गाजर घास की समस्या से मुक्ति पाने के लिए हर वर्ग की भागीदारी आवश्यक : सुनील तिवारी
16 अगस्त 2023, जबलपुर: गाजर घास की समस्या से मुक्ति पाने के लिए हर वर्ग की भागीदारी आवश्यक : सुनील तिवारी – भा.कृ.अनु.प.-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर द्वारा राष्ट्रव्यापी 18 वां राष्ट्रीय गाजरघास जागरूकता सप्ताह ( 16 से 22 अगस्त तक ) का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें राज्यों के कृषि विश्व विद्यालयों, कृषि अनुसंधान परिषद के समस्त संस्थानों, कृषि विज्ञान केन्द्रों (के.वी.के.) राज्यों के कृषि विभागों एवं अखिल भारतीय खरपतवार प्रबंधन के केन्द्रों, स्कूल, कॉलेजों तथा समाजसेवी संस्थाओं को शामिल किया गया है। गाजरघास जागरूकता सप्ताह का शुभारंभ आज निदेशालय परिसर में आयोजित गाजरघास उन्मूलन कार्यक्रम से किया गया। मुख्य अतिथि श्री सुनील तिवारी, प्रबंध निदेशक, मध्यप्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी लि. जबलपुर और विशिष्ट अतिथि श्री पुखराज नेनीवाल, क्षेत्रीय खान नियंत्रक, भारतीय खान ब्यूरो, जबलपुर थे।
श्री तिवारी ने कहा कि गाजर घास के नियंत्रण के लिए जैविक नियंत्रण सहित अन्य समन्वित विधियों का प्रयोग करना आवश्यक है। इस भीषण समस्या से मुक्ति पाने के लिए समाज के हर वर्ग की भागीदारी जरूरी है। उन्होंने गाजर घास से निपटने के लिए अपने विभाग में कार्यक्रम आयोजित कर जागरूकता फैलाने एवं भविष्य मे इसमें पूर्ण सहयोग की बात कही। वहीं श्री नेनीवाल ने कहा कि गाजर घास के नियंत्रण के लिए सभी विधियों का आवश्यकतानुसार उपयोग कर इस भीषण समस्या से पार पाया जा सकता है। गाजर घास की भयावहता को ध्यान में रखते हुए जनभागीदारी से इसके प्रबंधन के प्रयास करने की बात पर बल दिया। उन्होंने खनन विभाग में भी गाजर घास के बारे में जागरूकता फैलाने का आश्वासन दिया।
निदेशक डॉ. जे.एस. मिश्र ने कहा कि गाजर घास न केवल फसलों, बल्कि मनुष्यों और पशुओं के लिए भी एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। गाजरघास पूरे वर्ष भर खली ज़मीनों एवं रहवासी क्षेत्रों में उगता एवं फलता-फूलता रहता है, लेकिन अब इसका प्रकोप विभिन्न खाद्यान फसलों, सब्जियों एवं उद्यानिकी में भी बढ़ रहा है। गाजरघास के तेजी से फैलने के कारण अन्य उपयोगी वनस्पतियों, स्थानीय जैव विविधता एवं पर्यावरण पर गंभीर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। डॉ. मिश्र, ने बताया कि इस खरपतवार के संपर्क में आने से मनुष्यों में डर्मेटाइटिस, एग्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा आदि जैसी बीमारियां होती हैं। इसको अन्य चारा के साथ खा लेने से पशुओं में भी विभिन्न प्रकार के रोग पैदा हो जाते हैं एवं दुधारू पशुओं के दूध में अजीब प्रकार की गंध एवं कड़वाहट आने लगती है। डॉ. मिश्र ने विभिन्न विधियों यांत्रिक, रासायनिक एवं विशेष रूप से जैविक कीट मैक्सिकन बीटल के द्वारा गाजर घास के नियंत्रण पर बल दिया।
प्रधान वैज्ञानिक एवं गाजर घास जागरूकता कार्यक्रम के संयोजक डॉ. पी.के. सिंह ने गाजर घास से होने वाले दुष्प्रभावों और इसके नियंत्रण के उपायों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। गाजरघास को खाने वाले कीट जाइगोग्रामा बाईकोलोराटा के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि यह कीट जबलपुर सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों में अच्छा काम कर रहा है। डॉ. सिंह ने गाजरघास से उत्तम कम्पोस्ट बनाने की विधि भी बताई ताकि कृषक अपनी आय बढ़ा सकें । पूर्व में विग्स कान्वेंट स्कूल के लगभग 325 बच्चों तथा अध्यापक/अध्यापिकाओं ने रैली निकालकर गाजरघास उन्मूलन का सन्देश दिया।कार्यक्रम में, डॉ. दीपक पवार, वैज्ञानिक एवं निदेशालय के समस्त वैज्ञानिक/अधिकारी/कर्मचारी/छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
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