें। अनुशिंसित फफूंदनाषकों द्वारा प्रभावित फसल का छिड़काव करें, जैसे प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. या टेबुकोनाजोल 25.9 ई.सी. का 1 मिली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 200 लीटर घोल का प्रति एकड़ छिड़काव करें एवं आवश्यक्तानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दुसरा छिड़काव करें।

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